पिछला भाग
पहला भाग
मनु और शतरूपा जी ने ब्रह्मा जी के आदेश से संतति बढाने के लिए पांच संतानों को जन्म दिया। ये थे - प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक पुत्र और आकूति , देवहुति , एवं प्रसूति नामक कन्याएं।
आकूति का विवाह रूचि नामक प्रजापति से हुआ , देवहूति का कर्दम ऋषि से और प्रसूति का दक्ष प्रजापति से हुआ। इनसे संतति आगे बढ़ी। पिछले दो भागों में हमने देवहूति जी के बारे में पढ़ा। अब आगे।
आकूति और प्रजापति रूचि के जुड़वाँ संतानें हुईं। पुत्र हुए "यज्ञ" और कन्या हुईं "दक्षिणा"। मनु जी ने विवाह से पहले ही यह वचन लिया था कि प्रथम पुत्र उन्हें गोद दे दिया जाएगा।, क्योंकि वे जानते थे कि पुत्र नारायण का अवतार होंगे। इस वचन के अनुसार मनु ने यज्ञ को अपने पुत्र के रूप में गोद ले लिया। "यज्ञ" विष्णु रूप एवं "दक्षिणा" लक्ष्मी रूपा थीं - आगे इन दोनों का आपस में विवाह हुआ। (मनु के गोद लिए पुत्र होने से यज्ञ दक्षिणा के भाई नहीं, बल्कि आकूति के भाई और दक्षिणा के मामा हुए और , उनका विवाह आपस में हुआ )
यज्ञ और दक्षिणा के बारह पुत्र हुए।
---------------------------
कर्दम जी की सुपुत्री कला जी का विवाह मारीचि जी से हुआ था। उनकी दो संतानें हुईं - कश्यप और पूर्णिमा। पूर्णिमा के तीन पुत्र हुए - विराज, विस्वागा और देवकुल्य। देवकुल्य वह जल हुए जो विष्णु चरणों से प्रकट हो कर देवगंगा बनते हैं। कश्यप की कथा आगे आएगी।
अत्रि मुनि और अनुसूया माता के तीन पुत्र हुए - सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा। ये तीनों पुत्र पिता की तपस्या और वरदान के कारण ब्रह्मा विष्णु और महेश का अंश रूप हैं।
महात्मा विदुर जी ने मैत्रेय जी से प्रश्न किया - ब्रह्मा विष्णु और महेश अनुसूया माता के पुत्र कैसे बने ? तब उन्होंने बताया कि पिता ब्रह्मा की आज्ञा से संतति बढ़ाने के उद्देश्य से , अत्रि और अनुसूया माता निर्विन्ध्या नदी के किनारे तप करने लगे। वहां अनेक अशोक वृक्ष और पलाश खिलते थे, और जल की कलकल गुंजित होती थी। यहीं ये दंपत्ति तप करने लगे और अत्रि जी मन में कामना करते कि इस संसार का जो भी स्वामी है, जो परम है, उसे मैं ज्ञान के कारण नहीं जानता। सो जो भी परम प्रभु हों वे मुझे दर्शन दें, और स्वयं अपने अंश को मुझे पुत्र रूप में प्रदान करें।
उनके तप की ऊर्जा से अग्नि सी निकलने लगी और डिवॉन, गन्धर्वों और विद्याधरों और नागों के संग त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) उनके आश्रम को पधारे। मुनिवर एक पैर पर तप कर रहे थे और उसी स्थिति में वे प्रभु के सामने आये और प्रणाम किया। उन्होंने इनकी अर्चाना की और देखा कि त्रिदेव हंस, गरुड़ और नंदी बैल पर उनके सम्मुख हैं। उनके हाथों में डमरू, कुश, और सुदर्शन चक्र के दर्शन किये। प्रभा और दीप्ति से उनके नेत्र चौंधिया रहे थे, और कुछ क्षण को उन्होंने आँखें बंद कर लीं।
मन में भक्ति रस में डूबे अत्रि जी बोले - हे ब्रह्मा, हे विष्णु , हे महेश्वर , मैंने परमप्रभु को आव्हान किया था क्योंकि मुझे उन जैसा पुत्र चाहिए था। लेकिन आप तीनों प्रकट हुए हैं। मुझे बताइये कि आप तीनों यहां कैसे आये हैं, मुझे अज्ञानवश भ्रम होता है।
त्रिदेवों ने कहा - हे ब्राह्मण, आपका संकल्प श्रेष्ठ है, इसलिए आपकी इच्छा पूर्ण होगी। हम तीन नहीं हैं - हम एक ही हैं। हम ही संसार को रचते, चलाते और संहारते हैं। हम आपके पुत्र रूप में अवश्य आएंगे। और त्रिदेव अन्तर्धान हो गए। तब ऋषि दंपत्ति के यहां सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा ने जन्म लिया।
------------------
श्री अंगिरा जी की पत्नी श्रद्धा जी ने चार सुपुत्रियो और दो सुपुत्रों को जन्म दिया। जिनमे एक थे बृहस्पति।
पुलत्स्य जी और हविर्भू जी के पुत्र हुए अगस्त्य और विश्रवा। विश्रवा जी की दो पत्नियां हुईं - इदविदा ( जिन्होंने यक्षराज कुबेर को जन्म दिया ) और केशिनी (जिन्होंने राक्षसराज रावण कुम्भकर्ण और विभीषण को जन्म दिया। )
--------------------
ऋषि पुलह और गति माता जी के तीन पुत्र हुए - कर्मश्रेष्ठ, वरीयान, सहिष्णु।
क्रतु जी की क्रिया माता जी के साथ साठ हज़ार संत संतानें हुईं - ये महान ऋषि हुए जो वालखिल्य कहाये।
-----------------
पहला भाग
मनु और शतरूपा जी ने ब्रह्मा जी के आदेश से संतति बढाने के लिए पांच संतानों को जन्म दिया। ये थे - प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक पुत्र और आकूति , देवहुति , एवं प्रसूति नामक कन्याएं।
आकूति का विवाह रूचि नामक प्रजापति से हुआ , देवहूति का कर्दम ऋषि से और प्रसूति का दक्ष प्रजापति से हुआ। इनसे संतति आगे बढ़ी। पिछले दो भागों में हमने देवहूति जी के बारे में पढ़ा। अब आगे।
आकूति और प्रजापति रूचि के जुड़वाँ संतानें हुईं। पुत्र हुए "यज्ञ" और कन्या हुईं "दक्षिणा"। मनु जी ने विवाह से पहले ही यह वचन लिया था कि प्रथम पुत्र उन्हें गोद दे दिया जाएगा।, क्योंकि वे जानते थे कि पुत्र नारायण का अवतार होंगे। इस वचन के अनुसार मनु ने यज्ञ को अपने पुत्र के रूप में गोद ले लिया। "यज्ञ" विष्णु रूप एवं "दक्षिणा" लक्ष्मी रूपा थीं - आगे इन दोनों का आपस में विवाह हुआ। (मनु के गोद लिए पुत्र होने से यज्ञ दक्षिणा के भाई नहीं, बल्कि आकूति के भाई और दक्षिणा के मामा हुए और , उनका विवाह आपस में हुआ )
यज्ञ और दक्षिणा के बारह पुत्र हुए।
---------------------------
कर्दम जी की सुपुत्री कला जी का विवाह मारीचि जी से हुआ था। उनकी दो संतानें हुईं - कश्यप और पूर्णिमा। पूर्णिमा के तीन पुत्र हुए - विराज, विस्वागा और देवकुल्य। देवकुल्य वह जल हुए जो विष्णु चरणों से प्रकट हो कर देवगंगा बनते हैं। कश्यप की कथा आगे आएगी।
अत्रि मुनि और अनुसूया माता के तीन पुत्र हुए - सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा। ये तीनों पुत्र पिता की तपस्या और वरदान के कारण ब्रह्मा विष्णु और महेश का अंश रूप हैं।
महात्मा विदुर जी ने मैत्रेय जी से प्रश्न किया - ब्रह्मा विष्णु और महेश अनुसूया माता के पुत्र कैसे बने ? तब उन्होंने बताया कि पिता ब्रह्मा की आज्ञा से संतति बढ़ाने के उद्देश्य से , अत्रि और अनुसूया माता निर्विन्ध्या नदी के किनारे तप करने लगे। वहां अनेक अशोक वृक्ष और पलाश खिलते थे, और जल की कलकल गुंजित होती थी। यहीं ये दंपत्ति तप करने लगे और अत्रि जी मन में कामना करते कि इस संसार का जो भी स्वामी है, जो परम है, उसे मैं ज्ञान के कारण नहीं जानता। सो जो भी परम प्रभु हों वे मुझे दर्शन दें, और स्वयं अपने अंश को मुझे पुत्र रूप में प्रदान करें।
उनके तप की ऊर्जा से अग्नि सी निकलने लगी और डिवॉन, गन्धर्वों और विद्याधरों और नागों के संग त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) उनके आश्रम को पधारे। मुनिवर एक पैर पर तप कर रहे थे और उसी स्थिति में वे प्रभु के सामने आये और प्रणाम किया। उन्होंने इनकी अर्चाना की और देखा कि त्रिदेव हंस, गरुड़ और नंदी बैल पर उनके सम्मुख हैं। उनके हाथों में डमरू, कुश, और सुदर्शन चक्र के दर्शन किये। प्रभा और दीप्ति से उनके नेत्र चौंधिया रहे थे, और कुछ क्षण को उन्होंने आँखें बंद कर लीं।
मन में भक्ति रस में डूबे अत्रि जी बोले - हे ब्रह्मा, हे विष्णु , हे महेश्वर , मैंने परमप्रभु को आव्हान किया था क्योंकि मुझे उन जैसा पुत्र चाहिए था। लेकिन आप तीनों प्रकट हुए हैं। मुझे बताइये कि आप तीनों यहां कैसे आये हैं, मुझे अज्ञानवश भ्रम होता है।
त्रिदेवों ने कहा - हे ब्राह्मण, आपका संकल्प श्रेष्ठ है, इसलिए आपकी इच्छा पूर्ण होगी। हम तीन नहीं हैं - हम एक ही हैं। हम ही संसार को रचते, चलाते और संहारते हैं। हम आपके पुत्र रूप में अवश्य आएंगे। और त्रिदेव अन्तर्धान हो गए। तब ऋषि दंपत्ति के यहां सोम, दत्तात्रेय और दुर्वासा ने जन्म लिया।
------------------
श्री अंगिरा जी की पत्नी श्रद्धा जी ने चार सुपुत्रियो और दो सुपुत्रों को जन्म दिया। जिनमे एक थे बृहस्पति।
पुलत्स्य जी और हविर्भू जी के पुत्र हुए अगस्त्य और विश्रवा। विश्रवा जी की दो पत्नियां हुईं - इदविदा ( जिन्होंने यक्षराज कुबेर को जन्म दिया ) और केशिनी (जिन्होंने राक्षसराज रावण कुम्भकर्ण और विभीषण को जन्म दिया। )
--------------------
ऋषि पुलह और गति माता जी के तीन पुत्र हुए - कर्मश्रेष्ठ, वरीयान, सहिष्णु।
क्रतु जी की क्रिया माता जी के साथ साठ हज़ार संत संतानें हुईं - ये महान ऋषि हुए जो वालखिल्य कहाये।
-----------------
वशिष्ठ जी और ऊर्जा माता (जो अरुंधति भी कहलाती हैं) सप्तऋषि संतानें हुई - जिनमे बड़े थे चित्रकेतु। (चित्रकेतु, सुरोची , विरजा, मित्र , उलबाना , वसुभृद्याना और द्युमान) वशिष्ठ जी की अन्य पत्नियों से और संतानें भी हुईं।
अथर्व जी के पुत्र हुए अश्वशिरा।
-------------------
महाभाग भृगु जी कि ख्याति जी से तीन संतानें हुई - सुपुत्र धाता और विधाता , और सुपुत्री हुई श्री। श्री नारायण की परमभक्त थीं।
मेरु मुनि की दो पुत्रियां हुईं - आयति और नियति जिनका विवाह धाता और विधाता से हुआ। इनके पुत्र हुए - मृकण्ड और प्राण।
मृकण्ड के पुत्र हुए - प्रसिद्द मार्कण्डेय मुनि , और प्राण के वेदशिरा. वेदशिरा के सुपुत्र हुए उषाणा (शुक्राचार्य) जो कवि भी कहलाये। इस तरह कवि भृगु जी के वंशज हैं।
हे धर्मात्मा विदुर, इस तरह कर्दम पुत्रियों के वंशजों से पृथ्वी पर जनसंख्या बढ़ी।
----------------------
दक्ष जी की कमलनयना प्रसूति जी से सोलह कन्यायें हुईं। इनकी कथा अगले भाग में।
जारी ……
रोचक कथाक्रम
जवाब देंहटाएंआप महान कार्य कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंये पौराणिक कथाएं हम सब के लिये पथ प्रदर्शक हैं
इसी प्रकार इन का प्रचार किया करें...
सादर।
आप की ये खूबसूरत रचना...
दिनांक 10/07/2014 की नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है...
आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित हैं...आप के आगमन से हलचल की शोभा बढ़ेगी...
सादर...
कुलदीप ठाकुर...
आभार , अनीता जी, कुलदीप जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कार्य
जवाब देंहटाएं