क्या होता है समय का फैलाव ? न्यूटन और आईन्स्टीन के सिद्धांतों का आपसी प्रत्यक्ष विरोधाभास - कैसे और क्या और क्यों?
स्पीड या गति क्या है ? आप यदि कुर्सी पर बैठे यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं तो आप स्थिर हैं या गतिमान ? यह इस पर निर्भर है कि आप किस reference या संदर्भ में अपने बारे में कह रहे हैं। यदि आप अपने घर के बिस्तर पर बैठे हैं तो शायद आप कहें की आप स्थिर हैं और यदि आप कार की कुर्सी पर बैठे हैं और गाड़ी आपके ऑफिस से घर जा रहे हों तो आप शायद कहें की आप गतिमान हैं। लेकिन क्या यह सच में सत्य है? आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब तो धरती पर हैं - और धरती स्वयं ही गतिमान है। धरती अपनी धुरी पर भी घूम रही है और सूर्य के आस पास भी। इसी तरफ सूर्य भी तो हमारी आकाशगंगा में गतिमान ही है न ? तो जब आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब भी आप गतिमान हैं।
गति या speed या velocity - ये सब शब्द in motion या चलायमान होने के संदर्भ में हैं। गति किसी न किसी रिफरेन्स के संदर्भ में ही डिफाइन या परिभाषित हो सकती है। हम कहते हैं
v = d / t (यानी गति है दूरी प्रति समय इकाई )
कुछ केस देखते हैं
१. तीन बच्चे हैं - पार्थ विजय और विनय। पार्थ और विजय एक चलते ट्रक में खड़े हैं और विनय सड़क के किनारे उन्हें देख रहा है। ट्रक ५० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा है। पार्थ और विजय एक दूसरे को ठहरा हुआ देख रहे हैं और विनय उन्हें ५० किमी/घंटे से चलता देख रहा है। इसके उलट पार्थ और विजय अपने परिपेक्ष्य से विनय को ५० किमी प्रति घंटे की गति से पीछे जाते देख रहे हैं।
२. पार्थ और विजय एक बॉल एक दूर की तरफ फेंकने पकड़ने का खेल खेल रहे हैं - दोनों के लिए बॉल ५ किमी / घंटे पर चलती है लेकिन विनय के लिए दूर जाती बॉल ५० +५=५५किमी/घंटे पर चलती दिखेगी और लौटती हुई ५०-५ =४५किमी/घंटे पर।
३. यानी कि गति की गणना देखने वाले की relative स्थिति पर है - यही सापेक्षता है। (यह सब शून्य त्वरण या zero acceleration पर inertial frame में परिभाषित है। )
४. लेकिन प्रकाश की गति किसी भी निश्चित माध्यम में स्थिर रहती है - अंतरिक्ष के शून्य में यह तकरीबन ३००,०००,००० मीटर प्रति सेकंड है।
५ प्रकाश की गति रिफरेन्स या रिलेटिव फ्रेम पर निर्भर नहीं है। स्थिर प्रेक्षक (stationary observer) के लिए भी प्रकाश उतनी ही गति से गतिमान है और चलते हुए प्रेक्षक लिए भी। और यदि प्रकाश किसी गतिमान जहाज पर से भी चला हो तो उसके अपने वेग में कोई परिवर्तन नहीं आएगा - गति न तो बढ़ेगी न ही घटेगी - उतनी ही होगी जितनी थी। अर्थात ३००००००००मीटर प्रति सेकंड।
६ अब मानिये की एक जहाज समुद्र में रुका हुआ है और एक १००० किमी/घंटे की रफ्तार से चल रहा है - और एक ही समय पर दोनों से एक समान लेज़र बीम / किरण आगे की दिशा में दागी गयी - तो "दोनों" जहाजों पर खड़े प्रेक्षकों के लिए "दोनों" लेज़र बीम एक ही गति से बढ़ती दिखेंगी - इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन किस जहाज पर है या कौनसी बीम किस जहाज से चली है - क्योंकि प्रकाश की गति स्रोत की गति से नही जुड़ती / घटती। बल्कि किसी भी लहर की गति उसके स्रोत की गति से नहीं जुड़ती। अगर जुड़ती होती तो - जब आप समुद्री जहाज़ में हैं तो आपके जहाज़ से उठी लहरें आपके आगे होतीं । जबकि हमेशा तेज चलते जहाज की लहरें उसके पीछे ही होती हैं। किसी भी जहाज के चित्र को देखिएगा :)
७. अब मानिये कि २ समानांतर दर्पण हैं - दो अलग वाहनों में. दोनों ही वाहन रुके हुए हैं। एक वाहन में पार्थ बैठा है दूसरे में विनय। दोनों वाहन स्थिर हैं। प्रकाश अपनी स्थिर गति से दोनों दर्पणों के बीच लगातार प्रतिबिंबित हो रहा है। ऐसे
जहां "c " प्रकाश की गति है और t बीम के पहले दर्पण से चल कर दूर से टकरा कर वापस पहले तक लौट आने का समय है।
८. अब मानिये कि विनय की गाडी स्थिर है और पार्थ का जहाज चल रहा है। अब पार्थ को तो अपने दर्पण अब भी वैसे ही दिख रहे हैं लेकिन विनय को पार्थ के दर्पण गतिमान दिखेंगे। कुछ ऐसे
या ऐसे
अब पार्थ तो उस जहाज /विमान/ स्पेस शिप में है तो उसे लग रहा है कि प्रकाश सिर्फ d +d =2d चला है लेकिन रुके हुए विनय को लगता है प्रकाश s=s=2s दूरी चल कर वापस दर्पण पर पहुँच रहा है - क्योंकि वह पार्थ के जहाज की गति के साथ प्रकाश को चलते देख रहा है।
९ अब यदि प्रकाश की गति नहीं बदल सकती और पार्थ और विनय के लिए दूरी अलग अलग है , तब यह कैसे संभव हो सकता है ? आइंस्टीन जी की हिसाब से यह होने का कारण है टाइम डायलेशन। अर्थात - पार्थ के लिए समय धीरे गुज़रेगा। और समीकरण होगा
C = 2D / TIME FOR PARTHA = 2D/ T_P
= 2S / TIME FOR VINAY = 2S / T_V
अब जब दोनों के लिए C एक है तब यह कैसे हो सकता है ??? यह ऐसे हो सकता है की समय दोनों के लिए अलग हैं। जब S बड़ा है D से, और दोनों का C एक बराबर है - तब T_V अवश्य ही T_P से बड़ा होगा।
१०. अर्थात - चलते हुए जहाज में बैठे पार्थ का समय , रुके हुए जहाज में बैठे हुए विनय के समय से धीरे गुज़रेगा। यही समय का फैलाव है। और इस पर कई वैज्ञानिक परीक्षण हो चुके हैं। दो परफेक्ट अटॉमिक क्लॉक्स को एक साथ सिंक्रोनाइज़ कर के एक को धरती पर स्थिर रख दूसरी को विमान में घुमाया गया - तो लौटने के बाद विमान से आयी घड़ी हर बार इस गणितीय अपेक्षा के अनुसार ही स्थिर रखी घड़ी से पीछे निकली। तो यह कोई मन की उड़ान नहीं है। यह सच ही में होता है
वैसे इसके साथ ही स्पेस कंट्रेरक्शन भी होता है - लेकिन अभी इतना ही। अगले भाग में इससे आगे चर्चा होगी।
स्पीड या गति क्या है ? आप यदि कुर्सी पर बैठे यह ब्लॉग पढ़ रहे हैं तो आप स्थिर हैं या गतिमान ? यह इस पर निर्भर है कि आप किस reference या संदर्भ में अपने बारे में कह रहे हैं। यदि आप अपने घर के बिस्तर पर बैठे हैं तो शायद आप कहें की आप स्थिर हैं और यदि आप कार की कुर्सी पर बैठे हैं और गाड़ी आपके ऑफिस से घर जा रहे हों तो आप शायद कहें की आप गतिमान हैं। लेकिन क्या यह सच में सत्य है? आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब तो धरती पर हैं - और धरती स्वयं ही गतिमान है। धरती अपनी धुरी पर भी घूम रही है और सूर्य के आस पास भी। इसी तरफ सूर्य भी तो हमारी आकाशगंगा में गतिमान ही है न ? तो जब आप घर के बिस्तर पर भी बैठे हों तब भी आप गतिमान हैं।
गति या speed या velocity - ये सब शब्द in motion या चलायमान होने के संदर्भ में हैं। गति किसी न किसी रिफरेन्स के संदर्भ में ही डिफाइन या परिभाषित हो सकती है। हम कहते हैं
v = d / t (यानी गति है दूरी प्रति समय इकाई )
कुछ केस देखते हैं
१. तीन बच्चे हैं - पार्थ विजय और विनय। पार्थ और विजय एक चलते ट्रक में खड़े हैं और विनय सड़क के किनारे उन्हें देख रहा है। ट्रक ५० किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रहा है। पार्थ और विजय एक दूसरे को ठहरा हुआ देख रहे हैं और विनय उन्हें ५० किमी/घंटे से चलता देख रहा है। इसके उलट पार्थ और विजय अपने परिपेक्ष्य से विनय को ५० किमी प्रति घंटे की गति से पीछे जाते देख रहे हैं।
२. पार्थ और विजय एक बॉल एक दूर की तरफ फेंकने पकड़ने का खेल खेल रहे हैं - दोनों के लिए बॉल ५ किमी / घंटे पर चलती है लेकिन विनय के लिए दूर जाती बॉल ५० +५=५५किमी/घंटे पर चलती दिखेगी और लौटती हुई ५०-५ =४५किमी/घंटे पर।
३. यानी कि गति की गणना देखने वाले की relative स्थिति पर है - यही सापेक्षता है। (यह सब शून्य त्वरण या zero acceleration पर inertial frame में परिभाषित है। )
४. लेकिन प्रकाश की गति किसी भी निश्चित माध्यम में स्थिर रहती है - अंतरिक्ष के शून्य में यह तकरीबन ३००,०००,००० मीटर प्रति सेकंड है।
५ प्रकाश की गति रिफरेन्स या रिलेटिव फ्रेम पर निर्भर नहीं है। स्थिर प्रेक्षक (stationary observer) के लिए भी प्रकाश उतनी ही गति से गतिमान है और चलते हुए प्रेक्षक लिए भी। और यदि प्रकाश किसी गतिमान जहाज पर से भी चला हो तो उसके अपने वेग में कोई परिवर्तन नहीं आएगा - गति न तो बढ़ेगी न ही घटेगी - उतनी ही होगी जितनी थी। अर्थात ३००००००००मीटर प्रति सेकंड।
६ अब मानिये की एक जहाज समुद्र में रुका हुआ है और एक १००० किमी/घंटे की रफ्तार से चल रहा है - और एक ही समय पर दोनों से एक समान लेज़र बीम / किरण आगे की दिशा में दागी गयी - तो "दोनों" जहाजों पर खड़े प्रेक्षकों के लिए "दोनों" लेज़र बीम एक ही गति से बढ़ती दिखेंगी - इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि कौन किस जहाज पर है या कौनसी बीम किस जहाज से चली है - क्योंकि प्रकाश की गति स्रोत की गति से नही जुड़ती / घटती। बल्कि किसी भी लहर की गति उसके स्रोत की गति से नहीं जुड़ती। अगर जुड़ती होती तो - जब आप समुद्री जहाज़ में हैं तो आपके जहाज़ से उठी लहरें आपके आगे होतीं । जबकि हमेशा तेज चलते जहाज की लहरें उसके पीछे ही होती हैं। किसी भी जहाज के चित्र को देखिएगा :)
७. अब मानिये कि २ समानांतर दर्पण हैं - दो अलग वाहनों में. दोनों ही वाहन रुके हुए हैं। एक वाहन में पार्थ बैठा है दूसरे में विनय। दोनों वाहन स्थिर हैं। प्रकाश अपनी स्थिर गति से दोनों दर्पणों के बीच लगातार प्रतिबिंबित हो रहा है। ऐसे
जहां "c " प्रकाश की गति है और t बीम के पहले दर्पण से चल कर दूर से टकरा कर वापस पहले तक लौट आने का समय है।
८. अब मानिये कि विनय की गाडी स्थिर है और पार्थ का जहाज चल रहा है। अब पार्थ को तो अपने दर्पण अब भी वैसे ही दिख रहे हैं लेकिन विनय को पार्थ के दर्पण गतिमान दिखेंगे। कुछ ऐसे
या ऐसे
अब पार्थ तो उस जहाज /विमान/ स्पेस शिप में है तो उसे लग रहा है कि प्रकाश सिर्फ d +d =2d चला है लेकिन रुके हुए विनय को लगता है प्रकाश s=s=2s दूरी चल कर वापस दर्पण पर पहुँच रहा है - क्योंकि वह पार्थ के जहाज की गति के साथ प्रकाश को चलते देख रहा है।
९ अब यदि प्रकाश की गति नहीं बदल सकती और पार्थ और विनय के लिए दूरी अलग अलग है , तब यह कैसे संभव हो सकता है ? आइंस्टीन जी की हिसाब से यह होने का कारण है टाइम डायलेशन। अर्थात - पार्थ के लिए समय धीरे गुज़रेगा। और समीकरण होगा
C = 2D / TIME FOR PARTHA = 2D/ T_P
= 2S / TIME FOR VINAY = 2S / T_V
अब जब दोनों के लिए C एक है तब यह कैसे हो सकता है ??? यह ऐसे हो सकता है की समय दोनों के लिए अलग हैं। जब S बड़ा है D से, और दोनों का C एक बराबर है - तब T_V अवश्य ही T_P से बड़ा होगा।
१०. अर्थात - चलते हुए जहाज में बैठे पार्थ का समय , रुके हुए जहाज में बैठे हुए विनय के समय से धीरे गुज़रेगा। यही समय का फैलाव है। और इस पर कई वैज्ञानिक परीक्षण हो चुके हैं। दो परफेक्ट अटॉमिक क्लॉक्स को एक साथ सिंक्रोनाइज़ कर के एक को धरती पर स्थिर रख दूसरी को विमान में घुमाया गया - तो लौटने के बाद विमान से आयी घड़ी हर बार इस गणितीय अपेक्षा के अनुसार ही स्थिर रखी घड़ी से पीछे निकली। तो यह कोई मन की उड़ान नहीं है। यह सच ही में होता है
वैसे इसके साथ ही स्पेस कंट्रेरक्शन भी होता है - लेकिन अभी इतना ही। अगले भाग में इससे आगे चर्चा होगी।