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शनिवार, 28 जनवरी 2012

सीखे हुए उत्तर

सीखे हुए उत्तर कभी काफी नहीं होते- क्योंकि प्रश्न हमेशा बदलते रहते हैं । इस दुनिया में अगर कोई चीज़ नित्य है - तो वह है बदलाव । इस सिलसिले में एक कहानी याद आती है -

दो मंदिर थे - और एक दूसरे से कही भी सहमत न होते थे ( अक्सर ऐसा ही होता देखा जाता है - सभी कहते हैं की परम सत्य एक है - किन्तु उसे ढूँढने वाले / जानने के दावे करने वाले - कभी भी एक दूसरे से सहमत नहीं दीखते ) उनमे से किसी भी एक मंदिर वाले कभी भी दूसरे मंदिर वालों से हारना न चाहते, जहां तक हो - एक दुसरे को avoid करने का ही प्रयास करते । किन्तु बच्चे तो फिर बच्चे होते हैं न - बड़े उन्हें कितना ही बिगाड़ने के प्रयत्न करें, उन्हें बिगड़ने में समय लगता है । वे मन में प्रेम के सागर भरे आए होते हैं, जिस सागर को ये "सत्यखोजी" मार्गों वाले बड़े / समझदार जन सुखाने के प्रयास करते हैं - और यह सूखने तक जो समय चाहिए - तब तक वह बच्चा बड़ा हो गया होता है । 

तो दोनों मंदिरों के समूहों के दो बच्चे - अक्सर राह में मिलते, तो बातें कर लेते । दोनों कुछ कुछ बड़े हो चले थे, सागर सूखने लगा था - किन्तु अभी इतना भी न सूखा था की एक दूसरे से नज़र बचा कर निकल जाएँ । हाँ, एक दूसरे से जीतना है, यह भावना ज़रूर पनपने लगी थी । 

एक दिन ये दोनों बच्चे राह में मिले । एक ने दूसरे से पूछा - "कहाँ जा रहे हो ?" वह भी शायद कुछ Poetic Mood में रहा होगा - तो बोला - "जहां हवाएं ले जाएँ।" अब पहले वाले को कुछ समझ न आया, आगे क्या बात करूँ - चुप ही रह गया। (वैसे मेरी नज़र में यह पहले बच्चे की हार नहीं है - कम से कम उसने बात शुरू करने की कोशिश तो की  - दूसरे बच्चे ने - जो यहाँ जीता हुआ दीखता है - (के उसने इस को चुप करा दिया ) - उसीकी हार लगती है मुझे तो - उसने दोस्ती के राह बंद कर दी संवाद को ख़त्म कर के - पर खैर - यह एक कहानी है )

 अब यह पहला बच्चा बड़ा परेशान हुआ , वापस लौट कर मंदिर में गुरु से कहा "आज मैं उस मंदिर वाले से हार गया" - और पूरी बात बताई । अब यह कैसे स्वीकार हो  कि  हम हार गए ? गुरु को बड़ा बुरा लगा - उसने कहा - "यह तो बहुत बुरी बात है - हम हार कैसे सकते हैं ? कल फिर पूछना - वह ऐसा कहे तो कहना - अगर हवा न चलती हो - तो कहाँ जाओगे ?" 

अगले दिन फिर मुलाकात हुई - यह बच्चा तैयार था - फिर पूछा - "कहाँ जाते हो ?" लेकिन अब वह दूसरा बोला - "जहां पैर ले जाएँ " तो सीखा हुआ जवाब व्यर्थ हो गया - क्या कहे ? फिर चुप रह जाना पडा । आज तो गुरु जी को और बुरा लगा - वे बोले "कल पूछना - कभी ऐसा भी हो सकता है की पैर न रहे - तब कहीं नहीं जाओगे क्या ? और वह जवाब बदल कर जो भी और जवाब दे - उसमे इसी तरह का कुछ पूछना - की यह न हो तो क्या करोगे ? हार कर नहीं आना ।"

अगले दिन यह बच्चा पूरी तैयारी के साथ गया । alternative उत्तर भी सब सोचे हुए थे - की ऐसा घुमावदार जवाब मिला - तो ऐसा पूछूंगा । आज फिर दोनों मिले 

और इसने पूछा "कहाँ जा रहे हो ?"

दूसरा बच्चा बोला "सब्जी लेने "

....

:)

तो - सीखे हुए उत्तर अक्सर काम नहीं आते । जीतने के कोशिश अपने आप में ही हार होती है । जीतने / हारने के प्रयास ही यह कह रहे हैं की चुनी हुई राह ही गलत है - हमारी मंजिल यदि दूसरे से जीतना / उसे हराना है - तो वह प्रेम का / एकत्व का पथ है ही नहीं - हार तो हो ही चुकी । अब ऊपर से जीते या हारे - इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही बढ़िया ।

    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।


    सादर

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  2. हारने का भय बता देता है वहां जीत अपेक्षित थी। जहां जीत अपेक्षित होती है वहां सच्चाई दम तोड देती है।

    बहुत ही गम्भीर प्रस्तुति!!

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  3. बुद्धि और समृद्धि से देश खुशहाल हो, वसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!!

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  4. प्रेम गली अति सांकरी जा में दो ना समाय।

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  5. @स्मार्ट इंडियन जी, आभार :)

    @यशवंत जी - आपको भी वसंत पंचमी की शुभकामनायें |

    @सुज्ञ भैया - बिलकुल सच कह रहे हैं आप | वसंत पंचमी की शुभकामनायें |

    @देवेन्द्र जी - बिलकुल सच है - दो नहीं हैं - एक ही समा सकता है - और एक ही है :)

    सभी को वसंत पंचमी की शुभेच्छाएं |

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  6. बहुत सुन्दर,सार्थक प्रस्तुति।

    ऋतुराज वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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  7. बहुत ही बदिया ... पहली बार पढ़ा है... सुंदर अभिव्यक्ति. साधुवाद.

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  8. सचमुच रटंत विद्या कभी काम नहीं आ सकती...अपनी बुद्धि का ही संबल अपेक्षित है.

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  9. पाताली जी - आपका आभार | आपका नाम नहीं जानती - सो यही लिख रही हूँ :) आपको भी वसंत के आगमन की बधाइयाँ |

    संगीता जी - आभार आपका :)

    दीपक बाबा जी - आपको तो मैं काफी समय से पढ़ रही हूँ, २- ३ बार कुछ टिप्पणियां भी की - पर अधिकतर सिर्फ पढ़ कर आ जाती थी | आपका आभार की आप यहाँ आये - आते रहिएगा :) आपका यहाँ स्वागत है |

    रश्मि जी - बिलकुल | रटे हुए उत्तर कभी काम नहीं आते, flexibility नहीं होती न :)

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  10. ऐसी विद्या किसी काम की नहीं।
    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं....!

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  11. yah bhi khoob rahi.
    ek kahaavat suni thi.

    ek ne kaha daaje ne maani
    naanak kahen dono gyaani.

    iska matlab yah nahi ki doosra kuchh
    bhi n kahe.par dono ek doosre ke
    vicharon ke sakaaraatmak aadaan pradaan
    se aage badhen.

    samy mile to meri post'aisi vaani boliye'
    padhiyega.meri popular poston men se ek hai.

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