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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

शिव पुराण १२ : काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग shivpurana12 kashi vishwanath jyotirlinga

शिव पुराण १२ : काशी  विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग

काशी विश्वनाथ मंदिर हिन्दू देवस्थानों में सर्वाधिक सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है।  यह गंगा जी के किनारे बनारस में बसा है। मंदिर का बाहरी स्वरुप अनेक बार तोड़ दिया गया और यह पुनर्गठित हुआ।  आखिरी बार औरंगज़ेब ने इस मंदिर को तोड़ कर ज्ञानवापी मस्जिद बनवायी थी।  आज का मंदिर अहल्याबाई होल्कर (इंदौर की मराठा रानी) द्वारा बनवाया गया था।

कहते हैं कि एक बार ब्रह्मा और विष्णु में बहस हो गयी थी कि कौन बड़ा है। तब शिव जी वहां प्रकाश लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और ब्रह्मा जी अपने हंस पर बैठ ऊपरी छोर ढूंढने निकले और विष्णु जी वराह रूप में निचला छोर। विष्णु जी ने स्वीकार किया कि मैं अंतिम छोर न ढूंढ पाया किन्तु ब्रह्मा जी ने झूठ कहा कि मैंने खोज लिया।  तब शिव जी एक और ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए और ब्रह्मा को श्राप दिया कि उनकी पूजा न होगी क्योंकि स्वयं को पूजित बनाने  झूठ बोला था ।

यहीं पास में मणिकर्णिका मंदिर है जो सती माता का  शक्तिपीठ है ।  यह भी एक कथा है कि शिव जी ने यह स्थल अपने त्रिशूल पर उठा रखा है और इसे ब्रह्मा की सृष्टि से पृथक कर दिया था।  जब प्रलय होती है तो शिव जी इसे त्रिशूल पर रखते हैं और नए संसार में दुबारा अपने स्थान पर स्थापित कर  हैं ।

एक और कथा है कि जब शिव जी ब्रह्मा जी पर क्रुद्ध हुए तो  काल भैरव को प्रकट किया जिन्होने  ब्रह्मा जी का एक मुख काट दिया।  यह ब्रह्महत्या हुई और कटा हुआ मुख काल भैरव से जुड़ गया।  उन्होंने बहुत प्रयास किये किन्तु ब्रह्मह्त्या अलग न होती थी।  फिर कल भैरव ने काशी आकर गंगा स्नान किया और पाप मुक्त हुए ।

मंदिर  प्रांगण में ज्ञानवापी नामक कुआं है । कहते हैं आक्रमण के समय पुजारी शिवलिंग को बचाने के लिए उन्हें लेकर कुँए में कूद गए थे।

    

    बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

    शिव पुराण ११ : भीमशंकर ज्योतिर्लिंग

    बहुत समय पहले  सह्याद्रि पर्वतों पर, डाकिनी के वनों में, भीम नामक असुर अपनी माता कर्कटी / कैकटी के संग रहता था।  वह बहुत क्रूर था और सब तरफ उसका भय व्याप्त था। किन्तु उसे अपने विषय में एक प्रश्न हमेशा सताता था - कि उसके पिता का नाम क्या है।  आखिर एक दिन भीम ने अपनी माता से इस विषय में प्रश्न किया। 
    उसकी माता ने बताया कि वह लंकेश्वर के छोटे भाई कुम्भकर्ण का पुत्र है।  विवाह के बाद कुम्भकर्ण ने वचन दिया था कि वे उन्हें लंका ले जाएंगे किन्तु ऐसा होता, इससे पहले ही युद्ध में श्री विष्णु के अवतार राम ने उनका वध कर दिया।  इसीलिए हम यहां वन में रहते हैं। यह सुन कर भीम बहुत क्रोधित हुआ और उसने ब्रह्मा जी की तपस्या की ठानी। 
    नारायण से बदला लेने के लिए भीम ने ब्रह्मा जी को पाने के लिए कड़ी तपस्या की और आखिर वे उसके सामने प्रकट हुए।  भीम ने वरदान लिया कि वह अनंत शक्तिवन्त हो और श्रीहरि भी उसे न मार सकें।  इस वरदान  तो वह और भी क्रूर हो गया और सब तरफ त्राहि त्राहि मचाने लगा।  इंद्र को हराकर स्वर्गाधिपति होने के बाद उसने कामरूपेश्वर शिवभक्त राजा सुदक्षिण को भी बंदी बना लिया।  
    ऋषि मुनियों और साधुओं पर अत्याचार होते देख देवगण ब्रह्मा जी के पास गए।  ब्रह्मा जी उन्हें शिव जी के पास ले कर गए।  उनकी प्रार्थना पर शिव जी ने कहा कि मैं जानता हूँ कि भीम के अत्याचार बहुत बढ़ गए हैं, और मेरे परम भक्त कामरूपेश्वर राजा सुदक्षिण भी उसीकी कैद में हैं।  मैं शीघ्र ही इस असुर का संहार करूंगा।  यह सुन कर देवगण प्रसन्न मन से लौट गए।  
    इधर भीम के बंदी गृह में सुदक्षिण पार्थिव शिवलिंग बना कर उसकी आराधना करने लगे।  जब यह बात आततायी को पता चली तो वह क्रुद्ध होकर वहीँ आ गया। उसने राजा सुदक्षिण से कहा कि वे शिवलिंग की नहीं उस (भीम) की आराधना करें।  कामरूपेश्वर ने मना कर दिये तो क्रोध में उसने अपनी तलवार से शिवलिंग को तोड़ने का प्रयास किया।  किन्तु तलवार शिवलिंग को छू पाती इससे पहले ही उसमे से श्री शंकर महादेव प्रकट हुए।  उनकी हुंकार भर से ही वह असुर वहीँ भस्म हो गया।  
    कहते हैं शिव जी के पसीने से भीमरति नदी बनी। सभी संत देव आदि ने आकर शिव जी की प्रार्थना की और उन्हें वहीँ रहने की आग्रह किया।  तब शिव जी वहां ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करने लगे।  

    Bhimashankar (Maharashtra, India)