२०१२ में श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर यह थी (लिंक)
आज यह लिख रही हूँ
जन्माष्टमी का पर्व है आज
आज यह लिख रही हूँ
जन्माष्टमी का पर्व है आज
तो मन में आता है बस
नन्हा माखन चुराता कान्हा
यशोमती माई के डंडे के डर से
भागता - सहमता - छिप जाता कान्हा।
याद आता है - गोपियों की धमकियों से
चिढ़चिड़ाता नाचता नचाता कान्हा
याद आता है राधा और नंदिनी के
बुलावण को मुरली बजाता कान्हा।
कभी गैया चराता तो
कभी गोपों संग खिलखिलाता कान्हा
कभी सेब वाली के फल ले
मासूमियत से धन के बदल
(हीरों सम) चावल पोटली में भर लाता कान्हा।
भूल जाता है तुम्हारा वह रूप
कि जिसमे तुम सुनाते हो
सर्वोपरि उपदेश -
साकाम से निष्काम कर्म का सफर
कर्म से कर्म योग
अधर्म के नाश से
धर्म के पुनर्स्थापन का सफर।
भूल जाते है अर्जुन के वह
विश्वरूप देख हुए भयभीत स्वर
हे प्रभु - मुझे माफ़ करो
मैंने तो आपको -
हे सखा हे गोविन्द पुकारा।
अपना सम सखा ही मान आपको
बहुत निरादर व्यवहार किया।
याद बस रहता है वह
हँसता नन्हा निश्छल बालक
जो बांसुरी की धुन पर
सारे संसार को नचाता
इंद्र की अतिवृष्टि से गोकुल को
गोवर्धन उठा शरण देता बालक।
तुम कौन हो कृष्ण ? कौन हो ?
बोलो ? क्या वह बालक हो जो गैया चराता है ?
या वो जो मुरली बजाता है ?
वो जो गोवर्धन उठाता है या वो जो रास रचाता है ?
वह फिर कौन है जो रुक्मिणी को हर ले जाता है
या भामा की तुला में तुल जाता है ?
कौन हो तुम बोलो ?
जो जरासंध का वध कराता है
या अर्जुन को कर्म पथ बताता है ?
कौन हो तुम कहो तो कान्हा ?
वो उठाओ तो जरा उधर से... हाँ वही, वही दर्पण ही....... अब इसे अपने सामने लाओ तो जरा.....हाँ... बिल्कुल ठीक ऐसे ही...... अब ध्यान से देखो इसमें...... क्या दिखा?
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॥
अरे बिल्कुल सही पहचाना....वही तो हूँ "मै" :)
:)
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