स्मृति जी पर जो विवाद हुआ - फेसबुक पर कई चर्चाएँ हुईं । अपने versions यहाँ सहेज रही हूँ -
1. Most will choose to ignore this post. I am not asking you to comment either - just read it through with an open mind and think it over with an open mind. And let us leave smriti, modi, and congress (and their leaders' degrees) out of this.
Of our population of about 100 crores (2001 census) meaning approximately 50 crore women, only about 12 million women are educated to graduate level. ONLY such women (12 millions = 1.2 crore out of about 100 crore people !!! ) can be ministers? Right?
So much for equality provided by the constitution irrespective of sex
So much for the advocates of equality saying that despite her being "eligible" as per the CONSTITUTION, she should not get the post. And SHE here does NOT mean smriti irani - it means 48.8 crore women
And don't say i am saying this because i am a woman - because i happen to be in the favored tinyyyyyyu bracket. Just think it over.
Also think why constitution writers did not give voting rights/ government forming rights only to higher education certified people.
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2.
When will our indian mentality learn to accept beautiful women as successful without throwing lot of mud disguised as concern about this and that?
oh , she topped ?? - ohh the male teacher gave her more practical marks.oh , she got a promotion - ohhh she must have made the boss happy...
because, she can't have achieved anything on her own - because of course she has this and that limitations.... any man with similar qualifications would not be objected to - but how can SMRITI become the minister?
i am really saddened. WHY do we have this mentality?
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3. अभी तक तो फेसबुक मित्र यह भी नहीं जानते कि मानव संसाधन मंत्रालय का सिर्फ एक हिस्सा है शिक्षा । सिर्फ शिक्षा मंत्रालय नहीं है वह । और यह किसी एक मित्र नहीं बल्कि कई कई वाल्स पर पढ़ रही हूँ की "शिक्षा मंत्रालय". सम्पूर्ण मानव संसाधन और "शिक्षा" में फर्क तक न जानने वाले एलिट पढ़े लिखे लोग भारत की 95% जनसंख्या (जो ग्रेजुएट नहीं है) से उनका संवैधानिक अधिकार छीन लेना चाहती है और चाहती है कि सिर्फ 5% एलिट पढ़ी लिखी जनसंख्या 95% पर मंत्री बन कर शासन करती रहे । और स्त्रियों में तो यह प्रतिशत और बुरा है 2% & 98%.
संविधान निर्माताओं ने सोच समझ कर ही मंत्री पद के साथ एजुकेशनल क्वालिफिकेशन लिंक नहीं की थी ।
जो भी इससे सहमत न हों वे संवैधानिक बदलाव की डिमांड लेकर पेटीशन शुरू कर सकते हैं । विपक्ष तो आपके साथ है ही (या होने की एक्टिंग तो कर ही रहा है) तो वह भी क्लियर हो ही जाएगा ।
4.
5.
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6. उच्च पढ़ाई की डिग्री सिर्फ और सिर्फ उस क्षेत्र में काबिलियत की परिभाषा है जिसमे काम करना हो ।
इंजीनियरिंग में डॉक्टरेट होना प्राथमिक स्कुल में पढ़ाने की काबिलियत नहीं देता । इकोनोमिक्स में पीएचडी कर के भी छठवी कक्षा में केमिस्ट्री पढ़ाने की काबिलियत नहीं आती ।
ऐसे ही मिनिस्टर बनने के लिए कोई "डिग्री" क्वालिफिकेशन नहीं होती, बल्कि प्रक्टिकल काम करने की रूचि और अभ्यास चाहिए । ग्रेजुएट होने न होने का किसी भी मिनिस्ट्री से कोई भी सम्बन्ध नहीं । मिनिस्टर या मंत्री बनने की न्यूनतम योग्यता है
अ. भारतीय होना
ब. लोकसभा या राज्य सभा का सदस्य होना (या ६ महीने में हो जाना)
स. तत्कालीन चुने गए प्रधानमन्त्री द्वारा चयनित होना।
बस - इसके अलावा कुछ भी नहीं। अधिकाँश बहुत अच्छे और सक्सेसफुल राजनीतिज्ञ कोई बहुत डिग्रीधारी नहीं हैं । न ही इसका उलट है । दुनिया का सर्वश्रेष्ठ डांसर आवश्यक नहीं कि अच्छा पेंटर भी हो ।
हमारे देश में पढ़े लिखे लोगों को यह गलतफहमी हो गयी है कि कोई भी कार्यक्षेत्र हो, किसी भी क्षेत्र में योग्यता सिर्फ और सिर्फ "अकादमिक" डिग्रियां है । जबकि यह सच नहीं ।
इस दुनिया में सतरंगी प्रतिभाएँ हैं । हर प्रतिभा सिर्फ शैक्षणिक डिग्री की मोहताज नहीं । अधिकाँश डिग्रीधारी अच्छे राजनीतिज्ञ नहीं होते । साथ ही अधिकाँश अच्छे राजनीतिज्ञ आवश्यक नहीं कि डिग्रीधारी हों । आप डाटा चेक कर लीजिये चाहें तो ।
यदि आप गलत अफिदवित पर शिकायत करें/ करना चाहें, तो यह आपका नागरिक अधिकार है , यदि आपने उस उम्मीदवार को उस डिग्री के कारण वोट दिया हो ।
लेकिन सिर्फ इसलिए कि कोई व्यक्ति डिग्रीधारी नहीं तो उसकी काबिलियत और कार्य को पूर्णतः नकार देना और उस के संवैधानिक अधिकार पर हमले करना पूर्वग्रह के अतिरिक्त कुछ नहीं । यदि वे काम नहीं करें तो आपका पूर्ण अधिकार है आलोचना का । लेकिन सिर्फ डिग्रीधारी न होने से उन्हें काम करने देने से पहले ही नाकाबिल निकम्मा घोषित कर देना अनुचित है ।
लिटरेसी , एजुकेशन, और इंटेलिजेंस और काबिलियत सब की अलग अलग परिभाषाएं हैं मानव संसाधन मेनेजमेंट में । पढ़े लिखे डिग्री धारी लोग इतना तक नहीं समझ पा रहे की "hrd" का अर्थ "मानव संसाधन" है "शिक्षा" नहीं । न यह समझ पा रहे हैं कि मंत्री क्लास नहीं पढाता है, बल्कि योजनायें बनाता है । जो शिक्षा इतनी सहज बातें भी न सिखला सकी, उस शिक्षा को आप हर एक क्षेत्र में काबिलियत का कॉमन पैमाना समझ रहे हैं । शिक्षा इतना गुरूर लाती है क्या?
क्या आप लोग बाकी 95% पोपुलेशन को मानव संसाधन नहीं मानते? उनके कोई योगदान ही नहीं हैं? क्या आज़ादी की लड़ाई सिर्फ डिग्रीधारियों ने लड़ी? क्या मानव संसाधन सिर्फ डिग्रीधारी होते हैं? बाकियों का कोई योगदान नहीं होता ?
"शिक्षा" मानव संसाधन का एक बहुत बहुत महत्वपूर्ण भाग अवश्य है - किन्तु "सिर्फ" शिक्षा (या शिक्षित लोग) ही मानव संसाधन नहीं होता । न योजनाएँ सिर्फ शिक्षा या शिक्षितों के लिए बनती हैं ।
7. अधिकाँश लोग यही समझ रहे हैं कि यह सब मैं सिर्फ स्मृति जी से सम्बंधित लिख रही हूँ । हां वह भी एक कंसर्न अवश्य है । मुझे वे पसंद हैं - लेकिन वह मेरी निजी चोइस होगी । लेकिन यह स्टेटस जनरल है ।
हमारे मन में यह बात बहुत गहरी बैठ गयी है कि कोई हमसे कम पढ़ा है तो वह हमसे कमतर है । इस लायक नहीं और उस लायक नहीं । यह सच नहीं है - और यह एक नई जाती व्यवस्था को जन्म दे रहा है । मेरी कंसर्न यह है
very valid concern.
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