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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

मार्च २०११ में आये जापान का भूकंप - न्यूक्लियर मेल्ट डाउन - क्या और कैसे

मार्च २०११ में आये जापानी भूकंप के समय वहां के फुकुशिमा न्यूक्लियर पावर प्लांट में कुछ हिस्सों में धमाके हो रहे थे और यह आशंका थी की कही न्यूक्लियर मेल्ट डाउन न हो जाए , कहीं चर्नोबिल जैसी त्रासदी न देखने में आये । यह होता क्या है ? इस पोस्ट में समझने का प्रयास करते हैं ।
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बिजली बनाने की प्रक्रिया वही होती है जो आमतौर पर बाज़ार में generator में होती है । ऊर्जा दूसरी तरह की ऊर्जा में बदल सकती है परन्तु विनष्ट नहीं हो सकती । जैसे कोयले में भरी रासायनिक ऊर्जा उसके जलने से गर्मी में बदलती है - जिससे पानी उबाला जाता है - इस उबलते पानी की शक्ति से विशाल dynamo घूमते हैं - जिससे बिजली बनती है (thermal power)। या फिर किसी बाँध में ऊँचाई से गिरते पानी से - hydal power । जनरेटर में पेट्रोल जलने से । हवा से चकरी घूमे - तो wind power आदि ।

अब जो आणविकी पावर प्लांट होते हैं - वहां भी विशालकाय केतलियों में पानी उबाला जाता है - लेकिन यह गर्मी कोयले आदि को जला कर नहीं, बल्कि आणविक विखंडन से आती है । किन्ही विशिष्ट परिस्थितियों में कुछ पदार्थ ऊर्जा में बदल सकते हैं । एक ग्राम पदार्थ से ४५,०००,०००,०००,०००,००० जूल ऊर्जा मिल सकती है , आणविक अभिक्रियाओं से !!! 
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परमाणुओं के भीतर न्यूक्लियस में भारी कण प्रोटोंस और न्यूट्रोंस हैं, और बाहर हलके इलेक्ट्रोंस घूम रहे हैं । 

साधारण रासायनिक प्रतिक्रियाओं में न्यूक्लियस बिना किसी बदलाव के वैसा ही बना रहता है - जबकि बाहरी इलेक्ट्रोन एक से दूसरे परमाणु में जुड़ सकते हैं । इससे भिन्न तत्त्व एक दूसरे से जुड़ कर नए संयोजन बनाते हैं (जैसे Na + Cl = NaCl अर्थात सोडियम और क्लोरिन का एक एक परमाणु जुड़ कर नमक का एक अणु बनता है ) 
किन्तु आणविक अभिक्रियाओं में (nuclear reactions में ) न्यूक्लियस का ही या तो विखंडन (fission ) या संयोजन (fusion ) होता है । इससे वह तत्त्व या तो दूसरे तत्त्व में बदलता है , या फिर अपने ही दूसरे आयसोटोप में। जब यह होता है - तो अत्यधिक ऊर्जा बनती है । यही ऊर्जा (गर्मी के रूप में ) बाहर निकलती है - जिसे अलग अलग रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है ।
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Nuclear Power Plant Working in simple language :

सभी चित्र गूगल इमेजेस से साभार : 


१. न्यूक्लियर प्रतिक्रिया :

न्यूक्लियर पावर प्लांट में परमाणु के fission विखंडन ( fusion या संलयन का इस्तेमाल अक्सर नहीं किया जाता ) से प्राप्त ऊर्जा इस्तेमाल की जाती है । अधिकतर प्लांट्स में ईंधन के रूप में युरेनियम २३५ का इस्तेमाल होता है । प्रतिक्रिया से बहुत तेज़ गति पर न्यूट्रोन निकलते हैं - जो इस प्रक्रिया को लगातार आगे बढाते हैं । इसके अलावा गर्मी के रूप में ऊर्जा निकलती है । इस प्रक्रिया की गति को कम ज्यादा करने के लिए लेड या कैडमियम के रोड्स कण्ट्रोल करने के लिए होतेहैं । यह चित्र देखिये :

२. कोर, फ्यूएल रोड व् कण्ट्रोल रोड :

यह प्लांट का कोर (core ) या रिएक्टर वेसेल है जिसमे हरे रोड्स लेड या कैडमियम जैसे पदार्थों के कण्ट्रोल रोड (control rod ) हैं जो न्यूट्रोन को सोख कर आणविक प्रतिक्रिया को धीमा करते है । कोर वेसेल मेटल की है, और यह पूरा अरेंजमेंट concrete tower के भीतर है (ऊपर चित्र देखिये)। लाल रोड युरेनियम के (ईंधन या fuel rod ) हैं जो विखंडित हो रहा है और ऊर्जा और न्युत्रोंस को जन्म दे रहा है । प्रक्रिया की गति बढानी हो तो ईंधन के रोड अधिक और कण्ट्रोल रोड कम पेवस्त किये जाते हैं, और घटानी हो तो इसका उल्टा । आकस्मित स्थिति (emergency ) में कण्ट्रोल रोड पूरी तरह भीतर गिर जाते हैं, जिससे प्रतिक्रिया पूरी तरह रोकी जा सके । इससे एक fuel rod से दुसरे तक न्यूट्रोन का प्रवाह रुक जाता है - जिससे जो भी विखंडन हो रहा हो, वह हर एक रोड के भीतर ही सीमित हो जाता है - एक से दूसरे fuel rod तक न्यूट्रोन नहीं पहुँच पाते और क्रिटिकल मास से कम होने से एक रोड इस प्रक्रिया को बनाये नहीं रख पाता  ।

३. पानी :

यह सब कुछ पूरी तरह से पानी में डूबा हुआ है (हेवी वाटर) । यहाँ पानी के दो मुख्य काम हैं । एक तो यह न्युत्रोनों की अत्यधिक गति को कुछ धीमा करता है । यदि ऐसा न किया जाए - तो न्यूट्रोन जितनी तेज गति से चले हैं - वे अगले रोड के युरेनियम एटम के न्यूक्लियस से सीधे ही निकल जायेंगे , उसमे फ़िजन की शुरुआत किये बिना ही । इससे प्रतिक्रिया एक तो आगे नहीं बढ़ेगी, दूसरे ये रेडियो एक्टिविटी को बाहरी पर्यावरण तक पहुंचा देगा । 
   
पानी का दूसरा काम यह है कि यह प्रतिक्रिया से निकलती हुई गर्मी को सोखता है । और इसे ट्रान्सफर करता है । यह गर्मी आगे भाप बनाने में काम आती है । ध्यान दीजिये यह कोर का पानी बाहर नहीं निकल रहा है । यही पानी गर्मी को काम में लेने के बाद फिर से ठंडा कर के भीतर पहुंचाया जाता है । यानी यह इसी बंद घेरे में recirculate होता रहता है - बाहर नहीं जाता ।

इन तेज़ गति के न्युत्रोंस को सोख लेने से पानी के हाइड्रोजन परमाणु अपने भारी आयसोटोप ड्युटेरियम और ट्रीटियम (लिंक देखिये ) में परिवर्तित हो जाते हैं - जिससे पानी हेवी और सुपर हेवी पानी में परिवर्तित हो जाता है । यह भी रेडिओ एक्टिव है क्योंकि ये दोनों ही आयसोटोप स्टेबल नहीं हैं । इस पानी का डिस्पोसल बड़ी सावधानी से करना होता है।

ऊपर चित्र में देखिये । हलके नीले रंग के पाइप में जो पानी बह रहा है , वह कोर में से हो कर गुज़र रहा है। कोर में यह गर्म हो जाता है । फिर हीट एक्सचेंजर में यह गर्मी गाढे नीले पाइप में घूमते ठन्डे पानी को दे दी जाती है । यह पानी कूलिंग टावर में फिर ठंडा कर के रेसर्कुलेट होता है ।

दो तरह के रिएक्टर होते हैं - प्रेशराइज़्ड वाटर रिएक्टर, और बोइलिंग वाटर रिएक्टर ।

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अब आते हैं न्यूक्लियर मेल्ट डाउन के होने की प्रक्रिया पर ।

१.
इमरजेंसी की स्थिति में कण्ट्रोल रोड्स पूरी तरह अन्दर गिर जाते हैं, और न्यूट्रोन एक से दूसरे ईंधन रोड तक नहीं पहुँच पाते । इससे आणविक विखंडन की प्रक्रिया तकरीबन बंद सी हो जाती है । हर एक रोड क्रिटिकल मास (critical mass ) से कम है - तो विखंडन बंद सा हो जाता है । तो आणविक विस्फोट का भय बिलकुल नहीं रहता । जापान में भी यही हुआ था ।

२.
किन्तु, भीतर जो युरेनियम रोड्स हैं - वे अपने आप में अत्यधिक गर्म हैं । इन्हें लगातार सर्कुलेट होते पानी से ठंडा रखना आवश्यक है । इसके लिए पानी के पम्प लगातार काम करते रहने चाहिए । 

३.
यदि पानी सर्कुलेट न हो, या पम्प काम न करें, तो कोर के भीतर का हेवी वाटर उबलने लगेगा और पानी कम होता जाएगा, स्टीम प्रेशर बढ़ता जाएगा । इस पानी की भाप से टावर में विस्फोट हो सकता है (आणविक नहीं - भाप के प्रेशर का विस्फोट ) । इसलिए ये पम्प न सिर्फ बिजली के में सप्लाई से जुड़े होते हैं, बल्कि इनका अपना एक जनरेटर भी होता है । यदि मुख्य बिजली बंद हो भी जाए - तो भी इस जनरेटर की बिजली से यह पानी के पम्प काम करते हैं और कोर में पानी का बहाव होता रहता है । 

४. 
इस तरह पानी कम होने से युरेनियम रोड हवा से एक्सपोज़ होंगी, और ठंडी नहीं हो पाएंगी । अब अपनी ही गर्मी से यह पिघलने लगेंगी । गर्मी अत्यधिक बढ़ जाए तो ये पिघल कर कोर वेसेल को भी पिघला सकती है, और पिघली हुई धातु एक दूसरे के साथ बह आने से फिर से क्रिटिकल मास तक पहुँच कर फिर से विखंडन शुरू हो सकता है । 

{ fukushima japan (फुकुशीमा जापान ) में एक तो भूकंप और दूसरे सुनामी के चलते यही हुआ कि दोनों ही supply बंद हो गयीं और pump ने काम करना बंद कर दिया था । वहां के कई वर्कर्स ने अपनी जान की परवाह न करते हुए (रेडिओ एक्टिव एक्सपोज़र ) वहां से बाहर आने से इंकार कर दिया था और भीतर ही रह कर अपनी क़ुरबानी दे कर प्रयास किये कि डिजास्टर को टाला जाए । बाद में समुद्र में जहाजो से समुद्र का पानी pump कर के कोर को ठंडा किया गया । }

५. 
यदि इस गर्मी से वेसेल भी पिघल जाए - तो भीतर का रेडिओ एक्टिव पिघला पदार्थ बाहरी पर्यावरण तक पहुँच जाएगा और पर्यावरण में रेडिओ एक्टिव प्रदूषण बुरी तरह से फ़ैल जाएगा । इसे ही nuclear meltdown कहते हैं ।  चर्नोबिल में हुए एक्सीडेंट के बाद आज तक वहां मनुष्य तो मनुष्य, पशु और पौधे भी जेनेटिक तकलीफों के साथ जन्म ले रहे हैं ।






शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

Bayes Theorem and its actual effect on our lives

मित्रों 

आज बेज़ थियरम पर बात करुँगी। बहुत ही महत्वपूर्ण बात है - गणित के शब्द से परेशान हों - पूरा पढ़े, गुनें, और समझें। हम सभी ने बचपन में प्रोबेबिलिटी थियरी पढ़ी है - जिसमे एक विषय था - बेज़ थियरम। हम सब ने पढ़ा भी, उस पर प्रश्न भी हल किये , उस पर पूर्ण अंक भी पाए, लेकिन क्या हम इसे समझते हैं ? इसका हमारे जीवन के संदर्भ में कोई अर्थ है या नहीं?

बहुत गहरा अर्थ है। मान लीजिये आपकी जानकारी में किसी मित्र को कैंसर डिटेक्ट हुआ, उसका इलाज हुआ और वह ठीक हो पाया , मर गया।  लेकिन यह संभावना अधिक है कि उसे कैंसर था ही नहीं, केमोथेरपी से तड़पता रहा बेचारा अनावश्यक, क्योंकि उसे कभी यह बीमारी नहीं थी, उसे उस निदान / डायग्नोसिस के दुःख ने आधा मार दिया, केमोथेरपी ने आधा।  और उसे सच में कैंसर था इसकी संभावना % से भी कम है।  समझ रहे हैं आप इसके अर्थ ? और हां - अर्थ यह नहीं है कि डॉक्टर ने पैसा बनाया - इसमें डॉक्टर की कोई गलती नहीं है।  

बेज़ थियरम गणितज्ञों के लिए जो है वह नीचे नीले अक्षरों में लिखा है - चाहें तो पढ़ें, चाहें तो स्किप कर के आगे बढ़ जाएं। 
{
P(A|B)= P(AB)/P(B);
P(B|A)=P(BA)/P(A)
P(BA) = P(AB) = P(A|B)*P(B) = P(B|A)*P(A)
P(A|B)=P(B|A)*P(A)/P(B)
}

ये जो ऊपर नीले अक्षर हैं, इनका कोई अर्थ नहीं।  ये कोरे अक्षर हैं।  अर्थहीन - लेकिन परीक्षा में बच्चा इन अक्षरों में संख्याएं भर कर उत्तर निकाल सकता है और पूरे अंक पा सकता है।  बच्चा पूरे अंक लेगा, लेकिन अर्थ नहीं जानेगा।  शिक्षक भी तो , पूरे अंक दे देगा लेकिन वह भी अर्थ नहीं जान पाएगा।  इसका अर्थ सीधे इस ऊपर के कैंसर वाले उदाहरण से समझाती हूँ - समझिए कितना असर है इसका!!! जीवन और मौत का प्रश्न है यह उत्तर।  या कहूँ कि जीवन और मृत्यु का उत्तर है यह प्रश्न !!!

मानिये % लोगों को सच मच कैंसर होता है पूरी जनसंख्या के अनुपात में।  ( % भी मैंने अधिक ही लिया - बहुत कम को होता है - और कम लेने से और भी कम आएगी संभावना ,  कि जो बेचारा मरीज केमो से मर गया उसे कैंसर था ही नहीं कभी) 

तो फिर से लेते हैं प्रश्न ध्यान से पढ़िए, इस पर सोचिये, बिना नीचे पढ़े अपने उत्तर का अनुमान लगाइए, एक तरफ लिख कर रख लीजिए।  फिर आगे पढियेगा। 

मानिये कि % जनसंख्या को कैंसर होता है।  मानिये कि एक टेस्ट है जो बहुत सही उत्तर देता है, इतना कि 

( ) यदि मरीज को कैंसर है तो टेस्ट का सफलता रेश्यो ९५% है 
() यदि मरीज को कैंसर नहीं हिअ तो यह रेश्यो ९०% है 

अब आपके किसी परिचित को इस टेस्ट द्वारा बताया गया कि उसे कैंसर है।  आपको क्या लगता है - कितनी संभावना है कि यह सही है? उसे केमो कराना चाहिए और नहीं कराया तो वह कैंसर से मर जाएगा ?

उत्तर सोच लिया ? लिख कर रख लिया ? अब आगे बढ़ूँ? मेरा उत्तर है कि  सिर्फ % सम्भावना है कि वह सच ही पीड़ित था और ९२% कि  गलत निदान था - उस बेचारे को कैंसर था ही नहीं , वह तो केमो से मारा गया। 

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चलिए सवाल को हल करें - बेज़ थियरम से।  ( फिर से नीले अक्षरों में एक ऐतिहासिक तथ्य - बेचारे बेज़ ने जब यह फ़ॉर्मूला निकाला , तो उन्हें लगा इसका कोई अधिक महत्व नहीं है, उन्होंने इसे पब्लिश करने भेजा तक नहीं, किनारे रख दिया. उनकी मृत्यु के बाद परिवार ने उनके एक और गणितज्ञ मित्र को उनके कागजात देख कर चेक करने को कहा कि कुछ महत्वपूर्ण हो यहां , तब उस मित्र ने इसे पाया, इसका महत्व समझा और इसे पब्लिश कराया आपमें दिवंगत मित्र के नाम से)

अब फिर से गणना करते हैं - कितनी संभावना है कि उस व्यक्ति को सच ही कैंसर है?

दिया गया है कि 
. % जनसंख्या को ही कैंसर होता है, बाक़ी ९९% को नहीं  
. यदि मरीज को कैंसर है तो टेस्ट ९५% सही रिजल्ट देगा 
. यदि नहीं है तो टेस्ट ९०% सही रिज़ल्ट देगा  

अब आगे - 

मानिये कुल १०००० व्यक्ति यह टेस्ट कराते हैं।  तो इनमे % = १०० ही पीड़ित होंगे बाक़ी ९९% = ९९०० स्वस्थ थे। 

समूह ) 
वह १०० लोग जिन्हे कैंसर सच में था - ९५% टेस्ट रिज़ल्ट सही है अर्थात - ९५ को बताया जाएगा कि उन्हें कैंसर है और इलाज होगा, को बताया जाएगा कि वे स्वस्थ हैं और इलाज नहीं होगा।  (वे भी बेचारे इलाज के अभाव में मारे जाएंगे)

समूह )
वह ९९०० व्यक्ति जिन्हे कैंसर नहीं था - ९०% का सही डायग्नोसिस होगा कि तुम स्वस्थ हो - ९०% of  ९९०० = ८९१० को सही उत्तर मिलेगा - तुम स्वस्थ हो, तुम्हे इलाज नही चाहिए, वे घर चले जाएंगे।  लेकिन १०% = ९९० को कहा जाएगा (टेस्ट के अनुसार) कि एक दुखद समाचार है - तुम्हे कैंसर है - इलाज कराना होगा।  बेचारे सब स्वस्थ थे - सारे के सारे ९९० स्वस्थ थे लेकिन एक तो यह सदमा और ऊपर से यह केमोथेरपी उनके हिस्से आई।  

कुल कितने लोगो को कैंसर बताया गया ? समूह एक के ९५ और समूह दो के ९९०।  कुल १०८५ को।  इनमे कितनो को था यह रोग? सिर्फ और सिर्फ ९५ को।  अर्थात जब डायग्नोसिस हुआ है तब संभावना कि वह सच में  बीमार है - इसकी संभावना सिर्फ और सिर्फ ९५/१०८५ = . % है कि व्यक्ति को सच ही यह बीमारी है।  सोचिये इस पर। 

सोचिए कि जिसे स्कूल में सिर्फ एक गणित का सवाल समझ आगे बढ़ गए (वह भी पूरे अंक लेकर) उसका कितना महत्व था जीवन में? क्या हम समझ पाए उसे?

चलिए चलती हूँ - फिर कभी किसी और विषय पर बात होगी