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पहला भाग
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कथा स्ट्रिक्टली समय क्रम में नहीं होगी
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श्री महाविष्णु शेष शैया पर लेटे थे और उनकी नाभि से विशाल डंठल वाला कमल खिला - जिस पर ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा ने अपने आस पास देखना चाहा , तो उनके चार दिशाओं में चार चेहरे हुए। उन्होंने अपने आठ नेत्रों से सब ओर देखा। सब तरफ शून्य ही दिखता था। तब उन्होंने अपने आप को जानने के लिए कमल के डंठल के भीतर प्रवेश किया लेकिन कितना ही गहरा उतरने पर भी कुछ न मिला। वे वापस कमल पर लौट आये। उन्हें अपने भीतर शब्द सुनाई दिया "तपस तपस तपस"। तब उन्होंने सौ वर्षों तक तप किया। तत्पश्चात उनके अंतर्मन में विष्णु जी की छवि उभरी, सृष्टि का ज्ञान , और वेद प्राप्त हुए, और सृष्टि रचने की प्रेरणा हुई।
पहले स्थूल जगत कि रचना हुई। काल परमात्मा की सूक्ष्म शक्तियों और और स्थूल सृष्टि को प्रथक करते है। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से सृष्टि चलती है। नौ स्तर पर सृष्टियाँ हैं - महत तत्व , अहंकार , इन्द्रियां , ज्ञान और कर्म ऊर्जा , मन , विभ्रांति करने वाली माया , अचल जगत (ग्रह नक्षत्र सितारे पृथ्वियां जल थल पेड़ पौधे …… ) , चल जीवन के निचले रूप (कीड़े, पशु पक्षी …… ).
इसके बाद मानव, फिर देव, पितर, असुर / दानव, गन्धर्व और अप्सराएँ , यक्ष और राक्षस , सिद्ध चरण और विद्याधर , भूत प्रेत पिशाच ; महामानव आदि हुए। [तत्व और समय के माप कोई जानना चाहे तो यहाँ (लिंक क्लिक करें) उपलब्ध हैं। ]
स्थूल जगत रचने के पश्चात ब्रह्मा ने अपनी शक्ति से चार "कुमारों" (सनक , सनन्दन , सनातन, सनत कुमार) को प्रकट किया - किन्तु कुमारों ने संतति बढाने से मना कर दिया यह कहते हुए कि हम बालक ही रहेंगे - क्योंकि हमें "बड़ों" के अवगुण नहीं चाहिए। इस पर ब्रह्मा जी को क्रोध तो आया किन्तु उन्होंने अपने क्रोध को तुरंत सम्हाल लिया। तब उनका क्रोध उनके मस्तक से एक रोते हुए लालिमा युक्त नीलवर्ण बालक के रूप में प्रकट हुआ - जो "रूद्र" हुए। रूद्र के अन्य नाम हैं - मन्यु , मनु , महिनाशा , महान, शिव , ऋतध्वज , उग्ररेता , भव , काल , धृतवृता। रूद्र की पत्नी रुद्राणी होंगी - धी , धृति , रसाला , उमा , नियुत, सर्पि , इला , अम्बिका , इरावती , स्वधा दीक्षा। क्रोध से उत्पन्न हुए रूद्र और रुद्राणी की अगणित संतानें हुईं जो उन जैसी ही क्रोधित नेत्रों को लिए सृष्टि को समाप्त करने उद्धत हुईं। ब्रह्मा ने रूद्र से कहा - हे पुत्र - ऐसी संतति तो सृष्टि का नाश कर देगी। हे प्रिय पुत्र - तुम तपस में लीन होओ। तब रूद्र तपस में लीन हुए।
तत्पश्चात ब्रह्मा जी ने दस मानस पुत्र उतपन्न किये :-
मारीचि
अत्रि
अंगीरा
पुलह
पुलत्स्य
कृतु
वशिष्ठ
दक्ष
भृगु
नारद
नारद पूर्व सृष्टि के पूर्वजन्म के आशीर्वचन से अपना सत्य स्वरुप नहीं भूले थे - तो उन्होंने श्री नारायण जी कि भक्ति में ही जीवन जीने का निर्णय लिया।
ब्रह्मा जी के चार चेहरों से चार वेद प्रगट हुए। आयुर्विद्या , शास्त्र ज्ञान , संगीत , वास्तुशिल्प विद्या सब वेदों से प्रकट हुए। क्रोध , काम , लोभ आदि भी ब्रह्मा से प्रकट हुए। आयुर्विद्या , शास्त्र ज्ञान , संगीत , वास्तुशिल्प विद्या सब वेदों से प्रकट हुए। वेदों के बाद ब्रह्मा ने अपने चारों चेहरों से पुराण अभिव्यक्त किये। ब्रह्मा के ह्रदय से काम प्रकट हुए , उनकी छाया से कर्दम ऋषि।
उनके शरीर से एक पुरुष और एक स्त्री आकृति प्रकटे , जिनके नाम हुए - मनु और शतरूपा।संतति के रहने के लिए धरनी आवश्यक थीं - जो पिछली प्रलय से रसातल में ही थीं। पृथ्वी को रसातल से निकाल्ने के लिए श्री विष्णु वराह रूप में प्रकट और रसातल से पृथ्वी को बाहर लाये ( इसी प्रक्रिया में उन्होंने हिरण्याक्ष का वध भी किया था - जो कथा आगे आएगी ) । मनु और शतरूपा जी ने ब्रह्मा जी के आदेश से संतति बढाने के लिए पांच संतानों को जन्म दिया। ये थे - प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक पुत्र और आकूति , देवहुति , एवं प्रसूति नामक कन्याएं।
ब्रह्मा की पुत्री हुईं "वाक" जिनके प्रति ब्रह्मा ही आकर्षित हो गए। किन्तु पुत्री उनकी ओर ऐसे कोई भाव न रखती थीं। तब मारीचि और अन्य पुत्रों ने विनम्रता से अपने पिता से कहा कि इससे पूर्व किसी ब्रह्मा ने यह नहीं किया। आप सृष्टा हैं - आप अपनी ही पुत्री से कामभाव रखेंेगे तो सृष्टि किस दिशा में अग्रसर होगी ? अपने प्रजापति पुत्रों की बात से ब्रह्मा लज्जित हुए और तुरंत अपनी देह त्याग दी। यह त्यागी हुई देह सब दिशाओं में भयंकर अंधकार रूप हुई।
आकूति का विवाह रूचि नामक प्रजापति से हुआ , देवहूति का कर्दम ऋषि से और प्रसूति का दक्ष प्रजापति से हुआ। इनसे संतति आगे बढ़ी।