बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग मंदिर या बैद्यनाथ धाम, शिव जी के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह झारखंड के देवगढ़ में है , और मंदिर परिसर में कुल २१ मंदिर हैं (इस मंदिर की भौगोलिक स्थिति के बारे में कुछ मतभेद हैं - आगे यह चर्चा है)।
कहा जाता है कि रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहीं पर कडा तप किया था । शिव जी प्रकट न हुए तब रावण ने अपने सर काट काट कर अपने आराध्य को चढ़ाना शुरू किया। दस में से नौ सर कटने के बाद जब रावण अपना दसवां सर काटने को हुआ तब शिव जी प्रकट हुए। उन्होंने "वैद्य" का रूप धार कर घायल रावण का इलाज़ किया इसीलिए वे वैद्य नाथ कहलाये। कहते हैं यहां प्रार्थना करने पर सब मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं इसलिए इसे "कामनालिंग" भी कहते हैं। भक्त पवित्र गंगाजल सुल्तानगंज से लाते हैं और अभिषेक करते हैं। श्रावण और भाद्रपद महीनों में यहां मेले लगते हैं।
इसके बारे में यह भी कहा गया है कि यह श्मशान भूमिं पर है और जलती चिताओं की राख शिव जी अपने शरीर पर मलते हैं। यहां कापालिक साधनाएं भी होती हैं।
इस ज्योतिर्लिंग की भौगोलिक स्थिति के बारे में थोड़ी अनिश्चितता है। जहाँ एक तरफ यह
१. देवगढ़ (झारखंड) में बैद्यनाथ रूप में माना गया है , वहीं इसे
२. महाराष्ट्र में परली के वैजनाथ और इसे
३. हिमाचल प्रदेश के बैजनाथ के रूप में भी कहा जाता है।
परली महाराष्ट्र वैजनाथ मंदिर
परली महाराष्ट्र वैजनाथ मंदिर
देवगढ़ झारखंड का बैद्यनाथ मंदिर
हिमाचल प्रदेश का बैजनाथ मंदिर
हिमाचल प्रदेश वाले शिवलिंग के बारे में कथा है कि रावण ने तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया और माँगा कि वे उसके साथ चलें। तब श्री शिव जी ने लिंग रूप लिया और रावण से कहा कि तुम इस शिवलिंग को जहां चाहे ले जाकर स्थापित कर लो। किन्तु यह ध्यान रखना कि रास्ते में कहीं इसे भूमि पर न रखना क्योंकि एक बार रखने पर यह स्थापित हो आएगा और फिर न हिलेगा। रावण जब शिवलिंग ले जा रहा था तब देवताओं को चिंता हुई कि यदि शिवलिंग लंका में रहे तो रावण को हरा पाना असम्भव होगा। उन्होंने विचारविमर्श किया और वरुणदेव से प्रार्थना की। वरुणदेव रावण के पेट में प्रविष्ट हुए और रावण को बेचैनी हुई। वह जानता था कि शिवलिंग भूमि पर नहीं रखना है। तब वह किसी को खोजने लगा और उसे एक ब्राह्ण दिखे। उसने उन्हें शिवलिंग कुछ पल पकड़ने को कहा और जब वह लौटा तो ब्राह्मण शिवलिंग को इतनी देर न उठा पानेका कारण कह कर कारण भूमि पर रख चुके थे। रावण ने शिवलिंग को उठाने और आगे बढ़ने की कोशिश की तो शिवलिंग को उठा पाना संभव न हो पाया। तबसे यह शिवलिंग यहीं स्थापित है। रावण ज्ब तक जीवित था रोज़ वहां आकर अर्चना करता था। किन्तु रावण की मृत्यु के बाद लम्बे समय शिवलिंग यूँ ही उपेक्षित रहा। तब एक "बैजू" नामक शिकारी को ये मिले और उसने उन्हें अपना इष्टदेव मान पुनः पूजा आरम्भ की और स्थापित किया। इसलिए ये "बैजू के नाथ" या बैजनाथ नाम से प्रसिद्ध है।
मेरे बाबा के हर धाम मनोहर हैं जी चाहे हिमाचल में बैजनाथ धाम ही या देवघर में बैद्यनाथ धाम । दोनों ही मन भावन है । जय भोलेनाथ की जी
जवाब देंहटाएंमेरे बाबा के हर धाम मनोहर हैं जी चाहे हिमाचल में बैजनाथ धाम ही या देवघर में बैद्यनाथ धाम । दोनों ही मन भावन है । जय भोलेनाथ की जी
जवाब देंहटाएंमेरे बाबा का हर धाम निराला होता है ।
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