कई लोग कई जगह कई बार यह प्रश्न हैं कि महाभारत में कर्ण जैसे "हीरो" का जीवन इतना दुखद क्यों ? सूर्यपुत्र और ओजस्वी होकर भी उसे हमेशा सूतपुत्र पुकारा गया , माँ ने टोकरी में रख कर बहा दिया आदि आदि । (वैसे तो इसी तरह के प्रश्न भीष्म और धृतराष्ट्र के सम्बन्ध में भी उठते हैं - लेकिन उन पर बात कभी और सही) । इस प्रश्न का उत्तर श्री भागवतम में मिलता है ।
चार युग हैं :
त्रेता युग में दो कहानियों के तार कर्ण से आ कर जुड़ते हैं ।
एक असुर था - दम्बोद्भव । उसने सूर्यदेव की बड़ी तपस्या की । सूर्य देव जब प्रसन्न हो कर प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा तो उसने "अमरत्व" का वरदान माँगा । सूर्यदेव ने कहा यह संभव नहीं है। तब उसने माँगा कि उसे एक हज़ार दिव्य कवचों की सुरक्षा मिले। इनमे से एक भी कवच सिर्फ वही तोड़ सके जिसने एक हज़ार वर्ष तपस्या की हो और जैसे ही कोई एक भी कवच को तोड़े, वह तुरंत मृत्यु को प्राप्त हो ।
सूर्यदेवता बड़े चिंतित हुए। वे इतना तो समझ ही पा रहे थे कि यह असुर इस वरदान का दुरपयोग करेगा, किन्तु उसकी तपस्या के आगे वे मजबूर थे।उन्हे उसे यह वरदान देना ही पडा ।
इन कवचों से सुरक्षित होने के बाद वही हुआ जिसका सूर्यदेव को डर था । दम्बोद्भव अपने सहस्र कवचों की सहक्ति से अपने आप को अमर मान कर मनचाहे अत्याचार करने लगा । वह "सहस्र कवच" नाम से जाना जाने लगा ।
उधर सती जी के पिता "दक्ष प्रजापति" ने अपनी पुत्री "मूर्ति" का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र "धर्म" से किया । मूर्ति ने सहस्र्कवच के बारे में सुना हुआ था - और उन्होंने श्री विष्णु से प्रार्थना की कि इसे ख़त्म करने के लिए वे आयें । विष्णु जी ने उसे आश्वासन दिया कि वे ऐसा करेंगे ।
समयक्रम में मूर्ति ने दो जुडवा पुत्रों को जन्म दिया जिनके नाम हुए नर और नारायण । दोनों दो शरीरों में होते हुए भी एक थे - दो शरीरों में एक आत्मा । विष्णु जी ने एक साथ दो शरीरों में नर और नारायण के रूप में अवतरण किया था ।
दोनों भाई बड़े हुए । एक बार दम्बोध्भव इस वन पर चढ़ आया । तब उसने एक तेजस्वी मनुष्य को अपनी ओर आते देखा और भय का अनुभव किया ।
उस व्यक्ति ने कहा कि मैं "नर" हूँ , और तुमसे युद्ध करने आया हूँ । भय होते भी दम्बोद्भव ने हंस कर कहा - तुम मेरे बारे में जानते ही क्या हो ? मेरा कवच सिर्फ वही तोड़ सकता है जिसने हज़ार वर्षों तक तप किया हो ।
नर ने हंस कर कहा कि मैं और मेरा भाई नारायण एक ही हैं - वह मेरे बदले तप कर रहे हैं, और मैं उनके बदले युद्ध कर रहा हूँ ।
युद्ध शुरू हुआ , और सहस्र कवच को आश्चर्य होता रहा कि सच ही में नारायण के तप से नर की शक्ति बढती चली जा रही थी । जैसे ही हज़ार वर्ष का समय पूर्ण हुआ,नर ने सहस्र कवच का एक कवच तोड़ दिया । लेकिन सूर्य के वरदान के अनुसार जैसे ही कवच टूटा नर मृत हो कर वहीँ गिर पड़े । सहस्र कवच ने सोचा, कि चलो एक कवच गया ही सही किन्तु यह तो मर ही गया ।
तभी उसने देखा की नर उसकी और दौड़े आ रहा है - और वह चकित हो गया । अभी ही तो उसके सामने नर की मृत्यु हुई थी और अभी ही यही जीवित हो मेरी और कैसे दौड़ा आ रहा है ???
लेकिन फिर उसने देखा कि नर तो मृत पड़े हुए थे, यह तो हुबहु नर जैसे प्रतीत होते उनके भाई नारायण थे - जो दम्बोद्भव की और नहीं, बल्कि अपने भाई नर की और दौड़ रहे थे ।
दम्बोद्भव ने अट्टहास करते हुए नारायण से कहा कि तुम्हे अपने भाई को समझाना चाहिए था - इसने अपने प्राण व्यर्थ ही गँवा दिए ।
नारायण शांतिपूर्वक मुस्कुराए । उन्होंने नर के पास बैठ कर कोई मन्त्र पढ़ा और चमत्कारिक रूप से नर उठ बैठे । तब दम्बोद्भव की समझ में आया कि हज़ार वर्ष तक शिवजी की तपस्या करने से नारायण को मृत्युंजय मन्त्र की सिद्धि हुई है - जिससे वे अपने भाई को पुनर्जीवित कर सकते हैं ।
अब इस बार नारायण ने दम्बोद्भव को ललकारा और नर तपस्या में बैठे । हज़ार साल के युद्ध और तपस्या के बाद फिर एक कवच टूटा और नारायण की मृत्यु हो गयी ।
फिर नर ने आकर नारायण को पुनर्जीवित कर दिया, और यह चक्र फिर फिर चलता रहा ।
इस तरह ९९९ बार युद्ध हुआ । एक भाई युद्ध करता दूसरा तपस्या । हर बार पहले की मृत्यु पर दूसरा उसे पुनर्जीवित कर देता ।
जब 999 कवच टूट गए तो सहस्र्कवच समझ गया कि अब मेरी मृत्यु हो जायेगी । तब वह युद्ध त्याग कर सूर्यलोक भाग कर सूर्यदेव के शरणागत हुआ ।
नर और नारायण उसका पीछा करते वहां आये और सूर्यदेव से उसे सौंपने को कहा । किन्तु अपने भक्त को सौंपने पर सूर्यदेव राजी न हुए। तब नारायण ने अपने कमंडल से जल लेकर सूर्यदेव को श्राप दिया कि आप इस असुर को उसके कर्मफल से बचाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए आप भी इसके पापों के भागीदार हुए और आप भी इसके साथ जन्म लेंगे इसका कर्मफल भोगने के लिए ।
इसके साथ ही त्रेतायुग समाप्त हुआ और द्वापर का प्रारम्भ हुआ ।
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समय बाद कुंती जी ने अपने वरदान को जांचते हुए सूर्यदेव का आवाहन किया, और कर्ण का जन्म हुआ । लेकिन यह आम तौर पर ज्ञात नहीं है, कि , कर्ण सिर्फ सूर्यपुत्र ही नहीं है, बल्कि उसके भीतर सूर्य और दम्बोद्भव दोनों हैं । जैसे नर और नारायण में दो शरीरों में एक आत्मा थी, उसी तरह कर्ण के एक शरीर में दो आत्माओं का वास है - सूर्य और सहस्रकवच । दूसरी ओर नर और नारायण इस बार अर्जुन और कृष्ण के रूप में आये ।
कर्ण के भीतर जो सूर्य का अंश है,वही उसे तेजस्वी वीर बनाता है । जबकि उसके भीतर दम्बोद्भव भी होने से उसके कर्मफल उसे अनेकानेक अन्याय और अपमान मिलते है, और उसे द्रौपदी का अपमान और ऐसे ही अनेक अपकर्म करने को प्रेरित करता है ।
यदि अर्जुन कर्ण का कवच तोड़ता, तो तुरंत ही उसकी मृत्यु हो जाती ।इसिलिये इंद्र उससे उसका कवच पहले ही मांग ले गए थे ।
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एक और प्रश्न जो लोग अक्सर उठाते हैं - श्री कृष्ण ने (इंद्रपुत्र) अर्जुन का साथ देते हुए (सूर्यपुत्र) कर्ण को धोखे से क्यों मरवाया ?
..... कहते हैं कि श्री राम अवतार में श्री राम ने (सूर्यपुत्र) सुग्रीव से मिल कर (इंद्रपुत्र) बाली का वध किया था (वध किया था , धोखा नहीं । जब किसी अपराधी को जज मृत्युदंड की सजा देते हैं तो उसे सामने से मारते नहीं - यह कोई धोखे से मारना नहीं होता)- सो इस बार उल्टा हुआ ।
..... कहते हैं कि श्री राम अवतार में श्री राम ने (सूर्यपुत्र) सुग्रीव से मिल कर (इंद्रपुत्र) बाली का वध किया था (वध किया था , धोखा नहीं । जब किसी अपराधी को जज मृत्युदंड की सजा देते हैं तो उसे सामने से मारते नहीं - यह कोई धोखे से मारना नहीं होता)- सो इस बार उल्टा हुआ ।
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यह कथा कर्ण के सम्बन्ध में थी - फिर कभी ऐसी ही दूसरी कथाओं पर बात होगी ।
इन कथाओं में जो रस है ... और जीवन दर्शन है ... जितना भी लिखा जाए कम है ...
जवाब देंहटाएंकर्ण के जीवन के इस रहस्य को जानकर बहुत अच्छा लगा..आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिए..
जवाब देंहटाएंताज्जुब यह है कि एक अत्यंत विशाल फलक तक फ़ैली मिथक कथाओं में एक अद्भुत और तार्किक सम्बन्ध दीखता है -कर्ण की यह कथा भी इसी तथ्य को उजागर करती है
जवाब देंहटाएंगजब है कर्मों का ताना बाना.....
जवाब देंहटाएंरोचक!
जवाब देंहटाएंkarn mere hero
जवाब देंहटाएंकर्ण में सुप्रीम नायक और खलनायक दोनों के गुण हैं। मुझे लगता है की महाभारत के अधिकाँश पात्रों पर यह लागू है।
हटाएं.
जवाब देंहटाएं.
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शिल्पा जी,
१- जो युगों का समय-काल आपने दिखाया है वह बता रहा है कि सतयुग १६९६००० वर्ष का हुआ था... तमाम उपलब्ध प्रमाणों से वैदिक काल तकरीबन पाँच से छह हजार साल पहले का बताया जाता है... जाहिर है कि हम मिथकों की चर्चा कर रहे हैं और उनमें कल्पना की उड़ान के चलते कुछ भी संभव है।
२- @ एक और प्रश्न - श्री कृष्ण ने (इंद्रपुत्र) अर्जुन का साथ देते हुए (सूर्यपुत्र) कर्ण को धोखे से क्यों मरवाया ? कहते हैं कि श्री राम अवतार में श्री राम ने (सूर्यपुत्र) सुग्रीव से मिल कर (इंद्रपुत्र) बाली का वध किया था - सो इस बार उल्टा हुआ ।
आराध्य ने पहली बार धोखा किया और दूसरी बार पिछले धोखे का हिसाब किताब बराबर करने के लिये फिर धोखा किया... पर क्या हिन्दू धर्म हमें अपने आराध्यों के किये किसी काम को 'धोखा' कहने या उस पर प्रश्न उठाने का अधिकार देता है ? ... :)
...
:):)
हटाएंमुझे इस टिपण्णी की अपेक्षा थी। :) कल से प्रतीक्षा भी थी।
इसका उत्तर भी इस पोस्ट में लिखा था पहले। फिर उस से पोस्ट का टोपिक डाइवर्ट होता देख हटा दिया था। फिर कभी उस पर चर्चा करूंगी :)
मैं हमेशा कहती रहती हूँ की हम जो भी कहते/ करते हैं उस कर्म से अधिक महत्व इसका है की उसके पीछे हमारे मन में उसका उद्देश्य क्या है।यदि मैं कृष्ण को छलिया चोर बदमाश कहूं और व्ही बात आप कहें लेकिन उसके पीछे आपके और मेरे कारण प्रथक हों तो वे दोनों अलग केटेगरी के कर्म होंगे। :).... मेरी गीता सिरीज़ के पहले दो तीन भागों में इस पर चर्चा की है और उदाहरण भी दिए हैं । :)
श्री राम ने धोखे से बालि का वध किया या कृष्ण ने कर्ण को धोखे से मरवाया ये कहना ही गलत है। श्री राम एक क्षत्रिय शासक थे और उनका कर्तव्य था कि अपराधियो को दंडित करना। पीड़ितो को न्याय दिलाना। और उनका उद्देश्य भी था दुष्टो पापियो का संहार कर पुनः वैदिक संस्कृति धर्म की पुनर्स्थापना करना । बालि ने अपने छोटे भाई के पत्नी जो कि बेटी के समान होती है उसे जबरन रखकर उसके साथ दुराचार किया, अपने छोटे भाई निरपराध सुग्रीव को वृत दंडित करके राज्य से बाहर निकाल दिया, क्या उसे इसका दंड मिलना नहीं चाहिए थे? अब आपका सवाल होगा कि धोखे से क्यो मारा ? तो देखिये पशु को जो प्रजा को हानि पहुचावे उसे छिपकर मारना गलत नही समझा जाता। अब क्यो कि श्री राम वेदानुयायी थे, तो वैदिक धर्म मे कहा गया है कि - अपनी बहन ,बेटी, पुत्रवधू के साथ भी दुराचार करने वाला पशुतुल्य है , अतः मानवदेह धारी पशु को पेड़ की आड़ लेकर पशु की ही तरह श्री राम ने मारा था। अन्यथा सम्मुख आके भी मार सकते थे। श्री राम मर्यादा की साक्षात प्रतिमूर्ति थे..अन्यथा उन्हौने निर्बल सुरग्रीव का साथ देना व लेना ही उचित समझा क्यो कि वो सही था, अन्यथा बालि अधिक शशक्त था उसके पास जाकर सहायता मांग सकते थे? किन्तु मांगी क्या ? इसलिए इस पूरे घटनाक्रम को उस काल की स्थिति के, समय एवं शास्त्रो के अनुसार बुद्धि का उपयोग करते हुये ही सम्झना चाहिए। अगले कमेंट मे कर्ण वाले प्रश्न का उत्तर देता हू यथायोग्य -- ओम्
हटाएंकृष्ण ने कर्ण को धोखे से मारा ? क्यो भाई? महाभारत युद्ध का होना जब तय हुआ तो दोनों पक्षो ने मिलकर युद्ध के नियम बनाए थे, जैसे सूर्यअस्त होने पर युद्ध तुरंत बंद हो जाएगा आदि आदि । अब दोनों पक्षो को ही युद्ध के नियमो का पालन करना था। पर पहले युद्ध को नियमो को तोड़ते हुये अभिमन्यु की हत्या की गयी, कर्ण उस समय उपस्थित था, कर्ण ने तब क्यो न रोका था ? अतः जो नियमो को तोड़कर युद्ध करे तो उसके सम्मुख नियम को तोड़ देना अनुचित नहीं है। यही कृष्ण ने कहा था कि अभिमन्यु की हत्या के समय ये नियम याद न रहे थे, अब याद आए...तो कर्ण को उसके उस अपराध का दंड मिल गया इसमे क्या गलत है ? कृष्ण ने कोई अशास्त्रीय आचरण नहीं किया । कोई अन्याय नहीं किया... अन्यायी को दंडित करना अन्याय नहीं होता। यहा शास्त्रीय प्रमाण दिये जा सकते है , पर उसकी आवश्यकता नहीं है। और श्रीमान प्रवीण जी ... ये कथाए सिर्फ कथाये है, ये सत्य नहीं है , सत्यविरुद्ध होने से में भी इन्हे स्वीकार नहीं करता। किन्तु वैदिक काल पाँच छह हजार वर्ष पूर्व ही था.... ये आज के कुछ कथित विदेशी शोधकर्ताओ का मत है, और उनही का अनुसरण यहा के कुछ ज्ञानी कर लिया करते है। रामसेतु को बारह लाख वर्ष का माना है अमेरिका के नासा ने, अनुसंधान करके। और ये भी माना हही कि वो मानव निर्मित है । यही बात रामायण मे लिखी हुयी है। तो यहा शास्त्र और विज्ञान दोनों से मिलकर स्पष्ट सत्य निकल कर आ रहा है कि ये रामसेतु राम जी ने बारह लाख वर्ष पूर्व ही बनाया था। उस समय क्या अवेदिक काल था भाई ??? पाँच छह हजार वर्ष पूर्व से कई गुना अधिक वैदिक कर्मकांड उस समय होते थे, प्रजा तक वेदो के मार्ग का अनुसरण करती थी। अतः वैदिक काल पाँच छह हजार वर्ष पूर्व था, ये सिर्फ आज के कुछ लोग या समूह वर्ग मान ले पर वो सत्य नहीं है। जय श्री राम
हटाएंकर्ण के कवच कुंडल धरी होने और इन्द्र का दान में ले लेना , दोनो ही घटनाओं के रहस्य खुले . कई बार महसूस होता है की या तो महाभारत की घटनाएँ सतत चली आ रही है या वाल्मीकि का पूर्वाभास था आज के इस युग का !
जवाब देंहटाएंवाल्मीकि जी? शायद आप वेदव्यास जी की बात क्र रही हैं जिन्होंने यह महाभारत कथा लिखी है? ( उन्होंने कही और गणेश जी ने लिखी है।)
हटाएंयह कथा पहली बार जानने को मिली, अच्छी लगी।
जवाब देंहटाएंpehli baar suna is katha ke baare me....
जवाब देंहटाएंhamaare manas me uthhne wale har prshan ka jawaab hai bas thoda prshan uthhaane ke saath hi uske jawaab ko janne ke liye dil se peyatn karne hote hai,na ki kewal aadatan prashan khade karne chahiye!
vitandawaad ka kahi koi mulya nahi.... tark karna ek alag baat hai!
kunwar ji,
बेहद रोचक ...
जवाब देंहटाएंसूर्य और दम्बोद्भव दोनों की आत्माएं हैं. श्रीराम-बाली और श्रीकृष्ण-कर्ण के बारे में भी अति रोचक जानकारी मिली.
जवाब देंहटाएंरामराम.
रोचक कथा!
जवाब देंहटाएंएक वैज्ञानिक से पौराणिक कथाएं सुनना सुखद है ..
जवाब देंहटाएंमंगलकामनाएं !!
कथा रोचक है पर सही नहीं । तर्क के आधार पर इसे गलत बोले तो आप लोग न मानेंगे। शास्त्रो के ही आधार पर बोले तब मानेंगे न ??? कर्ण मे दोनों की आत्मा या जीवात्मा थी ?? ये बात सत्य सनातनवैदिक धर्म के प्रत्येक सत्यशास्त्र गीता वेद आदि के विरुद्ध है। एक ही व्यक्ति मे दो जीवात्मा कैसे हो सकती है ? ये तो ईश्वर के विधान के भी विरुद्ध बात हुयी। आप जीवात्माओ को परस्पर भिन्न भिन्न मानते है तो भी यह शास्त्रो के तर्क के एवं ईश्वरीय विधान के विरुद्ध बात है। एवं आप आत्मा को सर्वत्र व्याप्त तत्व मानते है वेदान्त की दृष्टि से , तो भी यह बिलकुल गलत ही दर्शित होता है । ये सिर्फ कहानिया है जो कुछ शिक्षा देने के लिए बना दी गयी है। जैसे कि आज के समय मे प्रेरक प्रसंगो द्वारा कुछ शिक्षा देने हेतु काल्पनिक कहानिया बना दी जाती है। और नर एवं नारायण भगवान थे तो भी पापी का संहार नहीं कर पाये, सूर्यदेव से लेकर , उसे छोड़ दिया और श्राप देकर चले आए :) जब श्राप की क्षमता थी तो इतने समय तक युद्ध क्यो किया? श्राप ही दे देते? और इतने समय युद्ध के बाद भी छोड़ दिया? खैर मेरा कहना ये है कि ये कहानी कही से सही नहीं है। आप कहे कि मे गलत हो सकता हू, तो हा मे गलत हो सकता हू, पर प्रत्यक्ष वैदिक हिन्दू दर्शन शास्त्र आदि के आधार पर भी ये सही प्रतीत नहीं होगी । जय श्री राम
जवाब देंहटाएंजय श्री राम।
हटाएंआप कि बाते अच्छी लगी पर क्या इस जनम मे किये कार्य का कोई मतलब नही
जवाब देंहटाएंराम ने शम्बुक को क्यो मरा था
जवाब देंहटाएंइसका उत्तर अमित शर्मा या अनुराग शर्मा जी बेहतर दे पाएंगे। मैं बहुत ज्ञानी नहीं हूँ।। :) उन्हें बुलाती हूँ। आएं तो ठीक न आएं तो पता नहीं। :)
हटाएंराम ने शंबूक को कब मारा?
हटाएंवैसे यदि यह प्रश्न शम्बूक की जाति से सम्बंधित था तो यह सोचियेगा कि
हटाएं1॥ राम ने निषाद को गले लगाकर भाई क्यों कहा
2॥ राम ने शबरी के बेर क्यों खाये
आदि
वैसे यदि यह प्रश्न शम्बूक की जाति से सम्बंधित था तो यह सोचियेगा कि
जवाब देंहटाएं1॥ राम ने निषाद को गले लगाकर भाई क्यों माना
2॥ राम ने शबरी के बेर क्यों खाये
आदि
nice update
जवाब देंहटाएंRespected ld.author you are doing greatest pious service to the great hindu religion, kindly continue your efforts and provide lights in the dark path of removal of doubts.
जवाब देंहटाएंMera bhi ek saval hai ki karn ka kavach or kundal ko indra ne magne ke bad kha rakha tha kya aaj bhi kavach or kundal darti par hai or hai to kha?
जवाब देंहटाएंHamare Jivan main agar kuch bura ho raha hain..hum ache baratav kare to bhi..to isaka uttar hame milata hain.Tumhane pichale janlm main bura kaam kiya tha to isaki saja aaj ke janlm main mil rahi hain...karn ke bare main bhi yahi katha suanayee...ab pichala jalnm kisane dekha??????
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