सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभेच्छाएं , बधाईयाँ । यह पर्व आपके जीवन में रौशनी, सुख, शान्ति और सौहार्द्र की सौगात लाये
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आज से उपनिषदों पर यह शृंखला आरम्भ कर रही हूँ - कितनी नियमित रह पाऊंगी, पता नहीं ।
प्रस्तावना 1
भारत के इतिहास में, आत्म उत्थान के प्रयासों में , दर्शनशास्त्र, तत्त्वविज्ञान आदि के क्षेत्रों में , उपनिषदों के प्रबल प्रभाव रहा है । अलग अलग समयखंडों में, अनेक प्रकार के लोगों को, विविध प्रकार के कारणों से , उपनिषद अपनी अद्वितीय विविधता से आकर्षित करते रहे हैं । ये अगोचर, अव्यक्त, अप्रत्यक्ष, अविकारी परम सत्य के विषय में हमें सम्यक रूप से जानकारी देते हैं । मानव अस्तित्व, दर्शन, और धर्म के बारे में इनसे बेहतर ज्ञान देय, या इनके समानान्तर भी, इस जगत के किसी और ग्रन्थ / साहित्य आदि में मिलना असंभव सा लगता है ।
इन्हें कहने वाले निष्कपट महात्माओं के बारे में निर्विवाद छवि यही है कि इन्होने सत्य की खोज में ध्यानमग्न होकर परमसत्य को जाना और आत्मसात किया है, तब ही ये बातें कही हैं । वे इस व्यतीत होते क्षणभंगुर संसार के पीछे के सत्य नित्य संसार को, ( जो है, किन्तु अव्यक्त है, अचिन्त्य है ) हम पर अभिव्यक्त करने के प्रयास करते हैं । वह संसार प्रतीत तो ऐसे होता है जैसे सिर्फ एक सुदूर संभावना हो, किन्तु वह हर सांसारिक सच्चाई को टिमटिमाता दिया सा दर्शा देने वाला सौर्य तेज सा प्रखर परम सत्य है । सैद्धांतिक स्पष्टीकरण की आध्यात्मिक जिज्ञासा , मुक्ति और सत्य की लालसा , प्रबुद्ध मन और आत्मा के उत्थान का पथ हैं हमारे दिव्य उपनिषद ।
यदि उपनिषद हमें इस स्थूल अस्तित्व से ऊपर उठाने का सन्देश दे रहे हैं, तो इसके पीछे कारण हैं वे महान लोग, जो हमेशा दिव्यता की और उद्यमरत रहे । उपनिषदों का आदर सिर्फ इसलिए नहीं है कि ये "श्रुति" का हिस्सा हैं । बल्कि यह इसलिए वन्दनीय एवं श्रद्धेय हैं , कि ये पीढ़ियों से सत्य मार्ग के पथिकों को प्रेरित करते रहे हैं, उन्हें राह दर्शाते रहे हैं । इनका महत्त्व अक्षय और अटूट है । भारतीय विचारधारा पथ प्रदर्शन के लिए हमेशा इन प्रकाश्पुन्जों की और देखती रही है । देखने और खोजने में मन रखने वालों के लिए ये परमज्ञान का स्रोत हैं ।
"उपनिषद्" शब्द को ज्ञानी महापुरुष जन अलग अलग व्याख्याएं देते हैं ।
एक व्याख्या है : उप = near +नि = down +षद=sit = sitting down near
तो दूसरी है : षद = loosen / reach /destroy , जिसमे 'उप' और 'नि' उपसर्ग रूप में जुड़े हैं : वह ब्रह्म ज्ञान जिससे अन्धकार और अज्ञान विनष्ट हो जाए ।
उपनिषदों के लिए वेदांत शब्द भी प्रयुक्त होता रहा है, जिसका शाब्दिक का अर्थ है "वेदों के अंत में आने वाले" । वेदों में अन्तर्निहित ज्ञान और विज्ञान का निष्कर्ष हैं ये महान सन्देश । चार वेद हैं : ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्व वेद । प्रत्येक में संहिताएं, ब्राह्मण, आरण्यक, और वेदान्त उपनिषद् हैं । जहां मन्त्र और ब्राह्मण "कर्म" काण्ड पर जोर देते हैं, वहीँ उपनिषद् "ज्ञान" काण्ड पर । वेदों में देवताओं की स्तुतियाँ हैं : इंद्र, सूर्य, सोम, अग्नि, द्यौस , मारुत, पृथ्वी , वायु, मित्र, वरुण, विष्णु, अश्विन, आदि जो प्राकृतिक शक्तियों के अधिष्ठाता देव हैं । इसके अतिरिक्त, अमूर्त भाव - जैसे श्रद्धा, मन्यु आदि, की भी स्तुतियाँ हैं । विद्या प्राप्त कर चुके शिष्य को परीक्षित करने के उपरांत गुरु द्वारा वेदान्त की गुप्त शिक्षा मिलती थी । यह विज्ञान सिर्फ वह सीख सकता था जो विशुद्ध ज्ञानपिपासु होता । प्रार्थनाएं, शुद्ध ज्ञानार्जन , त्याग बलिदान के कर्म (काण्ड) ये सब सीख लेने के बाद जब पात्र सत्य प्राप्ति का सच्चा पात्र बन सके, तब ही वह उपनिषद् सीखने की स्थिति में आता था ।
उपनिषद 200 से अधिक कहे जाते हैं, लेकिन भारतीय परम्परा के अनुसार ये 108 कहे गए हैं । वैदिक सन्दर्भों में इन्हें श्रुति या प्रकट सत्य कहा गया है । ये सनातन, स्मरणातीत, और कालातीत हैं । इन्हें परमात्मा के श्वास से ऋषियों को गोचर हुआ कहा गया है - जिन्होंने अपने देखे हुए "सत्य" को शब्दों में प्रकट किया, जिससे ये "ऋचा" कहाए । ये साधारण दृष्टि से दृश्य नहीं है, न ही ध्यान या सोच विचार से पहुंचे गए निष्कर्ष हैं । ये असंदिग्ध प्राकट्य हैं उन "सत्य" का , जो महान ऋषियों ने दिव्य दृष्टि से प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर किये (देखे) और शिष्यों से कहे। ये व्यवस्थित सोच से निकाले गए निष्कर्ष नहीं , बल्कि आत्मिक प्रकाश के वाहक हैं । ये हमें एक समृद्ध और विविध आध्यात्मिक अनुभव देते हैं, सिर्फ एक अमूर्त दार्शनिक श्रेणी का काल्पनिक विचरण भर नहीं । परम का सत्यापन व्यक्तिगत अनुभव, और तर्क दोनों ही कसौटियों पर हुआ है । उद्देश्य सिर्फ काल्पनिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक है । ब्रह्म विद्या सिर्फ एक "दर्शन" भर नहीं, बल्कि जीवन का तरीका होना ही ज्ञान का उद्देश्य जाना गया है ।
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आज से उपनिषदों पर यह शृंखला आरम्भ कर रही हूँ - कितनी नियमित रह पाऊंगी, पता नहीं ।
प्रस्तावना 1
भारत के इतिहास में, आत्म उत्थान के प्रयासों में , दर्शनशास्त्र, तत्त्वविज्ञान आदि के क्षेत्रों में , उपनिषदों के प्रबल प्रभाव रहा है । अलग अलग समयखंडों में, अनेक प्रकार के लोगों को, विविध प्रकार के कारणों से , उपनिषद अपनी अद्वितीय विविधता से आकर्षित करते रहे हैं । ये अगोचर, अव्यक्त, अप्रत्यक्ष, अविकारी परम सत्य के विषय में हमें सम्यक रूप से जानकारी देते हैं । मानव अस्तित्व, दर्शन, और धर्म के बारे में इनसे बेहतर ज्ञान देय, या इनके समानान्तर भी, इस जगत के किसी और ग्रन्थ / साहित्य आदि में मिलना असंभव सा लगता है ।
इन्हें कहने वाले निष्कपट महात्माओं के बारे में निर्विवाद छवि यही है कि इन्होने सत्य की खोज में ध्यानमग्न होकर परमसत्य को जाना और आत्मसात किया है, तब ही ये बातें कही हैं । वे इस व्यतीत होते क्षणभंगुर संसार के पीछे के सत्य नित्य संसार को, ( जो है, किन्तु अव्यक्त है, अचिन्त्य है ) हम पर अभिव्यक्त करने के प्रयास करते हैं । वह संसार प्रतीत तो ऐसे होता है जैसे सिर्फ एक सुदूर संभावना हो, किन्तु वह हर सांसारिक सच्चाई को टिमटिमाता दिया सा दर्शा देने वाला सौर्य तेज सा प्रखर परम सत्य है । सैद्धांतिक स्पष्टीकरण की आध्यात्मिक जिज्ञासा , मुक्ति और सत्य की लालसा , प्रबुद्ध मन और आत्मा के उत्थान का पथ हैं हमारे दिव्य उपनिषद ।
यदि उपनिषद हमें इस स्थूल अस्तित्व से ऊपर उठाने का सन्देश दे रहे हैं, तो इसके पीछे कारण हैं वे महान लोग, जो हमेशा दिव्यता की और उद्यमरत रहे । उपनिषदों का आदर सिर्फ इसलिए नहीं है कि ये "श्रुति" का हिस्सा हैं । बल्कि यह इसलिए वन्दनीय एवं श्रद्धेय हैं , कि ये पीढ़ियों से सत्य मार्ग के पथिकों को प्रेरित करते रहे हैं, उन्हें राह दर्शाते रहे हैं । इनका महत्त्व अक्षय और अटूट है । भारतीय विचारधारा पथ प्रदर्शन के लिए हमेशा इन प्रकाश्पुन्जों की और देखती रही है । देखने और खोजने में मन रखने वालों के लिए ये परमज्ञान का स्रोत हैं ।
"उपनिषद्" शब्द को ज्ञानी महापुरुष जन अलग अलग व्याख्याएं देते हैं ।
एक व्याख्या है : उप = near +नि = down +षद=sit = sitting down near
तो दूसरी है : षद = loosen / reach /destroy , जिसमे 'उप' और 'नि' उपसर्ग रूप में जुड़े हैं : वह ब्रह्म ज्ञान जिससे अन्धकार और अज्ञान विनष्ट हो जाए ।
उपनिषदों के लिए वेदांत शब्द भी प्रयुक्त होता रहा है, जिसका शाब्दिक का अर्थ है "वेदों के अंत में आने वाले" । वेदों में अन्तर्निहित ज्ञान और विज्ञान का निष्कर्ष हैं ये महान सन्देश । चार वेद हैं : ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद और अथर्व वेद । प्रत्येक में संहिताएं, ब्राह्मण, आरण्यक, और वेदान्त उपनिषद् हैं । जहां मन्त्र और ब्राह्मण "कर्म" काण्ड पर जोर देते हैं, वहीँ उपनिषद् "ज्ञान" काण्ड पर । वेदों में देवताओं की स्तुतियाँ हैं : इंद्र, सूर्य, सोम, अग्नि, द्यौस , मारुत, पृथ्वी , वायु, मित्र, वरुण, विष्णु, अश्विन, आदि जो प्राकृतिक शक्तियों के अधिष्ठाता देव हैं । इसके अतिरिक्त, अमूर्त भाव - जैसे श्रद्धा, मन्यु आदि, की भी स्तुतियाँ हैं । विद्या प्राप्त कर चुके शिष्य को परीक्षित करने के उपरांत गुरु द्वारा वेदान्त की गुप्त शिक्षा मिलती थी । यह विज्ञान सिर्फ वह सीख सकता था जो विशुद्ध ज्ञानपिपासु होता । प्रार्थनाएं, शुद्ध ज्ञानार्जन , त्याग बलिदान के कर्म (काण्ड) ये सब सीख लेने के बाद जब पात्र सत्य प्राप्ति का सच्चा पात्र बन सके, तब ही वह उपनिषद् सीखने की स्थिति में आता था ।
उपनिषद 200 से अधिक कहे जाते हैं, लेकिन भारतीय परम्परा के अनुसार ये 108 कहे गए हैं । वैदिक सन्दर्भों में इन्हें श्रुति या प्रकट सत्य कहा गया है । ये सनातन, स्मरणातीत, और कालातीत हैं । इन्हें परमात्मा के श्वास से ऋषियों को गोचर हुआ कहा गया है - जिन्होंने अपने देखे हुए "सत्य" को शब्दों में प्रकट किया, जिससे ये "ऋचा" कहाए । ये साधारण दृष्टि से दृश्य नहीं है, न ही ध्यान या सोच विचार से पहुंचे गए निष्कर्ष हैं । ये असंदिग्ध प्राकट्य हैं उन "सत्य" का , जो महान ऋषियों ने दिव्य दृष्टि से प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर किये (देखे) और शिष्यों से कहे। ये व्यवस्थित सोच से निकाले गए निष्कर्ष नहीं , बल्कि आत्मिक प्रकाश के वाहक हैं । ये हमें एक समृद्ध और विविध आध्यात्मिक अनुभव देते हैं, सिर्फ एक अमूर्त दार्शनिक श्रेणी का काल्पनिक विचरण भर नहीं । परम का सत्यापन व्यक्तिगत अनुभव, और तर्क दोनों ही कसौटियों पर हुआ है । उद्देश्य सिर्फ काल्पनिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक है । ब्रह्म विद्या सिर्फ एक "दर्शन" भर नहीं, बल्कि जीवन का तरीका होना ही ज्ञान का उद्देश्य जाना गया है ।
इस श्रृंखला को आरंभ करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद। भारतीय ज्ञानगंगा की सबसे अच्छी बात जो मुझे लगती है वो यह कि लोककल्याण को स्वकल्याण से बहुत आगे रखती है और अपनी विचारधारा को दूसरों पर थोपने की पक्षधर नहीं है, मानो तो ठीक और न मानो तो ठीक।
जवाब देंहटाएंफ़िर से धन्यवाद और दीपावली की सपरिवार हार्दिक बधाई।
दीपोत्सव पर्व के अवसर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ....
जवाब देंहटाएंएक और ज्ञानप्रद श्रृंखला शुरू करने का धन्यवाद! आशा है, बहुत कुछ जानने को मिलेगा| दीपावली के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रांजल और दिव्य -वेदान्त का एक अर्थबोध यह भी है कि जानने योग्य ज्ञान का उत्कर्ष -चरम! अर्थात वेदों का उत्कर्ष! आश्चर्य है ये बातें मेरे अल्पज्ञानी के मन में भी पिछले सप्ताह से उमड़ती घुमड़ती रही हैं - कुछ न कुछ जरुर अल्फा तरंगों का खेल है :-)
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