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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2012

नवरात्र : श्री दुर्गा सप्त शती और मधु कैटभ कथा

सभी को महानवमी की शुभकामनायें 

श्री दुर्गा सप्तशती हिंदी में - गीतापेस - पढने के लिए लिंक क्लिक करें 


आज महानवमी के शुभ दिन एक और कथा बांचते हैं  :)

प्राचीन समय में सुरथ नाम के एक राजा थे । ये राज्य के प्रति उदासीन थे, जिसका लाभ उठा कर शत्रुओं ने इनके राज्य पर हमला किया । लोभवश राजा के विश्वासपात्र मंत्री भी शत्रुओं से मिल गए, और राजा सुरथ की पराजय हुई । राज का मन अपने मंत्रियों के इस विश्वासघात से बहुत खिन्न था, और वे तपस्वी वेश में वन में वास करने लगे, किन्तु उनका मोह उन्हें कष्ट देता रहा ।

वन में उनकी भेंट समाधि नामक एक वणिक से हुई, जो अपने स्त्री और पुत्रों के दुर्व्यवहार से दुखी हो वहां रह रहा था । दोनों का परस्पर परिचय हुआ और एक दूसरे को उन्होंने अपनी कथा सुनाई । तब दोनों आपस में चर्चा करने लगे कि जिनके लिए मानव इतना मरता खपत है, जब वे ही अपने न हुए, तो मन को शान्ति कैसे मिलेगी ?

वे दोनों महर्षि मेधा की शरण में गए । महर्षि मेधा ने उनसे आने का कारण पूछा और उन्होंने अपने मन के अशांत होने के और इसके कारणों के विषय में उन्हें बताया । उन्होंने कहा कि हमारे स्वजनों ने हमें अपमानित किया, धोखा दिया फिर भी हमारा उनकी और मोह नहीं छूट पाटा - इसका कारण या है ? तब ऋषिवर ने उन दोनों को माता की आराधना करने को कहा और उनको माँ के वैभव की अनेक गाथाएं सुनाईं ।

इनमे से कई कथाएं पिछले नौ दिनों में हम सब पढ़ते आये हैं । आज मधु कैटभ वध की कथा पढ़ते हैं ।
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राजा सुरथ ने पूछा : भगवन ! वह देवी कौन हैं जिन्हें आप महामाया कहते हैं ? उनके बारे में विस्तार से हमें बताइये प्रभु ।
महर्षि मेधा ने कहा " राजन ! वे तो नित्यस्वरूपा हैं, जिनसे संसार रचा गया है । फिर भी उनकी उत्पत्ति बारम्बार अनेक कारणों से प्रकार से होती है ।
एक बार भगवान् विष्णु क्षीर सागर शेष शैया पर योगनिद्रा में थे । संसार विलीन हो चूका था और धरती आदि सब कुछ चिर जल में जलमग्न हो चुका था । तब मधु कैटभ नामक दो दैत्य उनके कर्ण कुहरों से प्रकट हुए । वे श्री विष्णु के नाभि कमल पर स्थित ब्रह्मा जी को मारने दौड़े । ब्रह्मा जी जानते थे कि इन दोनों महाबलवान दैत्यों से सिर्फ विष्णु जी ही मुझे बचा सकते हैं । तब ब्रह्मा जी ने विष्णु जी की आँखों में बसने वाली योगनिद्रा से प्रार्थना की, तो वे स्त्री रूप में श्री विष्णु की आँखों से बाहर आ गयीं । मधु कीटाभ की मृत्यु सिर्फ श्री विष्णु के हाथों ही होनी थी । उन्होंने वर माँगा की यह जल में / जल पर न हो , क्योंकि सब और जल था, तो उन्होंने सोचा कि इस तरह हम बच जायेंगे । लेकिन श्री विष्णु ने उन्हें जाँघों पर लेकर उनका वध किया ।
फिर श्री महर्षि मेधा ने महिषासुर, चंड मुंड, रक्तबीज, और शुम्भ निशुम्भ वध की कथाएँ सुनाईं ।

यह सब उपाख्यान सुनकर सुरथ और वणिक  के मन शांत हुए, तब महर्षि ने उन्हें माँ की उपासना विधि बताईं । वे दोनों नदी के तट पर जाकर तपस्या करने लगे । तीन वर्ष बाद देवी ने उन्हें दर्शन और आशीर्वाद दिए । वणिक ने सांसारिक मोह से मुक्त हो कर आत्मचिंतन में मन लगाया और राजा सुरथ ने शत्रुओं को हरा कर अपना खोया राज्य वापस प्राप्त कर लिया । 

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