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गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

Upanisha4 Katha Upanishad उपनिषद सन्देश 4

कठ उपनिषद, हिन्दू धर्म के प्रमुख ११  उपनिषद् संदेशों में एक है।  बालक नचिकेता ने यमराज से जो शिक्षा पायी उस ज्ञान की यह कथा है। 

उद्दालक जी ने महान यज्ञ किया, जिसमे अपना सब कुछ दान करना होता है।  किन्तु वे मोहवश प्रिय दुधारू गायें न दान कर, बूढी जर्जर गायों का दान कर रहे थे।  यह देख नचिकेता को लगा की यह पिताजी को पुण्य नहीं, बल्कि पाप दिशा में भेज रहा है।  नचिकेता बार बार पूछने लगा कि मैं आपका अत्यंत प्रिय हूँ - तो आप मुझे किसे दान देंगे ? चिढ कर पिता ने कह दिया कि मैं तुम्हे यमराज को देता हूँ।  बुद्धिमान नचिकेता पिता की आज्ञा मान कर तुरंत यमराज की तरफ चल पड़ा।

जब नचिकेता वहां पहुंचा तो यमराज वहां न थे, और बालक  बिना कुछ भी खाये पिए ३ दिन उनका रास्ता देखता रहा। जब यमराज लौटे तो उन्हें यह देख बड़ा दुःख हुआ कि यह ब्राह्मण बालक मेरे घर ३ दिन से भूखा प्यासा  है। उन्होंने अतिथि ब्राह्मण के अपने घर भूखे रहने के कारण बड़ी ग्लानि अनुभव की। उन्होंने नचिकेता को प्रणाम कर स्वागत किया और ३ वरदान मांगने को कहा।  इन्ही प्रश्नों के उत्तर इस उपनषद का सन्देश हैं। 

प्रथम वरदान के रूप में नचिकेता यह माँगता है कि मेरे पिता जी का क्रोध और उद्विग्नता दूर हो, जो यमराज सहर्ष प्रदान करते हैं। 

दूसरा वरदान : नचिकेता ने कहा स्वर्ग में मृत्यु और वृद्धावस्था का कोई भय नहीं है।  इस स्वर्ग को प्राप्त होने की साधन अग्नि की विद्या और रहस्य मुझे समझाइये।  यमराज ने इस उत्तम विद्या को नचिकेता को प्रदान किया।  उन्होंने विश्व के कारण रूप अग्नि यज्ञ की विधि, विद्या, आदि सब उस बालक को समझाया।  फिर यमराज ने उसे पूछा कि क्या तुम इस विद्या और विधि को अच्छी प्रकार समझ गए हो ? तब बालक ने ठीक जैसे यमराज ने कहा था, सारा ज्ञान ऐसे ही कह सुनाया।  यह देख यमराज बालक की कुशाग्र बुद्धि पर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी तरफ से यह वरदान दिया कि अब से यह अग्नि नचिकेता अग्नि कहलाएगी। 

तीसरे और अंतिम वरदान में बालक ने प्रश्न किया कि मृत्यु के बाद क्या होता है यह मुझे समझाइए।  कई जन कहते हैं कि मृत्यु के बाद हम रहते हैं,और कई कहते हैं कि नहीं रहते।  सत्य क्या है मुझे समझाइये।  यमराज ने बालक को इस प्रश्न से हटाने का प्रयास किया और कहा कि यह तो देवताओं के भी ज्ञान सीमा से बाहर का ज्ञान है, इसे छोड़ो और जो कुछ चाहो मांग लो।  जितना लंबा जीवन चाहो, दीर्घजीवी संतान, धन, राज्य, संपत्ति, अद्वितीय सुंदर स्त्रियां सब मांग लो लेकिन यह वरदान बदल दो। लेकिन नचिकेता किसी प्रलोभन में न आया और विनम्रता से बोला - हे यमदेव, आप ही ने कहा कि यह ज्ञान अद्वितीय है और देवताओं को भी दुर्लभ है।  तब मैं आपसे बेहतर गुरु कहाँ पाऊंगा ? आप मुझे यही वरदान दीजिये।  बहुत प्रयास पर भी बालक को अडिग देख यमराज अति प्रसन्न हुए और कहा, हे बालक, तुमने बड़े से बड़े प्रलोभन में न आकर ज्ञान की दृढ़ इच्छा पर अपना मन स्थिर रखा।  मूर्ख लोग अज्ञान में भटक जाते हैं लेकिन तुम अपने लक्ष्य की मार्ग पर अडिग हो, और मैं तुम्हारे जैसा पात्र पा कर अति प्रसन्न हूँ, और मैं तुम्हे यह गूढ़ ज्ञान देता हूँ। 

आत्मा के बारे में शिक्षा चाहने वाले, और इस ज्ञान को देने और समझा पाने वाले भी दुर्लभ है।  यह ज्ञान सिर्फ सद्गुरु द्वारा ही मिलेगा, विचार, तर्क आदि से नहीं। तुम जैसा शिष्य पाकर मैं प्रसन्न हूँ, तुमने मेरे द्वारा दिखाई अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति , अति उच्च धार्मिक कर्मों के फल स्वरूप पाया जाने वाला स्वर्ग, कर्मों की उच्चता से प्राप्त होने वाली ख्याति, यह सब ऐ बुद्धिमान नचिकेता, मेरे दिखाने पर तुमने यह सब देख लिया और देख कर भी इसे जाने दिया है, त्याग दिया है।  तुम इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए सब प्रकार सुपात्र हो।

आत्मचिंतन और कठिनता से मिलने वाले परमात्मा को पाकर जीव सुख दुःख से पार हो कर परम आनंद स्रोत को पा लेता है।  नचिकेता पूछता है - सही गलत के, कर्म अकर्म के और भूत भविष्य के ऊपर आप क्या देखते हैं ?

यमराज कहते हैं - वह जिसे वेद प्रमाणित करते हैं और तप घोषित करते हैं, जिसके लिए लोग ब्रह्मचर्य का जीवन बिताते हैं - वह है -  अक्षर "ॐ" ... चिरस्थायी अमर आत्मा है "ॐ"।  यही परम् उद्देश्य है, यही परम् लक्ष्य है।  इस एक "ॐ" मनुष्य का सबसे श्रेष्ठ सहारा है - इससे व्यक्ति ब्रह्म प्राप्ति कर सकता है। 

ज्ञानरूप आत्मा न जन्मती है, न मरती है, न यह किसीसे जन्मी है, न ही इससे कोई जन्म लेता है।  यह शाश्वत है।  शरीर के मारे जाने या मर जाने पर यह नहीं मरती।  जो समझते हैं की यह मारता है या मारा जाता है, वे दोनों ही नहीं जानते हैं।  आत्मा छोटे से भी छोटी और महान से भी महान है, यह प्रत्येक जीव के हृदय में वास करती है ।

एक रथ के बारे में विचार करें तो जैसे, रथ का स्वामी आत्मा है।   इन्द्रियाँ रथ के अश्व हैं और इन्द्रियों के विषय वे मार्ग जिन पर घोड़े रथ को ले जा रहे हैं।  मन लगाम और बुद्धि सारथी है। जिस रथ के अश्व सारथी के नियंत्रण में हैं वह रथी  सुख पूर्वक अच्छे रास्ते पर रमण करती है, और जो घोड़े सारथी  के नियंत्रण में नहीं, वह रथ पथ से हट जाता है और रथी उस राह पर जाता है।  आत्मा मन और बुद्धि से जुड़ कर भोक्ता बन जाती है।  जो आत्मा मन से अलिप्त है वह रथ के मार्ग से प्रभावित नहीं होती, लेकिन जब लिप्त हो जाती है तो अश्वों के ही मार्ग पर भटक जाती है और जन्म मरण के मार्गों पर भटकता रहता है।  जो अलिप्त है वह इस सब से छूट जाता है और लक्ष्य तक पहुँच जाता है।  वह परम् लक्ष्य है - परम् ब्रह्म परमेश्वर परमात्मा का परम् धाम।

इन्द्रियों के विषय इन्द्रियों से बलवान हैं, उनसे बलवान है मन, उससे बलवान है बुद्धि। बुद्धि से श्रेष्ठ है महान आत्मा उससे बड़ी है भगवान की माया, अव्यक्त प्रकृति।  इस सब से श्रेष्ठ है परमेश्वर।  उससे महान कुछ भी नहीं , वह परम लक्ष्य है।  आत्मा सब जीवों में है, लेकिन सब पर प्रकट नहीं होती।  सिर्फ उन महान ऋषि मुनि जो सूक्ष्म तत्व को जानते हैं, सिर्फ वे भगवान के आश्रय से अपने भीतर स्थित आत्मा को देख पाते हैं। 

व्यक्ति को चाहिए कि वह इन्द्रियों को मन में, मन को बुद्धि में, बुद्धि को महान आत्मा में और आत्मा को परमात्मा में शांत करे। 

उठो - अपने वरदानों को समझो।  उस्तरे से भी तेज धार इस ज्ञान पर तुम चलो और अपने लक्ष्य को प्राप्त करो।

जो इस ज्ञान को सुनेगा, समझेगा और दूसरों को समझाएगा, वह महान हो जाएगा।  जो इसे ब्राह्मणो को, और मृत्यु पर आयोजित समारोह में समझाएगा, वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करेगा।

इस आत्मा का निवास भीतर है और इन्द्रियाँ बहिर्मुखी हैं।  इसलिए इन्द्रियों द्वारा आत्मा को नहीं जाना जा सकता है। लेकिन बुद्धिमान जिज्ञासु व्यक्ति ने अपनी दृष्टि भीतर को मोड़  दे तो उस द्वारा आत्मा के दर्शन किये जा सकते हैं ।  ज्ञानी आत्मा को विवेक से समझ कर अस्थिर अस्थायी संसार में अलिप्त हो जाता है।  आत्मा द्वारा ही सब कुछ अनुभव किया जाता है, इससे कुछ भी छिपा नहीं।  परमात्मा की वजह से व्यक्ति जागते सोचते सब कुछ अनुभव करता है - शोक का कोई कारण नहीं है।  परमात्मा सब पर शासन करते हैं, जो व्यक्ति उन परमात्मा को भीतर जान ले वह फिर कहीं नहीं भागता।

प्राचीन काल में परमात्मा जल से ब्रह्मा के रूप में प्रकट थे।  वे अपने संकल्प से सब जीवों के हृदय में वास करते हैं। देव माता अदिति सब जीवों के साथ जन्मी है और उनके हृदय में रहती है।  जातिवेदा अग्नि जो आग की छड़ों में वैसे ही छिपी है जैसे गर्भवती स्त्री अपने गर्भ में संतान को छुपाए हुए रहती है।  यही अग्नि परमेश्वर रूप है।  सूर्य जहाँ से आते है और जहां विश्राम करते हैं, यही परमेश्वर हैं। 

जो इस लोक में है वह सब उस लोक में भी है, और जो वहां है वह यहां भी है।  जो इन में भिन्नता देखे वह भटकता रहता है।  इसमें कोई विविधता नहीं - जो इसे विविधता में देखे वह भटक जाता है।  भूत वर्तमान और भविष्य को नियंत्रित करने वाला परमात्मा मनुष्य के हृदय  निवास करता है। वह हमेशा था, है,  और रहेगा।  वह अमर और सदा रहने वाला है।  जैसे वर्षा कहीं भी हो, पानी नीचे को बह आखिर एक ही स्थान पहुंचता है - ऐसे ही  अन्ततः हर व्यक्ति अंततः परम ब्रह्म में विलीन होता है ।

शरीर एक ११ द्वारों वाला शहर है।  व्यक्ति इस में लिप्त नहीं हो तब ही परम धाम पहुंचता है। परमात्मा हर जीव के साथ उसके मन में निवास करता है जैसे दो पक्षी एक डाल पर बैठे हैं। जीवात्मा वह  पक्षी है जो फल खा रही है, और परमात्मा वह पक्षी है जो इस पक्षी को फल खाते देख रहा है। 

एक ही वायु , जो सारे संसार में अपना निराकार अस्तित्व रखती है, वह जिसमे प्रवेश लेती है उसका आकार ले लेती है। ऐसे ही आत्मा भी अलग अलग आकार लेती है। सूर्य सकल विश्व की आँख है - और आँख अपने स्वारा देखे गए दृश्यों से दूषित नहीं होती।  ऐसे ही परमात्मा सब में है लेकिन लिप्त नहीं होता।  जो ज्ञानी अपने भीतर के परमात्मा को निरंतर देखते हैं वे उसके प्रकाश से प्रकाशित हैं।  उस परमात्मा के लोक में सूर्य  नहीं चमकते, क्योंकि ये सब उस  प्रकाश  से ही तो प्रकाशित होते हैं।

यह प्राचीन पीपल का पेड़ है जिसकी जड़ें ऊपर और टहनियां नीचे को हैं। सब इसी मूल पर टिके हैं।  सब कुछ परम् में ही जन्मता है , उसी में चेष्टा करता है, उस में स्थापित है।  इसी परमात्मा के भय से इंद्र, वायु सूर्य अपने अपने निर्धारित कर्म करते हैं ।जो व्यक्ति इस शरीर में रहते हुए परमात्मा को देख लेता है वह मुक्त हो जाता। है  जैसे साफ़ शीशे में वस्तुएं दिखती हैं, मैले शीशे में नहीं,ऐसे ही शुद्ध बुद्धि मन ही परमात्मा का दर्शन कर सकता है ।

इन्द्रियाँ प्रकृति में विहार करती हैं. शांत परमात्मा में नहीं पहुंचती हैं।  परमात्मा बिना किसी प्रकृति का है, वह मनुष्य की दृष्टि की सीमा से बाहर है - उसे मानवीय आँखों से नहीं देखा जा सकता।  उसे सिर्फ चिंतन, ज्ञान, कर्म और भक्ति से देखा जा सकता है।  सब चेष्टाओं को त्याग कर इन्द्रियों के दृढ़ और संतुलित नियंत्रण से परमेश्वर पर ध्यान स्थित होता है - यही योग है।  परमात्मा को मन वाणी या दृष्टि से नहीं पाया जाता - उसके अस्तित्व को स्वीकारने उसकी उत्कट अभिलाषा रखने पर ही उसे पाया जा सकता है।    गांठें काट कर नश्वर जीव अमर हो जाता है।  हृदय से सर के शिखर को जाने वाली एक नाड़ी "सूक्ष्मणा" मनुष्य को उच्च दिशाओं में ले जाती है, और अन्य सब नाड़ियाँ नीचे के लोकों में ले जाती हैं।  परमेश्वर को शरीर से अलग सही रूप में पवित्र और अमर रूप में जानो।

तब नचिकेता यमराज के वचन सुन बरम ज्ञान को प्राप्त हुआ।  इस उपनिषद को सुन और समझ सकने वाला व्यक्ति भी परम् लक्ष्य को प्राप्त होगा। 

ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ॐ



रविवार, 29 अप्रैल 2018

Planet corot7b Stone rain here

Corot 7 b नामक ग्रह पर बरसात हम जैसी नहीं होती। यहां   बरसते हैं पत्थर।

  विश्वास नहीं होता ? आइए सुनिए यह कैसे होता है ।

  इस ग्रह पर  एक तरफ  करीब 3000 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान है। इस तापमान से पत्थर पिघल कर और सूख कर भाप बन जाते हैं , और आसमान में उड़ जाते हैं ।  जब यह  पत्थरों की वाष्प ग्रह के दूसरी तरफ पहुंचती है  , तो वहां का तापमान काफी कम पाती है ।

 यह तापमान करीब-करीब 200 डिग्री सेंटीग्रेड है । धरती जितना कम नहीं , लेकिन इस तापमान पर यह वाष्पीकृत पत्थर पहले बादल , और फिर मैग्मा बनकर बरसने लगते हैं ।

नीचे आते आते यह मैग्मा  अपने जमने के तापमान से कम होने से फिर से पत्थर बन चुका होता है । इस तरह वहांँ की बारिश पानी की नहीं , पत्थर की होती है ।

आप इसे धरती पर गिरने वाले ओलों जैसा समझ सकते हैं  । फर्क यह है कि यहां के ओले पानी के बने हैं जो बर्फ बन चुका है , और वहां के ओले पत्थरों के बने हैं ।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

time dilation and length contraction part 2 समय का फैलाव एवं लम्बाई में सिकुड़न भाग दो


भाग एक (समय कैसे धीमा हो जाता है?) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
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time dilation at light velocity part 2 समय का फैलाव एवं लम्बाई में कमी भाग दो 
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इस भाग में हम length contraction  या प्रकाश वेग से गतिमान वस्तु की लम्बाई में आई कमी पर बात करेंगे

यदि आपने पिछले भाग नहीं पढ़ा है तो ऊपर लिंक क्लिक कर के उसे पढ़ आइये - तब यह भाग आसानी से समझ पाएंगे। वहां हमने यह समझा कि समय का फैलाव कैसे होता है और कैसे स्पेशशिप में गया astronaut जब धरती पर लौटता है तो उसके हम उम्र लोग शायद बूढ़े हो चुके होंगे और वह  अब भी तकरीबन उसी उम्र का/ की  रह गया होगा।


यह सिर्फ इतना ही नहीं होता जितना मैंने पिछले भाग में कहा। यहां क्योंकि einstein के अनुसार दोनों ही आब्जर्वर एक दूसरे को गतिमान और स्वयं को स्थिर मान रहे हैं और दोनों समझ रहे है की उनकी घड़ी नार्मल और दूसरे की धीमी है - इससे तो दोनों को यही लगना चाहिए कि दूसरा कम उम्र का रह गया और मेरी उम्र नार्मल बढ़ी।  तबै जब वह व्यक्ति धरती पर लौटेगा तो कौन बूढ़ा होगा और कौन जवान ? यह twin paradox कहलाता है क्योंकि ऐसा तो नहीं हो सकता कि दोनों ही अपने को बूढ़ा और दूसरे को जवान पाएं लौटते हुए ? लेकिन ऐसा नहीं होता - स्पेस से लौटा व्यक्ति ही कम उम्र का रह जाता है।  यह gravity के कारण और समय की रफ्तार पर इसी गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से होता है - यह बात किसी और पोस्ट में करेंगे । 

इस भाग में हम length contraction  या प्रकाश वेग से गतिमान वस्तु की लम्बाई में आई कमी पर बात करते हैं।

मैं जानते बूझते मुख्य पोस्ट में गणितीय समीकरण नहीं लिख रही हूँ - यह समीकरण बाद में हर पोस्ट में जोड़ दूँगी।  सिर्फ concept  या सिद्धांत भर समझने समझाने के प्रयास हैं ये पोस्ट्स। यह सब पढ़ने सुनने में अजीब लगता है क्योंकि हम आम जीवन में इस परिस्थिति को नहीं देखते हैं।  आम जीवन में कोई भी प्रकाश की गति पर नहीं चलता और आम गति पर रिलेटिविटी के सिद्धांत इतना कम असर करते हैं कि हमारे अनुभव से हमें यह पता ही नहीं चलता।

मान लीजिये "शिल्पा" धरती पर है और "नीता" एक प्रकाश गति के समीप की गति से उड़ते विमान पर।  यह भी मानिये कि  नीता के विमान के आगे और पीछे उसकी ही ठीक बराबर गति से चलते दो विमान और हैं - कुल तीन विमान हैं - ऐसे:

तीनों ही विमान प्रकाश के करीब की गति से उलटे हाथ से सीधे हाथ की तरफ बढ़ रहे हैं।  अब समय के एक पल में नीता एक प्रकाश बिंदु दोनों तरफ भेजती है - कि हम तीनों को एक साथ तीनों विमानों की गति बढ़ानी है।  क्योंकि प्रकाश की गति दोनों दिशाओं में समान है और नीता के लिए अपनी ही गति से उड़ते तीनों विमान स्थिर दिख रहे हैं। (X, Y, and Z) , तो नीता के लिए अपने आगे और पीछे वाले विमानों तक उसकी भेजी हुई किरण एक संग पहुंचेगी (दोनों तरफ बराबर दूरी है और प्रकाश गति भी दोनों तरफ बराबर है) तो नीता के दृष्टिकोण से तीनों विमान एक ही साथ अपनी गति बढ़ाएंगे - तो तीनों की दूरी पहले जितनी ही बनी रहेगी। (उदाहरण के लिए यदि आप ट्रेन के भीतर बैठे हैं तो आपके लिए आपके आगे वाला और आपके पीछे  वाला कम्पार्टमेंट आप ही की गति से चल रहा होने से स्थिर प्रतीत होता है , यदि आप दोनों तरफ एक साथ दो बॉल फेंकें तो वे दोनों एक साथ बराबर दूरी के अगले पिछले कम्पार्टमेंट को लगेंगी। तो नीता के लिए तीनों विमान एक साथ उतनी ही दूरी पर बने रहेंगे। जबकि प्लेटफॉर्म पर खड़े आपके मित्र के लिए आप तीनों ही स्थिर नहीं हैं बल्कि समान गति से आगे बढ़ रहे हैं)

अब धरती पर स्थिर खड़ी शिल्पा क्या देखेगी ? उस आब्जर्वर के लिए तो तीनों विमान गतिमान हैं - तो Y से निकली प्रकाश किरण जब X की तरफ बढ़ रही है , तब खुद X भी तो Y की तरफ बढ़ रहा है न ? तो प्रकाश किरण को X  तक पहुँचने के लिए कम दूरी तय करनी है। ऐसे ही  Z की तरफ प्रकाश बढ़ रहा है और Z  खुद भी Y से दूर जा रहा है।  तो उसे पीछे से दौड़ कर पकड़ने के लिए प्रकाश किरण को अधिक दूरी तय करनी होगी।  यह कुछ ऐसा है
अब शिल्पा की दृष्टि में विमान  X  को गति बढ़ाने का सिग्नल पहले मिला और Z  को  आखरी में।  तो X तुरंत गति बढ़ा देने से Y के कुछ पास पहुंचेगा और Y खुद भी गति बढ़ा कर  Z  के पास पहुंचेगा।  तो अब Z अपनी गति बढ़ाएंगे लेकिन तब तक तीनों की आपसी दूरी शिल्पा के दृष्टि कोण में पहले से कम रह गयी।  नीता के दृष्टिकोण में यह दूरी अब भी उतनी ही है।  यह देखिये :
 इसी तरह हम सोचें कि हर जहाज भीतर छोटे टुकड़े जहाजों से बना है - तो उनमे से हर एक को एक दूसरे के पास देखेगी धरती पर खड़ी शिल्पा - जबकि जहाज में बैठी नीता के लिए कोई बदलाव नहीं है क्योंकि उसकी दृष्टि में तीनों विमान स्थिर हैं।

यह है लम्बाई घटने  का सिद्धांत।

मजे  की बात यह है कि हर आब्जर्वर खुद को स्थिर और दूसरे को चलायमान देख रहा है।  तो नीता को शिल्पा का संसार छोटा होता दिख रहा होगा जबकि शिल्पा को नीता का। 

यह भी पैराडॉक्स ही है।

तो अब विमान में बैठी नीता यदि प्रकाश वेग से चली तो उसके लिए बाहरी संसार इतना छोटा हो जाएगा कि वह पल भर गुज़रने के पहले ही पूरा संसार देख लेगी।   और धरती पर रुकी शिल्पा के लिए नीता की समय घड़ी पूरी तरह धीमी होते होते रुक से गयी है - तो शिल्पा को लगेगा कि नीता ने (नीता की घड़ी के अनुसार) पल भर में पूरे संसार का चक्कर लगा लिया है।

यही है प्रकाश वेग पर चलते विमान की लम्बाई घटने का सिद्धांत।

शुक्रवार, 30 मार्च 2018

time dilation 1 समय का फैलाव भाग एक

क्या होता है समय का फैलाव ? न्यूटन और आईन्स्टीन के सिद्धांतों का आपसी प्रत्यक्ष विरोधाभास - कैसे और क्या और क्यों?

स्पीड या गति क्या है ? आप यदि कुर्सी पर बैठे यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं तो आप स्थिर हैं या गतिमान ? यह इस पर निर्भर है कि आप किस reference या संदर्भ में अपने बारे में कह रहे हैं।  यदि आप अपने घर के बिस्तर पर बैठे हैं तो शायद आप कहें की आप स्थिर हैं और यदि आप कार की कुर्सी पर बैठे हैं और गाड़ी आपके ऑफिस से घर जा रहे हों तो आप शायद कहें की आप गतिमान हैं।  लेकिन क्या यह सच में सत्य है? आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब तो धरती पर हैं - और धरती स्वयं ही गतिमान है।  धरती अपनी धुरी पर भी घूम रही है और सूर्य के आस पास भी।  इसी तरफ सूर्य भी तो हमारी आकाशगंगा में गतिमान ही है न ? तो जब आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब भी आप गतिमान हैं।

गति या speed या velocity  - ये सब शब्द in motion  या चलायमान होने के संदर्भ में हैं। गति किसी न किसी रिफरेन्स के संदर्भ में ही डिफाइन या परिभाषित हो सकती है।  हम कहते हैं

v = d / t (यानी गति है दूरी प्रति समय इकाई )

 कुछ केस देखते हैं

१. तीन बच्चे हैं - पार्थ विजय और विनय।  पार्थ और विजय एक चलते ट्रक में खड़े हैं और विनय सड़क के किनारे उन्हें देख रहा है। ट्रक ५० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा है। पार्थ और विजय एक दूसरे को ठहरा हुआ देख रहे हैं और विनय उन्हें ५० किमी/घंटे से चलता देख रहा है। इसके उलट पार्थ और विजय अपने  परिपेक्ष्य से विनय को ५० किमी प्रति घंटे की गति से पीछे जाते देख रहे हैं।

२. पार्थ और विजय एक बॉल एक दूर की तरफ फेंकने पकड़ने का खेल खेल रहे हैं - दोनों के लिए बॉल ५ किमी / घंटे पर चलती है लेकिन विनय के लिए दूर जाती बॉल ५० +५=५५किमी/घंटे पर चलती दिखेगी और लौटती हुई ५०-५ =४५किमी/घंटे पर।

३. यानी कि गति की गणना देखने वाले की relative स्थिति पर है - यही सापेक्षता है।   (यह सब शून्य त्वरण या zero acceleration पर inertial frame में परिभाषित है। )

४. लेकिन प्रकाश की गति किसी भी निश्चित माध्यम में स्थिर रहती है - अंतरिक्ष के शून्य में यह तकरीबन ३००,०००,००० मीटर प्रति सेकंड है।

५ प्रकाश की गति रिफरेन्स या रिलेटिव फ्रेम पर निर्भर नहीं है।  स्थिर प्रेक्षक (stationary observer) के लिए भी प्रकाश उतनी ही गति से गतिमान है और चलते हुए प्रेक्षक लिए भी। और यदि  प्रकाश किसी गतिमान जहाज पर से भी चला हो तो उसके अपने वेग में कोई परिवर्तन नहीं आएगा - गति न तो बढ़ेगी न ही घटेगी - उतनी ही होगी जितनी थी। अर्थात ३००००००००मीटर प्रति सेकंड।

६ अब मानिये की एक जहाज समुद्र में रुका हुआ है और एक १००० किमी/घंटे की रफ्तार से चल रहा है - और एक ही समय पर दोनों से एक समान लेज़र बीम / किरण आगे की दिशा में दागी गयी - तो "दोनों" जहाजों पर खड़े प्रेक्षकों के लिए "दोनों" लेज़र बीम एक ही गति से बढ़ती दिखेंगी - इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि  कौन किस जहाज पर है या कौनसी बीम किस जहाज से चली है -   क्योंकि प्रकाश की गति स्रोत की गति से नही जुड़ती / घटती। बल्कि किसी भी लहर की गति उसके स्रोत की गति से नहीं जुड़ती।  अगर जुड़ती होती तो  - जब आप समुद्री जहाज़ में हैं तो आपके जहाज़ से उठी लहरें आपके आगे होतीं । जबकि हमेशा तेज चलते जहाज की लहरें उसके पीछे ही होती हैं। किसी भी जहाज के चित्र को देखिएगा :)

७. अब मानिये कि  २ समानांतर दर्पण हैं - दो अलग वाहनों में. दोनों ही वाहन रुके हुए हैं।  एक वाहन में पार्थ बैठा है दूसरे में विनय।  दोनों वाहन स्थिर हैं।  प्रकाश अपनी स्थिर गति से दोनों दर्पणों के बीच लगातार प्रतिबिंबित हो रहा है। ऐसे



 जहां "c " प्रकाश की गति है और t बीम के पहले दर्पण से चल कर दूर से टकरा कर वापस पहले तक लौट आने का समय है।

८. अब मानिये कि विनय की गाडी स्थिर है और पार्थ का जहाज चल रहा है।  अब पार्थ को तो अपने दर्पण अब भी वैसे ही दिख रहे हैं लेकिन विनय को पार्थ के दर्पण गतिमान दिखेंगे।  कुछ ऐसे



या ऐसे
                  

अब पार्थ तो उस जहाज /विमान/ स्पेस शिप में है तो उसे लग रहा है कि प्रकाश सिर्फ d +d =2d चला है लेकिन रुके हुए विनय को लगता है प्रकाश s=s=2s  दूरी चल कर वापस दर्पण पर पहुँच रहा है -  क्योंकि वह पार्थ के जहाज की गति के साथ प्रकाश को चलते देख रहा है।

९ अब यदि प्रकाश की गति नहीं बदल सकती और पार्थ और विनय के लिए दूरी अलग अलग है , तब यह कैसे संभव हो सकता है ? आइंस्टीन जी की हिसाब से यह होने का कारण है टाइम डायलेशन।  अर्थात - पार्थ के लिए समय धीरे गुज़रेगा।  और समीकरण होगा

C = 2D / TIME FOR PARTHA = 2D/ T_P
   = 2S / TIME FOR VINAY = 2S / T_V

अब जब दोनों के लिए C एक है तब यह कैसे हो सकता है ??? यह ऐसे हो सकता है की समय दोनों के लिए अलग हैं।  जब S  बड़ा है D से, और दोनों का C एक बराबर है - तब T_V अवश्य ही T_P से बड़ा होगा। 

१०. अर्थात - चलते हुए जहाज में बैठे पार्थ का समय , रुके हुए जहाज में बैठे हुए विनय के समय से धीरे गुज़रेगा।  यही समय का फैलाव है।  और इस पर कई वैज्ञानिक परीक्षण हो चुके हैं।  दो परफेक्ट अटॉमिक क्लॉक्स को एक साथ सिंक्रोनाइज़ कर के एक को धरती पर स्थिर रख दूसरी को विमान में घुमाया गया - तो लौटने के बाद विमान से आयी घड़ी हर बार इस गणितीय अपेक्षा के अनुसार ही स्थिर रखी घड़ी से पीछे निकली।  तो यह कोई मन की उड़ान नहीं है।  यह सच ही में होता है

वैसे इसके साथ ही स्पेस कंट्रेरक्शन भी होता है - लेकिन अभी इतना ही।  अगले भाग में इससे आगे चर्चा होगी।