पतंजलि सूत्र :
जब योगी पूर्णतः योग में डूब जाता है तब उसके पास की सम्पूर्ण सृष्टि अहिंसक हो जाती है :
-------
योगी भर ही तो योगी है -
आस पास की सृष्टि तो नहीं ?
फिर यह सूत्र क्या कह रहा है ?
यदि ऐसा है तो क्यों ,
जीज़स को सलीब और ,
सुकरात को जहर मिला ?
वे लोग जो इन योगियों के समीप थे ,
क्यों अहिंसक न हुए ?
क्या जीज़स या सोक्रेट्स ,
सनातन सत्य प्राप्त -
सच्चे योगी नहीं थे ?
क्यों लोगों ने महावीर और ,
बुद्ध पर लगाए लांछन ?
क्या उन्होंने आत्मबोध को नहीं पा लिया था ?
क्यों हुए कृष्ण और राम जैसे ,
ब्रह्मज्ञान युक्त योगियों के ,
आस पास इतने भयंकर युद्ध ?
क्या यह सूत्र झूठा है ?
न - पतंजलि सिद्ध योगी हैं ,
उनका सूत्र झूठा कैसे हो सकता है ?
फिर ?
हाँ - सुना है यह भी हमने ,
कि जब मीरा को आया था,
विष का प्याला ,
तो विष ने अपना स्वभाव बदल ,
खुद को अमृत कर लिया था ,
और सांप ने स्वयं को बदल दिया
पुष्प माला में ।
सुना है मैंने कि ,
देवव्रत ने बुद्ध पर ,
बड़ा शिलाखंड गिरवाया था ,
लेकिन ठहर गया था शिलाखंड ,
बुद्ध को छूने से पहले ,
अपने स्वभाव के विपरीत ।
जब बुद्ध पर पागल हाथी लपकाया गया ,
तो वह शांत भाव से हुआ ,
चरणों की शरण।
सुना है बहुत कुछ जो ,
हुआ इन सिद्ध योगियों के निकट ,
जो सृष्टि के स्वाभाविक ,
नियमों के विरुद्ध हुआ ,
लेकिन ,
इन्हे चमत्कार मान लिया गया।
सुना मैंने यह भी है कि ,
एक व्यक्ति ने ,
लाखों लोगों के सामने ,
एक प्रयोग किया था ,
एक सांड के दिमाग में ,
बिठाया एक इलेक्ट्रोड ,
उसे बटन दबा कर क्रोधित किया गया ,
और वह लपका व्यक्ति को मारने ,
फिर कुछ फीट की दूरी पर ,
दूसरा बटन ,
और क्रोधित सांड एकदम शांत हुआ ,
आशंकायें मुस्कुराईं और ,
व्यक्ति को कुछ न हुआ।
तो क्या योगी के आस पास ,
निर्मित होता है कोई तेजमण्डल?
जो ऐसा ही कुछ प्रभाव करता है ,
आस पास की निर्जीव सजीव सृष्टि पर ?
जो पत्थर हैं और हैं पशु ,
उनके मस्तिष्क ,
स्वाभाविक हैं।
तो उनपर असर करता है ,
सतयोगी का प्रभा मंडल ,
वे आईने हो जाते हैं और ,
उनमे दिखती है योगी की ,
शांत छवि।
वे सम्पूर्ण अहिंसक हो जाते हैं।
उनका स्वभाव स्व न रह कर ,
योगी स्वभाव का प्रतिरूप हो उठता है ,
योगी उन्हें नहीं बदलता ,
उनके आईने साफ़ होने से ,
वे स्वयं योगी का,
प्रतिबिम्बन करने लगते हैं।
लेकिन मानव ?
अनेकों आइनों पर धूल पड़ी है।
जो शांत और खुले मनुष्य हैं ,
वे ऐसे योगी के समीप ,
शांत हो जाते हैं ,
सम्बोधि भी प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन जिनके आईने धूलि धूसरित हैं ,
वे बिम्ब नहीं बनाते ,
वे स्वयं ही धूल में लिपटे ,
चुनाव करते हैं ,
हो वह हिन्दू आस्थाओं की धूल ,
या मुस्लिम ईमान की ,
धारणाओं में लिपटे मानव ,
प्रकाश को स्वयं तक आने ही नहीं देते।
यीशु का प्रेम सन्देश ,
तोते की तरह रट लेने वाले ,
नहीं मान सकते ,
युद्ध को उकसाते कृष्ण को ,
योगी।
और ,
धर्म के नाम पर
निरीह जीवों और जनों की ,
हत्या करना सीखे लोग ,
नहीं मान सकते महावीर के ,
अहिंसा के सन्देश को।
तो वे महावीर को,
योगी मान ही नहीं सकते।
अपने मानक योगी के ,
अपने विश्वासों के विरुद्ध हुई बातो के ,
तर्कसंगत औचित्य ढूंढ लेते हैं।
और दूसरे विश्वासों के योगियों के ,
वे नरक भेज देते हैं ,
अपने मानस मंडल में।
वे कृष्ण को मानें तो ,
रासलीला के अनेक तर्कसंगत कारण ,
गिना देते हैं क्योंकि ,
उनके आईने की धूल कहती है ,
कि योगी नहीं कर सकता रासलीला।
क्योंकि उनकी धूल के अनुसार तो ,
शारीरिक प्रेम सिर्फ पाप है।
फिर वे अपने मन में ही ,
अपने ईश्वर को - ढाल लेते हैं ,
और
उसके आस्था के विरुद्ध दीखते कर्मों के ,
कारण आरोपित करते हैं।
योगी यदि पूर्ण रूपेण ,
यॊगस्थित हो ,
तो अहिंसक हो जाती है उसके ,
उपवास करने वाली सम्पूर्ण सृष्टि।
कृष्ण की गोपिकाएं नाचने लगती हैं ,
सिंह और छौने संग आ जाते हैं।
अग्नियाँ शीतल हो जाती हैं ,
सीता के गुजरने के लिए।
राम के वनमार्ग के ,
कठोर कंटक कोमल पुष्प हो उठते है
तैरने लगते हैं सागर पर पत्थर।
मोज़ेस के संग जाते ,
ईजिप्शियनों से बच भागते ,
इज़राइलियों के लिए ,
सागर राह देता है ,
और उनके जाते ही ,
फिर पूर्ववत हो उठता है।
कृष्ण के स्पर्श से ,
कुब्जा सीधी हो उठती है ,
गुरुनानक जिधर पैर करें ,
उसी ओर ,
दीनवालों को काबा दीखता है।
लेकिन धूलभरे मानव आईने ,
अपने विश्वासों की धूल लिए ,
योगी के प्रकाश की ऊर्जा को ,
प्रतिबिंबित नहीं करते।
वे उसे ,
क्रोधाग्नि की ऊर्जा में ,
रूपांतरित कर लेते हैं ,
और करते हैं योगी पर हमले।
योग सूत्र सच ही है ,
किन्तु परन्तु लेकिन ....
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ओशो रजनीश के वचनो से
जब योगी पूर्णतः योग में डूब जाता है तब उसके पास की सम्पूर्ण सृष्टि अहिंसक हो जाती है :
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योगी भर ही तो योगी है -
आस पास की सृष्टि तो नहीं ?
फिर यह सूत्र क्या कह रहा है ?
यदि ऐसा है तो क्यों ,
जीज़स को सलीब और ,
सुकरात को जहर मिला ?
वे लोग जो इन योगियों के समीप थे ,
क्यों अहिंसक न हुए ?
क्या जीज़स या सोक्रेट्स ,
सनातन सत्य प्राप्त -
सच्चे योगी नहीं थे ?
क्यों लोगों ने महावीर और ,
बुद्ध पर लगाए लांछन ?
क्या उन्होंने आत्मबोध को नहीं पा लिया था ?
क्यों हुए कृष्ण और राम जैसे ,
ब्रह्मज्ञान युक्त योगियों के ,
आस पास इतने भयंकर युद्ध ?
क्या यह सूत्र झूठा है ?
उनका सूत्र झूठा कैसे हो सकता है ?
फिर ?
हाँ - सुना है यह भी हमने ,
कि जब मीरा को आया था,
विष का प्याला ,
तो विष ने अपना स्वभाव बदल ,
खुद को अमृत कर लिया था ,
और सांप ने स्वयं को बदल दिया
पुष्प माला में ।
सुना है मैंने कि ,
देवव्रत ने बुद्ध पर ,
बड़ा शिलाखंड गिरवाया था ,
लेकिन ठहर गया था शिलाखंड ,
बुद्ध को छूने से पहले ,
अपने स्वभाव के विपरीत ।
जब बुद्ध पर पागल हाथी लपकाया गया ,
तो वह शांत भाव से हुआ ,
चरणों की शरण।
सुना है बहुत कुछ जो ,
हुआ इन सिद्ध योगियों के निकट ,
जो सृष्टि के स्वाभाविक ,
नियमों के विरुद्ध हुआ ,
लेकिन ,
इन्हे चमत्कार मान लिया गया।
सुना मैंने यह भी है कि ,
एक व्यक्ति ने ,
लाखों लोगों के सामने ,
एक प्रयोग किया था ,
एक सांड के दिमाग में ,
बिठाया एक इलेक्ट्रोड ,
उसे बटन दबा कर क्रोधित किया गया ,
और वह लपका व्यक्ति को मारने ,
फिर कुछ फीट की दूरी पर ,
दूसरा बटन ,
और क्रोधित सांड एकदम शांत हुआ ,
आशंकायें मुस्कुराईं और ,
व्यक्ति को कुछ न हुआ।
तो क्या योगी के आस पास ,
निर्मित होता है कोई तेजमण्डल?
जो ऐसा ही कुछ प्रभाव करता है ,
आस पास की निर्जीव सजीव सृष्टि पर ?
जो पत्थर हैं और हैं पशु ,
उनके मस्तिष्क ,
स्वाभाविक हैं।
तो उनपर असर करता है ,
सतयोगी का प्रभा मंडल ,
वे आईने हो जाते हैं और ,
उनमे दिखती है योगी की ,
शांत छवि।
वे सम्पूर्ण अहिंसक हो जाते हैं।
उनका स्वभाव स्व न रह कर ,
योगी स्वभाव का प्रतिरूप हो उठता है ,
योगी उन्हें नहीं बदलता ,
उनके आईने साफ़ होने से ,
वे स्वयं योगी का,
प्रतिबिम्बन करने लगते हैं।
लेकिन मानव ?
अनेकों आइनों पर धूल पड़ी है।
जो शांत और खुले मनुष्य हैं ,
वे ऐसे योगी के समीप ,
शांत हो जाते हैं ,
सम्बोधि भी प्राप्त कर लेते हैं।
लेकिन जिनके आईने धूलि धूसरित हैं ,
वे बिम्ब नहीं बनाते ,
वे स्वयं ही धूल में लिपटे ,
चुनाव करते हैं ,
हो वह हिन्दू आस्थाओं की धूल ,
या मुस्लिम ईमान की ,
धारणाओं में लिपटे मानव ,
प्रकाश को स्वयं तक आने ही नहीं देते।
यीशु का प्रेम सन्देश ,
तोते की तरह रट लेने वाले ,
नहीं मान सकते ,
युद्ध को उकसाते कृष्ण को ,
योगी।
और ,
धर्म के नाम पर
निरीह जीवों और जनों की ,
हत्या करना सीखे लोग ,
नहीं मान सकते महावीर के ,
अहिंसा के सन्देश को।
तो वे महावीर को,
योगी मान ही नहीं सकते।
अपने मानक योगी के ,
अपने विश्वासों के विरुद्ध हुई बातो के ,
तर्कसंगत औचित्य ढूंढ लेते हैं।
और दूसरे विश्वासों के योगियों के ,
वे नरक भेज देते हैं ,
अपने मानस मंडल में।
वे कृष्ण को मानें तो ,
रासलीला के अनेक तर्कसंगत कारण ,
गिना देते हैं क्योंकि ,
उनके आईने की धूल कहती है ,
कि योगी नहीं कर सकता रासलीला।
क्योंकि उनकी धूल के अनुसार तो ,
शारीरिक प्रेम सिर्फ पाप है।
फिर वे अपने मन में ही ,
अपने ईश्वर को - ढाल लेते हैं ,
और
उसके आस्था के विरुद्ध दीखते कर्मों के ,
कारण आरोपित करते हैं।
योगी यदि पूर्ण रूपेण ,
यॊगस्थित हो ,
तो अहिंसक हो जाती है उसके ,
उपवास करने वाली सम्पूर्ण सृष्टि।
कृष्ण की गोपिकाएं नाचने लगती हैं ,
सिंह और छौने संग आ जाते हैं।
अग्नियाँ शीतल हो जाती हैं ,
सीता के गुजरने के लिए।
राम के वनमार्ग के ,
कठोर कंटक कोमल पुष्प हो उठते है
तैरने लगते हैं सागर पर पत्थर।
मोज़ेस के संग जाते ,
ईजिप्शियनों से बच भागते ,
इज़राइलियों के लिए ,
सागर राह देता है ,
और उनके जाते ही ,
फिर पूर्ववत हो उठता है।
कृष्ण के स्पर्श से ,
कुब्जा सीधी हो उठती है ,
गुरुनानक जिधर पैर करें ,
उसी ओर ,
दीनवालों को काबा दीखता है।
लेकिन धूलभरे मानव आईने ,
अपने विश्वासों की धूल लिए ,
योगी के प्रकाश की ऊर्जा को ,
प्रतिबिंबित नहीं करते।
वे उसे ,
क्रोधाग्नि की ऊर्जा में ,
रूपांतरित कर लेते हैं ,
और करते हैं योगी पर हमले।
योग सूत्र सच ही है ,
किन्तु परन्तु लेकिन ....
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ओशो रजनीश के वचनो से
बढ़िया!
जवाब देंहटाएंSoulful!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आदरणीया-
गंभीर चिंतन से ओतप्रोत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंनववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ शिल्पा बहिन.
योगी के निकट सृष्टि अहिंसक हो जाती है...अज्ञानी मानव को छोड़कर..परम वचन !
जवाब देंहटाएंधारणाओं में लिपटे मानव ,
जवाब देंहटाएंप्रकाश को स्वयं तक आने ही नहीं देते।
।
।
बहुत गहरी बात!
नववर्ष की मंगलकामनाएं!
जवाब देंहटाएंकृष्ण तो सिद्ध नहीं,योगी नहीं,योगेश्वर थे, और उस योगेश्वर के चारों और छिड़ा था महाभारत ...