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शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

दो तिनके

( पिछली पोस्ट की ही तरह - यह भी "आनंद" कथा ही है । इस बार approach अलग है । पिछली पोस्ट में कर्म योग था - इस बार - नहीं मैं नहीं कहती - आप बताइये पढ़ कर :) यह कहानी भी मेरी नहीं है - ओशो की सुनाई अनेक कहानियों में से एक है )

तो कहानी यूँ है की दो तिनके एक नदी में पड़ गए (जान बूझ कर ही "गिर" गए नहीं कहा है )। दोनों एक ही हवा के झोंके से उड़ कर एक ही साथ यहाँ आ पहुंचे थे - एक ही साथ थे - दोनों की परिस्थतियाँ बिलकुल समान थी। परन्तु दोनों की मानसिक स्थिति एक न थी । एक पानी में बहता था - सुख पूर्वक, तैरने का आनंद लेते हुए, आनंदित ... तो दूसरा - उसे किनारे पर पहुंचना था । बड़े प्रयास करता - पूरी ताकत लगाता - परन्तु नदी के शक्तिशाली बहाव के आगे बेचारे तिनके की ताकत ही क्या ? उसके सारे प्रयास व्यर्थ होते रहे - बहता तो वह उसी दिशा में रहा जिसमे नदी बहती थी - परन्तु, पहले तिनके की तरह सुखपूर्वक नहीं, बल्कि दुखी मन से । 

फिर कुछ आगे जाने पर नदी की धारा कुछ धीमी हुई , तो पहला तिनका दूसरे से बोला - आओ मित्र - अब प्रयास करने के लिए समय अनुकूल है, मिल कर कोशिश करें, किनारे पर घास उगी है - जो नदी के बहाव को रोक भी रही है, और कई लम्बे घास के blades तो नदी में काफी दूर तक उग आये हैं । थोडा प्रयास करने से हम इन मित्रों के सहयोग से अपनी दुनिया में पहुँच जायेंग ।

परन्तु दूसरा तिनका इतनी मेहनत कर चुका था - कि थक गया था - उससे अब आगे प्रयास न किया गया । परन्तु पहला तिनका अपने मित्र को मुसीबत में छोड़ कर किनारे न गया - उसके साथ अपने आप को उलझा कर थोड़ी शक्ति बढ़ी, फिर जोर लगाया - और किनारे से जुड़े हुए एक लम्बे घास को किसी तरह पकड़ लिया । फिर कुछ देर सुस्ताने के बाद दोनों उस जुड़े वाले के सहारे धीरे धारे सूखे किनारे पर पहुँच ही गए ।

पहला तिनका पुराने साथियों की मीठी यादों से खुश था, किनारे नए मित्रों के बीच प्रसन्न था । दूसरा तिनका अब भी अपने पुराने स्थान के साथी तिनकों से बिछड़ने के कारण उदास , डूबने की याद से परेशान, और भीगेपन से दुखी था ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. एक ही जगह एक सी स्थिति , पर ग्रहण करने का ढंग अलग - यही तो सबकुछ है

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  2. जो आनंद को चुनता है उसके लिये बाहर की परिस्थितियों का कोई महत्व नहीं रह जाता...

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  3. हम्म...विपरीत परिस्थितयों में भी धैर्य बनाए रखना...सफलता के करीब ले जाता है
    सुन्दर संदेश

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  4. बहुत कम और सरल शब्दों में सार्थक संदेश देती खूबसूरत रचना ...
    http://aapki-pasand.blogspot.com/2012/02/blog-post_03.html समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  5. यह भी कर्म-योग ही है। बिना उपयुक्त समय और अनुकूलता के श्रम व्यर्थ है।
    आनन्द का सम्बंध हमारी मानसिकता से है।

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  6. सहमत हूँ. सोच से बहुत कुछ जुड़ा है......

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  7. एक नहीं कई बातों को खोलती है ये कहानी ... बहुत कुछ है इसमें जो सोचने को मजबूर करता है ...
    शुक्रिया इस कहानी के लिए ...

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  8. उठा बगुला प्रेम का,तिनका उडा आकाश
    तिनका तिनके से मिला,तिनका तिनके पास

    तिनको की कहानी बहुत रोचक और प्रेरक लगी.
    हृदय में आस्था और प्रेम हो तो 'सत-चित-आनन्द'
    परमात्मा में ही वास होता है.

    शिक्षाप्रद प्रस्तुति के लिए आभार.

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  9. कितना गंभीर जीवन दर्शन..एक नन्ही सी कहानी में..
    बहुत सुन्दर.

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