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शनिवार, 3 मार्च 2012

हे सूर्यदेव, तुम्हे नमन...

पुनः प्रस्तुति



 हे सूर्यदेव - तुम्हे शत शत नमन |

तुम्हारे शुभागम को नमन
 - तुम्हारे विगम को नमन |

उषा की पूर्वी ललाई को ,
    सांझ की गरिमामई ढलन को नमन 






हजारों गेंदों में लुकते छिपते
        तुम्हारे नटखट बचपन को नमन









आसमानों की हथेलियों पर सजते
रत्नित छल्लों की हर इक किरण को नमन




गृह नक्षत्रों की ओट से फूट उठती
     तुम्हारी उर्मियों की तपन को नमन             
          








किसी धनुर्धर के धनु से उछालें लेती
    शक्तियों की त्वरित तरंगन को नमन



कभी धीर गंभीर शांत - तो कभी ....      
   छितरी बदरी से अठखेली करती
लश्कारे भरी नटखट किरण को नमन








रंग की अनदेखी फहराती चुनरी की ---
अन्तरिक्षी चमन में
अनंत उड़न को नमन ......                                                                                                        















गुलाबी पंखडियों पर सोती ओंस की बूंदों से
स्फटिक किरणों की इन्द्रधनुषी बिखरन को नमन




घुप्प अन्धकार की चादर को चीरती
          तुम्हारी विहंगम भोर की उठन को नमन .........            

हे सूर्यदेव, तुम्हे शत शत नमन, नमन, नमन, नमन....