कल क्वचिदन्यतोSपि पर यह कविता पढ़ी। इस पर टिप्पणी यह लिखी - और सोचती हूँ यहां भी सहेज ही लूँ :)
:)
जब इतना बड़का संसार
तत्वों के कॉम्बिनेशन से
एक्सिदेंटली बन सकता है,
जीवन संवर बिगड़ सकता है,
पीढियाँ बीत सकती हैं,
नदियाँ रीत सकती हैं,
आकाशगंगाएं उभर सकती हैं
धरतियां सँवर सकती हैं
बारिशों की छुवन से
बहारों के आगमन से
फूलों की कम्पन से
सूरज की तपन से
भीगती धरा की सतहों पर
अन्न उग जाता मिटटी के कण से
तब क्यों नहीं यह हो
जो आपकी कविता कह रही
संभावनाओं से सृजा संसार
संभावनाओं से मिले साथी
संभावनाओं की गलियों में
क्यों न खो सकते कहीं ?
:)
:)
जब इतना बड़का संसार
तत्वों के कॉम्बिनेशन से
एक्सिदेंटली बन सकता है,
जीवन संवर बिगड़ सकता है,
पीढियाँ बीत सकती हैं,
नदियाँ रीत सकती हैं,
आकाशगंगाएं उभर सकती हैं
धरतियां सँवर सकती हैं
बारिशों की छुवन से
बहारों के आगमन से
फूलों की कम्पन से
सूरज की तपन से
भीगती धरा की सतहों पर
अन्न उग जाता मिटटी के कण से
तब क्यों नहीं यह हो
जो आपकी कविता कह रही
संभावनाओं से सृजा संसार
संभावनाओं से मिले साथी
संभावनाओं की गलियों में
क्यों न खो सकते कहीं ?
:)
इतना कुछ होता रहा प्राकृतिक रूप में तो भावनाओं के ज्वार भाटे भी तो !
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी कविता की कविता भी !
:) thanks hai ji :)
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