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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बलात्कार के लिए - अखिल भारतीय - स्थायी - फ़ास्ट ट्रेक अदालतों की स्थापना

आज एक जनवरी है ।

इस दिसंबर में हमने अपने देश में नारियों के प्रति होती हुई दरिंदगी का अनुभव किया । इस नव वर्ष में आइये प्रयास करें कि,  हम में से आधी जनसँख्या, जो "नारी" हैं, उन्हें अपने मानव अधिकार मिलें । हम देवी नहीं होना चाहतीं, हम नारी भी नहीं कहलाना चाहतीं, सिर्फ मानव भर हम होना चाहती हैं, और एक मानव के रूप में निर्भय और गरिमामय जीवन चाहती हैं । 

कहते हैं, जीवन रुकता नहीं, और यह सच भी है । कुछ भी हो जाए, जीवन आगे बढ़ता रहता है, समय ठहरता नहीं और अपने बहाव में हम सब को बहाता रहता है । और उतना ही बड़ा सच यह भी है कि कुछ दरिंदों की दरिंदगी का अर्थ यह नहीं कि सम्पूर्ण मानवजाति या सम्पूर्ण पुरुष वर्ग को ही हम बुरा मान लें, या जीवन ठहर जाए, या हम समूचे समाज को दोषी ठहराने लगें । याद रखना होगा कि जो युवावर्ग दिल्ली में लाठियां और पानी की बौछारों से लड़ रहा था, वह सिर्फ लड़कियां ही नहीं थीं, वहां लड़के भी उतनी ही संख्या में थे ।

किन्तु, यह भी तो सच है न, कि हमारा जीवन भले ही आगे बढ़ गया हो, ऐसे हादसों की शिकार स्त्रियों का जीवन तो ठहर ही जाता है । उनसे उनका अपने ही जीवन और अपने ही शरीर पर नियंत्रण का अधिकार छीन लेते हैं कुछ वहशी, और हम भी - एक समाज के रूप में - उससे उसके अधिकार छीन लेने में कोई कोताही नहीं  करते।

बलात्कार सिर्फ स्त्री के प्रति अपराध नहीं है, यह वह हथियार है जिससे पूरे परिवार पर हमला होता है, यह वह डर है जिससे अमानुष मानुषों को डराते हैं, यह वह अंधी कामवासना है जो एक जीती जागती स्त्री को सिर्फ शरीर बना कर रख देती है । जब एक स्त्री के साथ यह होता है, तब सिर्फ वही आहत नहीं होती, पूरा परिवार आहत होता है, उसके भाई, पिता, जो पुरुष हैं, उन पर भी आघात होता है ।

आज के युवा वर्ग ने जाग कर जो पहल की है, उस पहल के कारण आज आशा है कि आधी आबादी अपना मानव अधिकार पा सकेगी । इन युवाओं के अथक आन्दोलन के नतीजे में कमीशन बनी है जिसने सुझाव मंगाए हैं क़ानून के विषय में ।

ई मेल: justice.verma@nic.in
फैक्स: 011- 23092675


मेरी मांग भी उसी समवेत स्वर का एक हिस्सा है -

1. बलात्कार के मुकदमों के लिए - अखिल भारतीय स्तर पर - स्थायी रूप से - फ़ास्ट ट्रेक अदालतों की स्थापना हो । 

इस विषय में गिरिजेश जी ने एक जनहित याचिका बनाई है - और इस याचिका का मैं पूरा समर्थन करती हूँ ।

क्योंकि अदालती पेटीशन अंग्रेजी में होती हैं, इसलिए अपने सुझाव जो मैंने कमीशन को भेजे हैं, वही यहाँ अंग्रेजी में लिख रही (बल्कि पेस्ट कर रही) हूँ । यदि आपको उचित लगें, तो इन्हें समर्थन दें ,न लगें, तो अपने सुझाव दें । किन्तु आज के दिन इस पर कुछ समय अवश्य दें, अपने अपने ब्लॉग पर आज के ही दिन अपने सुझाव अवश्य लगायें । शायद यह समवेत स्वर कुछ कर सके ?

1.  I ask you to bring in a legislation to bring in certain provisions for setting up of "Fast track courts" which should be
1.1 Pan India 
1.2 On a permanent basis, not to be setup only with public pressure in highlighted cases.
1.3 Dedicated to the cause of rapes, and not handling other case (unless they are free of rape cases.)
1.4 If they do take up other cases (when they are free of their own cause), the dates of such other should be adjusted whenever rape cases do come up.

2. Regarding police responsibilities, I ask you to kindly also make provisions to hold the police officers in-charge of the case answerable.
2.1 If it is found that the complainant / victim is being harassed by police officials,
2.2 Or that police officials have been bringing pressure on the complainant / victim and her family to reverse the case or cancel the complaint,
2.3 Or it is found that they troubled her and her family at the time of filing the FIR,
- then the concerned police officials should be prosecuted as accessories after the fact, with suitable punishments for the accessories, not just for corruption and dereliction of duties.

3. I am specifically asking for making provisions for fast investigation and verdict for the case, and NOT asking for any changes in the law of punishment.

4. Regarding bails 
4.1 Primarily, accused person(s) should not get bail. But if they do, then
4.2 If the accused person(s) having taken bail ask for extension of case/ furthering of dates more than a fixed number of times (maybe three times) with excuses of sudden (non pre-existing) illnesses etc,such attempts should be considered as evidence of guilt by absconding, and
4.3 A further case of harassment to the victim which should be added to the existing charge-sheet.

5. If the victim is from economically poor family, the state should bear the cost of the expenditure towards the case.
6. Any lawyers who try to intimidate the victim on the witness stand using sexually explicit questions should be named as accessories after the fact, and made to quit contesting on the behalf of accused persons in all later rape cases thereafter, or disbarred.

7. IF it is found that constitutional bodies like the "panchayat" etc have been involved in sexual harassment of women involving their private parts (as is happening in many places in India) by misusing their power and authority, the concerned members of the same should be immediately sacked from their positions and prosecuted at par with any other sexual offenders.

8. No constitutional body other than courts should have the right to take decisions on real or imagined cases, and punish the women accused with sexually explicit sentences. This is specifically to avoid sexual harassment of women by constitutional bodies by misusing their power and authority.

9. Regarding political responsibilities, I ask you to kindly also make provisions to hold the ruling government of the state / nation answerable.
9.1 If it is proved that at any given time, more than a fixed percentage (maybe 5%) ministers in the cabinet of  any chief minister or prime minister (during one elected tenure of election to election) are found guilty of rape by the honorable court of law, then the respective chief or prime minister should be disbarred from ever contesting elections again, or holding any ministries.
9.2 Any person / persons convicted of rape should be forever banned from contesting elections, even after the completion of the sentence, whatever the length and intensity the sentence decided for the case may be.
9.3 Any duly elected representative of the citizens of India (MLA, MP, Ward member, etc, or otherwise elected person), convicted by the court of law of having brought his political influence, to drop charges of rape or delay rape case proceedings, either on the victim, or her family, or police officers investigating any rape case, should be disbarred from ever contesting elections again.

10. If a rape case is not completed within a fixed maximum period (maybe one year), legal action be taken against all concerned authorities.

11. If a woman after having filed a rape complaint reverts back and cancels it, an inquiry should be initiated automatically to fix the reason why she has done so, (who ever was behind it, the accused or the supposed victim)

12. In the long term, let there be installed CCTV cameras in police stations to monitor how they treat the people approaching them to file FIR's

13. Presidential pardon applications should be inapplicable or persons convicted of rapes, whether penetrative or any other category.

14. Witness protection norms should automatically be made available to the victim and her family

आप सभी का अग्रिम आभार ।

Some LINKS , there are many more, perhaps good ones. I am sharing just a few

1. http://girijeshrao.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html
2. http://alpana-verma.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html
3. http://imjoshig.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
4. http://vanigyan.blogspot.in/2012/12/blog-post_31.html
5. http://blog.ramyantar.com/2013/01/delhi-rape-case.html#.UOJl9G9vBbE
6. http://mosamkaun.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
7. http://shrut-sugya.blogspot.in/2011/06/blog-post.html
8. http://shrut-sugya.blogspot.in/2013/01/blog-post.html
9. http://uwaach.aojha.in/2013/01/there-was-no-one-left-to-speak-for-me.html
9. http://chalaabihari.blogspot.in/2013/01/blog-post.html

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपके विचार और प्रयास दोनों से सहमति है। शुभकामनायें और आभार!

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  2. एक और सुझाव
    फिल्मो में सेंसर बोर्ड की categories और सख्त की जाएँ और सेक्स / वायलेंस की श्रेणी होने पर सिर्फ "adult" आदि श्रेणी की अपेक्षा प्रवेश टिकट सिर्फ कोई "न्यूनतम शिक्ष" होने पर ही राखी जाए । यदि ऐसा न हो तो सेंसर बोर्ड के सदस्यों पर कार्यवाही हो । यह कैसा रहेगा ? क्या इससे कुछ असर होगा ?

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  3. शिल्पा आप के विचारों से सहमत हूँ .
    इन सब के अतिरिक्त यह भी बहुत ज़रुरी है स्त्रियाँ अपने अधिकारों को अधिक से अधिक जाने , समझें और अपने साथ हो रहे अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए हिम्मती बने.
    जन जागृति की आवश्यकता है.
    आभार

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  4. हमने भी गिरिजेश जी के आह्वान पर नए साल पर अपने ब्लॉग पर इन्साफ की गुहार लगाई है.. आपकी बातों से सहमति ज़ाहिर करता हूँ शिल्पा जी!! फिल्मों पर आज काफी विस्तार से चर्चा हुई है, शायद अगली पोस्ट में लिखूं.. लेकिन सेंसर बोर्ड को दोगले सर्टिफिकेट बंद करने चाहिए.. फिल्म या तो 'यू' हो या 'ए' हो.. यू/ए बिलकुल नहीं.. सारा खेल इसी दोगलेपन की आड़ में होता है.. और विकृति जन्म लेती है!! यही नहीं विज्ञापन में नारी उत्पादों की बात तो ठीक है, मगर "ऐक्स" के भद्दे विज्ञापन जहाँ औरतें सिर्फ उसकी सुगंध से पुरुष के कपडे फाडकर उससे लिपट जाती हैं.. जैसे विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध होना चाहिए!!

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    1. sahmat hoon, koi thermocot bechne ke liye ladkiyon ko swaaha karta hai, koi scooter bechte hue ladkiyon ko chidiya kah kar dikhaata hai .... commercialism ke liye ....

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  5. एक सुझाव मेरा भी है कि बलात्कर के या यौन शोषण के मामलों में सोलह साल से अधिक उम्र के लड़कों को व्यसक माना जाए और इन पर वही सजा लागू हो जो अठारह साल से ऊपर वालों के लिए होती हैं।

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  6. एक सुझाव मेरा भी है कि बलात्कर के या यौन शोषण के मामलों में सोलह साल से अधिक उम्र के लड़कों को व्यसक माना जाए और इन पर वही सजा लागू हो जो अठारह साल से ऊपर वालों के लिए होती हैं।

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