शिव पुराण १२ : काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दू देवस्थानों में सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह गंगा जी के किनारे बनारस में बसा है। मंदिर का बाहरी स्वरुप अनेक बार तोड़ दिया गया और यह पुनर्गठित हुआ। आखिरी बार औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवायी थी। आज का मंदिर अहल्याबाई होल्कर (इंदौर की मराठा रानी) द्वारा बनवाया गया था।
कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में बहस हो गयी थी कि कौन बड़ा है। तब शिव जी वहां प्रकाश लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और ब्रह्मा जी अपने हंस पर बैठ ऊपरी छोर ढूंढने निकले और विष्णु जी वराह रूप में निचला छोर। विष्णु जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर न ढूंढ पाया किन्तु ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी एक और ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा न होगी क्योंकि स्वयं को पूजित बनाने झूठ बोला था ।
यहीं पास में मणिकर्णिका मंदिर है जो सती माता का शक्तिपीठ है । यह भी एक कथा है कि शिव जी ने यह स्थल अपने त्रिशूल पर उठा रखा है और इसे ब्रह्मा की सृष्टि से पृथक कर दिया था। जब प्रलय होती है तो शिव जी इसे त्रिशूल पर रखते हैं और नए संसार में दुबारा अपने स्थान पर स्थापित कर हैं ।
एक और कथा है कि जब शिव जी ब्रह्मा जी पर क्रुद्ध हुए तो काल भैरव को प्रकट किया जिन्होने ब्रह्मा जी का एक मुख काट दिया। यह ब्रह्महत्या हुई और कटा हुआ मुख काल भैरव से जुड़ गया। उन्होंने बहुत प्रयास किये किन्तु ब्रह्मह्त्या अलग न होती थी। फिर कल भैरव ने काशी आकर गंगा स्नान किया और पाप मुक्त हुए ।
मंदिर प्रांगण में ज्ञानवापी नामक कुआं है । कहते हैं आक्रमण के समय पुजारी शिवलिंग को बचाने के लिए उन्हें लेकर कुँए में कूद गए थे।
काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दू देवस्थानों में सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह गंगा जी के किनारे बनारस में बसा है। मंदिर का बाहरी स्वरुप अनेक बार तोड़ दिया गया और यह पुनर्गठित हुआ। आखिरी बार औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवायी थी। आज का मंदिर अहल्याबाई होल्कर (इंदौर की मराठा रानी) द्वारा बनवाया गया था।
कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में बहस हो गयी थी कि कौन बड़ा है। तब शिव जी वहां प्रकाश लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और ब्रह्मा जी अपने हंस पर बैठ ऊपरी छोर ढूंढने निकले और विष्णु जी वराह रूप में निचला छोर। विष्णु जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर न ढूंढ पाया किन्तु ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया। तब शिव जी एक और ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा न होगी क्योंकि स्वयं को पूजित बनाने झूठ बोला था ।
यहीं पास में मणिकर्णिका मंदिर है जो सती माता का शक्तिपीठ है । यह भी एक कथा है कि शिव जी ने यह स्थल अपने त्रिशूल पर उठा रखा है और इसे ब्रह्मा की सृष्टि से पृथक कर दिया था। जब प्रलय होती है तो शिव जी इसे त्रिशूल पर रखते हैं और नए संसार में दुबारा अपने स्थान पर स्थापित कर हैं ।
एक और कथा है कि जब शिव जी ब्रह्मा जी पर क्रुद्ध हुए तो काल भैरव को प्रकट किया जिन्होने ब्रह्मा जी का एक मुख काट दिया। यह ब्रह्महत्या हुई और कटा हुआ मुख काल भैरव से जुड़ गया। उन्होंने बहुत प्रयास किये किन्तु ब्रह्मह्त्या अलग न होती थी। फिर कल भैरव ने काशी आकर गंगा स्नान किया और पाप मुक्त हुए ।
मंदिर प्रांगण में ज्ञानवापी नामक कुआं है । कहते हैं आक्रमण के समय पुजारी शिवलिंग को बचाने के लिए उन्हें लेकर कुँए में कूद गए थे।
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