रामेश्वरम नामक शहर/ क़स्बा तमिल नाडु के रामनाथपुरम जिले में स्थित है। यह पम्बन या रामेश्वरम नामक द्वीप है जो भारतीय उप महाद्वीप से विलग है और श्री लंका के मनणार द्वीप से ५० किमी की दूरी पर है। पम्बन या रामेश्वरम द्वीप भारत की मुख्य भूमि से पम्बन सेतु द्वारा जुड़ा हुआ है।
कथा है कि यह वही जगह है जहां से श्री राम ने अपनी प्रिया सीता जी को रावण से छुड़ाने के लिए सेतु बनाया था। एक कथा कहती है कि श्री राम ने यहाँ सेतुबंध से पूर्व शिवलिंग स्थापित कर शिव जी की उपासना की थी। लेकिन दूसरी कथा कहती है कि सीता जी को वापस ले जाते हुए श्री राम यहां शिव पूजन करना चाहते थे। वे यहां भारतवर्ष का सर्वोच्च शिवलिंग स्थापित करना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने हनुमान जी को हिमालय से शिला लाने भेजा। किन्तु समय अधिक बीत जाने से सीता माई ने छोटे शिवलिंग की स्थापना की और तत्पश्चात वही ज्योतिर्लिंग हुआ। दोनों ही कथाएँ कही सुनी जाती हैं। रामेश्वरम हिन्दू "चार धाम" में से एक है और वैष्णव और शैव दोनों ही द्वारा पवित्र माना जाता है , और पूजित है।
चौदहवीं सदी में अलाउद्दीन ख़िलजी के सेनापति मलिक कफ़ूर पंड्यान राजाओं को हराते हुए यहाँ तक पहुँच गया था और यहां मस्जिद बनाई। बाद में पन्दहवीं सदी में पंड्यान राजाओं ने फिर से यह जगह जीत ली और इसके उपरान्त यह विजयनगर साम्राज्य का हिस्सा हुआ। मदुरै नायकों में से अलग हुए सेतुपति वंशजों को सेतु के संरक्षक माना जाता है।
रामनाथस्वामी मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहाँ के स्तम्भ नायक शैली के हैं। (मदुरै मीनाक्षी अम्मा मंदिर में भी यही शैली है) मंदिर का गलियारा १७ से २२ फ़ीट चौड़ा और २५ फ़ीट ऊंचा है। रामेश्वरम में चौदह तीर्थ हैं। इनमे २४ प्रमुख हैं। इनमे भी २२ मंदिर की परिसीमा में ही हैं। इन जलाशयों में स्नान करना तपस्या के बराबर माना जाता है। इनमे एक है "अग्नितीर्थम" - बंगाल की खाड़ी। एक और है "जड़ायु / जटायु तीर्थम" - माना जाता है कि जटायु ने सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध किया और रावण ने उनके पंख काट दिए - तब वे इस तीर्थ में गिर पड़े थे। "विलूंदी तीर्थम" का शाब्दिक अर्थ है "धंसा हुआ धनुष। कहते हैं सीता जी की प्यास बुझाने के लिए श्रीराम ने यहाँ अपना धनुषसागर सागर में आप्लावित किया था। इसके अतिरिक्त हनुमान तीर्थम, सुग्रीव तीर्थम , लक्ष्मण तीर्थम प्रमुख हैं। यही पास ही गन्धमादन पर्वत भी है जहां श्री राम चरण के निशान हैं।
द्वीप का दक्षिणी छोर है धनुष्कोडी। यहां कोटान्द्रमास्वामी मंदिर है। १९६४ के चक्रवात तूफानों में धनुष्कोडी समुद्र में डूब गया था किन्तु मंदिर अक्षुण्ण रहा। यह नगर मध्य से १८ किमी दूरी पर है। कहते हैं यहीं विभीषण ने श्री राम के सम्मुख आकर आत्म समर्पण किया था। चार धाम (बद्रीनाथ, पुरी, द्वारका और रामेश्वरम) यात्रा में रामेश्वरम का प्रमुख महत्व है। बनारस की यात्रा भी यहाँ आये बिना अपूर्ण मानी जाती है।
यहाँ यह कहे बिना नहीं रहा जा सकता कि "सेतुसमुद्रम" नामक समुद्री नहर बनाने का प्रोजेक्ट विचाराधीन है। लेकिन हिन्दू धार्मिक दल और पर्यावरण सेवी दल इसका विरोध कर रहे हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय में यह केस २०१० से रुका हुआ है क्योंकि भारत सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह राष्ट्रीय स्मारक है या नहीं है।
मंदिर
स्तम्भ / गलियारा
अग्नितीर्थ जटायु तीर्थ
रामेश्वरम के बारे में बहुत सुन्दर जानकारी सचित्र प्रस्तुति हेतु आभार!
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