उज्जैन (म.प्र.) में तीसरे ज्योतिर्लिंग विद्यमान हैं - महाकालेश्वर।
अवन्ति नगरी में क्षिप्रा तट पर वेदप्रिय नामक ब्राह्मण रहते थे। वे शिवभक्त थे और प्रतिदिन शिव लिंग की अर्चना करते थे। उनके चार पुत्र थे - देवप्रिय, प्रियमेध, सुवृत (धर्मबाहु), और सुकृत। ब्राह्मण की ही पुत्र भी बड़भागी थे और शिवभक्त थे। समय आने पर ब्रह्मण ने देहत्याग किया और उनके पुत्र उन्ही की तरह शिव भक्ति में लगे रहे।
इधर रत्नाक नामक पहाड़ पर दूषण नामक दैत्य वास करता था । उसने कठिन तप कर ब्रह्मा जी से वर प्राप्त किया था और अत्यधिक बल शाली था। उसने आसपास सब तरफ साम्राज्य स्थापित किया था और सिर्फ इन चार ब्राह्मणों के अलावा सब तरफ उसका भय था। वेद स्थापित जीवन जीने की किसी को अनुमति न थी ।
जब उसे पता चला कि चार ब्रह्मण शिव आराधना करते हैं तो वह बड़ा क्रोधित हुआ। उसने सैनिक भेजे कि उन्हें पकड़ लाओ। इन दैत्यों ने वहां आकर उत्पात शुरू किया और ब्राह्मणों को आज्ञा सुनाई। किन्तु वे पूजन करते रहे और बात ही न सुनी। क्रुद्ध दैत्य उन्हें मारने को चढ़ दौड़े। तब भी वे पूजा करते रहे।
तभी तीव्र गर्जना हुई एवं धरती में पड़ी दरारों में से अग्निसमान शिव जी प्रकट हुए। उन्होंने दैत्यों को मार दिया और पर्वत पर जा कर दूषण का भी वध कर दिया। लौट कर उन्होंने ब्राह्मण बंधुओं से वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मणों ने मोक्ष माँगा और यह भी कि शिव जी सदैव उस स्थल पर रहें। तबसे यह शिवलिंग उज्जैन में स्थित है।
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