मित्रों
आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान न हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी थियरी पढ़ी है - जिसमे एक विषय था - बेज़ थियरम। हम सब ने पढ़ा भी, उस पर प्रश्न भी हल किये , उस पर पूर्ण अंक भी पाए, लेकिन क्या हम इसे समझते हैं ? इसका हमारे जीवन के संदर्भ में कोई अर्थ है या नहीं?
बहुत गहरा अर्थ है। मान लीजिये आपकी जानकारी में किसी मित्र को कैंसर डिटेक्ट हुआ, उसका इलाज हुआ और वह ठीक न हो पाया , मर गया। लेकिन यह संभावना अधिक है कि उसे कैंसर था ही नहीं, केमोथेरपी से तड़पता रहा बेचारा अनावश्यक, क्योंकि उसे कभी यह बीमारी नहीं थी, उसे उस निदान / डायग्नोसिस के दुःख ने आधा मार दिया, केमोथेरपी ने आधा। और उसे सच में कैंसर था इसकी संभावना ८% से भी कम है। समझ रहे हैं आप इसके अर्थ
? और हां - अर्थ यह नहीं है कि डॉक्टर ने पैसा बनाया - इसमें डॉक्टर की कोई गलती नहीं है।
बेज़ थियरम गणितज्ञों के लिए जो है वह नीचे नीले अक्षरों में लिखा है - चाहें तो पढ़ें, न चाहें तो स्किप कर के आगे बढ़ जाएं।
{
P(A|B)=
P(A⋂B)/P(B);
P(B|A)=P(B∩A)/P(A)
⇒
P(B∩A) = P(A∩B) = P(A|B)*P(B) = P(B|A)*P(A)
⇒
P(A|B)=P(B|A)*P(A)/P(B)
}
ये जो ऊपर नीले अक्षर हैं, इनका कोई अर्थ नहीं। ये कोरे अक्षर हैं। अर्थहीन - लेकिन परीक्षा में बच्चा इन अक्षरों में संख्याएं भर कर उत्तर निकाल सकता है और पूरे अंक पा सकता है। बच्चा पूरे अंक लेगा, लेकिन अर्थ नहीं जानेगा। शिक्षक भी तो , पूरे अंक दे देगा लेकिन वह भी अर्थ नहीं जान पाएगा। इसका अर्थ सीधे इस ऊपर के कैंसर वाले उदाहरण से समझाती हूँ - समझिए कितना असर है इसका!!! जीवन और मौत का प्रश्न है यह उत्तर। या कहूँ कि जीवन और मृत्यु का उत्तर है यह प्रश्न !!!
मानिये १% लोगों को सच मच कैंसर होता है पूरी जनसंख्या के अनुपात में। ( १% भी मैंने अधिक ही लिया - बहुत कम को होता है - और कम लेने से और भी कम आएगी संभावना , कि जो बेचारा मरीज केमो से मर गया उसे कैंसर था ही नहीं कभी)
तो फिर से लेते हैं प्रश्न ध्यान से पढ़िए, इस पर सोचिये, बिना नीचे पढ़े अपने उत्तर का अनुमान लगाइए, एक तरफ लिख कर रख लीजिए। फिर आगे पढियेगा।
मानिये कि १% जनसंख्या को कैंसर होता है। मानिये कि एक टेस्ट है जो बहुत सही उत्तर देता है, इतना कि
(अ ) यदि मरीज को कैंसर है तो टेस्ट का सफलता रेश्यो ९५% है
(आ) यदि मरीज को कैंसर नहीं हिअ तो यह रेश्यो ९०% है
अब आपके किसी परिचित को इस टेस्ट द्वारा बताया गया कि उसे कैंसर है। आपको क्या लगता है - कितनी संभावना है कि यह सही है? उसे केमो कराना चाहिए और नहीं कराया तो वह कैंसर से मर जाएगा ?
उत्तर सोच लिया ? लिख कर रख लिया ? अब आगे बढ़ूँ? मेरा उत्तर है कि सिर्फ ८% सम्भावना है कि वह सच ही पीड़ित था और ९२% कि गलत निदान था - उस बेचारे को कैंसर था ही नहीं , वह तो केमो से मारा गया।
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चलिए सवाल को हल करें - बेज़ थियरम से। ( फिर से नीले अक्षरों में एक ऐतिहासिक तथ्य - बेचारे बेज़ ने जब यह फ़ॉर्मूला निकाला , तो उन्हें लगा इसका कोई अधिक महत्व नहीं है, उन्होंने इसे पब्लिश करने भेजा तक नहीं, किनारे रख दिया. उनकी मृत्यु के बाद परिवार ने उनके एक और गणितज्ञ मित्र को उनके कागजात देख कर चेक करने को कहा कि कुछ महत्वपूर्ण हो यहां , तब उस मित्र ने इसे पाया, इसका महत्व समझा और इसे पब्लिश कराया आपमें दिवंगत मित्र के नाम से)
अब फिर से गणना करते हैं - कितनी संभावना है कि उस व्यक्ति को सच ही कैंसर है?
दिया गया है कि
१. १% जनसंख्या को ही कैंसर होता है, बाक़ी ९९% को नहीं
२. यदि मरीज को कैंसर है तो टेस्ट ९५% सही रिजल्ट देगा
३. यदि नहीं है तो टेस्ट ९०% सही रिज़ल्ट देगा
अब आगे -
मानिये कुल १०००० व्यक्ति यह टेस्ट कराते हैं। तो इनमे १% = १०० ही पीड़ित होंगे बाक़ी ९९% = ९९०० स्वस्थ थे।
समूह अ )
वह १०० लोग जिन्हे कैंसर सच में था - ९५% टेस्ट रिज़ल्ट सही है अर्थात - ९५ को बताया जाएगा कि उन्हें कैंसर है और इलाज होगा, ५ को बताया जाएगा कि वे स्वस्थ हैं और इलाज नहीं होगा। (वे भी बेचारे इलाज के अभाव में मारे जाएंगे)
समूह आ)
वह ९९०० व्यक्ति जिन्हे कैंसर नहीं था - ९०% का सही डायग्नोसिस होगा कि तुम स्वस्थ हो - ९०% of ९९०० = ८९१० को सही उत्तर मिलेगा - तुम स्वस्थ हो, तुम्हे इलाज नही चाहिए, वे घर चले जाएंगे। लेकिन १०% = ९९० को कहा जाएगा (टेस्ट के अनुसार) कि एक दुखद समाचार है - तुम्हे कैंसर है - इलाज कराना होगा। बेचारे सब स्वस्थ थे - सारे के सारे ९९० स्वस्थ थे लेकिन एक तो यह सदमा और ऊपर से यह केमोथेरपी उनके हिस्से आई।
कुल कितने लोगो को कैंसर बताया गया ? समूह एक के ९५ और समूह दो के ९९०। कुल १०८५ को। इनमे कितनो को था यह रोग? सिर्फ और सिर्फ ९५ को। अर्थात जब डायग्नोसिस हुआ है तब संभावना कि वह सच में बीमार है - इसकी संभावना सिर्फ और सिर्फ ९५/१०८५ = ८.५ % है कि व्यक्ति को सच ही यह बीमारी है। सोचिये इस पर।
सोचिए कि जिसे स्कूल में सिर्फ एक गणित का सवाल समझ आगे बढ़ गए (वह भी पूरे अंक लेकर) उसका कितना महत्व था जीवन में? क्या हम समझ पाए उसे?
चलिए चलती हूँ - फिर कभी किसी और विषय पर बात होगी
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