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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

दूर संचार भाग १

इस श्रंखला की भी बड़े दिनों से प्लानिंग चल रही है। अन्य श्रंखलाओं की तरह यह भी अधूरी न रह जाय इस आशा से शुरुआत कर रही हूँ।

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हम सब सॅटॅलाइट कम्युनिकेशन शब्द से परिचित हैं । हम टीवी देखते हैं - जी टीवी , स्टार प्लस आदि सेटेलाईट चेनल कहलाते हैं। इन पर केबल ओपरेटर को एक निश्चित दिशा में एंटीना रखने पर सिग्नल मिलने की बात होती है। फिर आजकल डायरेक्ट टू होम टीवी हैं  । जासे टाटा स्काई  , डिश टीवी आदि। जिनके लिए हम अपने घर एक नन्ही डिश लगवाते हैं एक निश्चित दिशा में। ये डिश कैसे काम करती है? रेडिओ , टीवी , फोन आदि को अपनी अपनी तरह के सिग्नल कैसे मिलते हैं? टीवी में फोटो और लोग कैसे चलते फिरते दीखते हैं?

इस श्रंखला में मैं इस पूरे सिस्टम पर बात करुँगी।

दूरसंचार की शुरुआत से शुरू करती हूँ फिर धीरे धीरे आगे बढूँगी।सिर्फ तरीके भर पर। मेथेमेटिकल डिटेल्स नही। ( मैं चिट्ठियों आदि नहीं बल्कि सिर्फ दूरसंचार / टीवी आदि इलेक्ट्रोनिक कम्युनिकेशन की बात कर रही हूँ।)

सबसे पहले तो हम मनुष्य सिर्फ अपने समीप मौजूद व्यक्तियों से ही बात कर पाते थे। फिर  dots and dashes का उपयोग कर दूर सन्देश भेजे जाने लगे। फिर तारों के द्वारा जुड़े दो टेली फोंस पर बात होनी शुरू हुई।

फोन मशीन के काम करने के बारे में अभी एक संक्षिप्त परिचय । मोटे तौर पर सिर्फ इतना है कि टेलीफोन में चार अलग भाग हैं।

1. - माइक। जैसे माइक पर गायक गीत गाते हैं और नेता भाषण देते हैं :) ।माइक के भीतर मैगनेट का इंतज़ाम रहता है जिसके कारण यह हमारी कही बात को बिजली की लहरों में परिवर्तित करता है। हमारी आवाज़ से हुए कम्पन के कारण वोल्टेज के बदलाव होते हैं , जिन्हें तकनीकी भाषा में ऑडियो सिग्नल कहते हैं।

2. - स्पीकर। जी हाँ वही जो नेता के कहे शब्दों को पूरे मैदान में सुनाने के लिए जगह जगह लगे होते हैं। या गायक के गीत को आपके कानों तक पहुंचाते हैं। दुबारा वही ध्वनि जनरेट कर कर। जो म्युज़िक सिस्टम या टीवी के शब्द को कमरे में फिर से बनाते हैं। इन स्पीकरों में परदे और चुम्बक होते हैं। चुम्बक और बिजली की लहरों का आपस में ऐसा असर होता है की स्पीकर में लगा पर्दा कम्पन करता है और ध्वनि तरंगों को जन्म देता है।  मूल तौर पर माइक और स्पीकर एक ही सिद्धांत पर काम करते हैं। एक ध्वनि तरंगों को विद्युत् तरंगो में बदलता है तो दूसरा विद्युत् तरंगों को ध्वनि तरंगो में। लेकिन सिद्धांत दोनों का एक ही है - विद्युत् और चुम्बक के आपसी सम्बन्ध और एक ताना हुआ स्क्रीन।

3. - तीसरा हिस्सा है वह भाग जो ऊपर बताई माइक की विद्युत् लहरों को टेलीफोन एक्सचेंज तक और टेलीफोन एक्सचेंज से अति हुई विद्युत् लहरों को स्पीकर तक आने का विद्युत् रास्ता बनाता है। ये बेसिकली तार और स्विच हैं।

4. आखरी हिस्सा हमारी आपस में की जा रही बातचीत से सम्बन्धित नही । यह सिग्नलिंग के लिए है। फोन उठाने पर आने वाली डायल टोन, किसी को फोन करने पर सुनाई देने वाली रिंगिंग या बिजी टोन, कोई हमें फोन करे तब बजने वाली घंटी, ये सब सिग्नलिंग के हिस्से हैं

ये सब तो था हमारे प्यारे घर में लगे टेलीफोन जी के नन्हे से डब्बे जी के भीतर। यह डब्बा हमारे घर के अन्य सामान की ही तरह हमारा है, यह खुद अपने आप में कम्युनिकेशन नेटवर्क का हिस्सा नहीं । आगे ये विद्युत् तरंगे कैसे एक से दूसरी जगह पहुँचती हैं, वह कम्युनिकेशन का हिस्सा है।

यह कैसे होता है यह अगले भाग में। सॅटॅलाइट तक पहुँचते पता नहीं कितने भाग हो चुके होंगे।

चलिए फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद

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15 टिप्‍पणियां:

  1. बड़े काम का आलेख है। बहुत सी नई बातों का पता चला।

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  2. वाकई काम का है , अनूठा तो है ही !!
    आभार आपका !

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  3. अभी तक का पाठ समझ आ गया, आगामी कडि़यों की प्रतीक्षा रहेगी।

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  4. बहुत ही अच्‍छा प्रयास .... अच्‍छी जानकारी देता यह आलेख
    आभार

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