फ़ॉलोअर

मंगलवार, 21 जून 2016

basic electronics part 2


Extrinsic Semiconductors Basic Electronics 2  मूलभूत इलेक्ट्रॉनिकी  भाग २
भाग १ 

मेरा आग्रह है कि इस श्रृंखला की कोई पोस्ट सीधे न पढ़ी जाए।  पहले भाग से शुरुआत समझने के लिए आवश्यक है ( -  हाँ यदि आप पहले से ही इस विषय को जानते हैं तो बात और है )

पिछले भाग में हमने परमाणु की संरचना , ( ग्रुप ४) के पदार्थों में पाये जाने वाले कोवलेंट बांड्स ,और शुद्ध अर्ध संवाहकों (इंट्रिंजिक सेमीकंडक्टर्स) पर चर्चा की।  अब देखें कि शुद्ध सिलिकॉन में यदि दुसरे समूह की अशुद्धि मिलाई जाए तो क्या होगा ?

शुद्ध सिलिकॉन (समूह ४ - बाहरी कक्षा में ४ इलेक्ट्रान)) की संरचना पहले दो चित्रों में है।  शून्य डिग्री केल्विन तापमान पर पहले चित्र की तरह कक्षाओं में घूमते हुए सभी इलेक्ट्रान बांड्स में हैं जैसा पहले चित्र में दिख रहा है।लेकिन तापमान बढ़ने पवार ये उछल कूद करने लगते हैं।  जैसे हम धूप में आंगन में खड़े रहें तो उछलने लगते हैं :)

कमरे के साधारण  तापमान (करीब ३०० डिग्री केल्विन) पर कुछ इलेक्ट्रान पूरी तरह बाहर कूद आते हैं और पीछे छिद्र  का प्राकट्य होता है। इन छिद्रों को holes कहते हैं। यहाँ सिलिकॉन है लेकिन जर्मेनियम की रचना भी ऐसी ही समझी जाए।  मैं दोनों की चर्चा कर रही हूँ - इलेक्ट्रॉनिकी के लिए इस तरह का मोटा मोटी अंदाज़ा काफी है।


चित्र १ - ० डिग्री केल्विन (यह absolute zero temperature  कहलाता है - पानी जमने के तापमान से २७३ डिग्री सेल्सिस कम )                                                                     
चित्र २ - साधारण तापमान (तकरीबन ३०० डिग्री केल्विन या २३ डिग्री सेल्सियस - कमरे का साधारण तापमान)

और तीसरे चित्र में इस शुद्ध चौथे समूह के पदार्थ में (जर्मेनियम है यहां)  में पांचवे समूह (ग्रुप ५ अर्थात बाहरी कक्षा में ५ इलेक्ट्रान) की थोड़ी सी अशुद्धि मिलाई गई है।  अब ग्रुप ५ के हर एक परमाणु पर ५ इलेक्ट्रान होने से ४ तो बांड में हिस्सा ले सकते हैं लेकिन आखरी का एक बांड से बाहर है। यह इसलिए कि  कोवलेंट बांड सम्पूर्ण होकर भी एक इलेक्ट्रान बाकी है जो बाहर जाने को उद्धत है क्योंकि बाकी चार तो बांड को सम्पूर्णता दे ही चुके हैं। ( पिछले पोस्ट में हमने देखा था कि बाहरी कक्षा में ८ की संख्या चाहिए)






तब यह संरचना देखिये -


  यहां पिछली बार से उलटी स्थिति है।  एक इलेक्ट्रान कम है इसलिए एक बांड में ८ की जगह ७ ही इलेक्ट्रान हैं। इस कमी को hole कहिये।  जब विद्युत क्षेत्र होगा तो यह होल -VE टर्मिनल की तरफ बढ़ना चाहेगा।  कैसे जाए ? यह उस तरफ के बांड में से एक इलेक्ट्रान को अपनी जगह भरने के लिए खींचने लगेगा ।  जैसे ही वह इलेक्ट्रान यहां आया, उसके जगह वहां छिद्र बना।  तो होल अपनी जगह से खिसक गया न ?

इस बार दौड़ने को तैयार धावक  +  आवेशित है - अर्थात पॉजिटिव या positive  - इसलिए यह संरचना P -type  सेमीकंडक्टर कहलाती है।


एसके आगे अगली पोस्ट में  .....
-------------------------------

बुधवार, 1 जून 2016

basic electronics1 मूलभूत इलेकट्रोनिकि भाग १

 मैं एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर हूँ। हमेशा से महसूस करती आई हूँ कि काश हिंदी में पुस्तकें यह जानकारी देती होतीं , तो कितने ही और बच्चे लाभ ले पाते।  सो अपनी एक छोटी सी शुरुआत कर रही हूँ।  मुझे लगता है कि  पहली २-३ पोस्ट्स में जो है वह सब पाठक भौतिकी या रासायनिकी विषयों में पहले पढ़ ही चुके होंगे।  किन्तु आगे बढ़ने से पहले नींव आवश्यक है इसलिए शुरुआत यहीं से कर रही हूँ।

इलेक्ट्रॉनिकी का आरम्भ होता है भौतिक और रसायन क्षेत्र में। आरम्भ करते हैं परमाणु (ATOM ) से।  हम जानते हैं कि परमाणु के मोटा मोटी दो मुख्य भाग हैं।  एक है + आवेशित (POSITIVELY CHARGED ) भारी भीतरी भाग (जिसमे भारी + प्रोटॉन और भारी अनावेशित न्यूट्रॉन (protons and neutrons )हैं) जिसे (NUCLEUS ) न्यूक्लियस (नाभिक) कहते हैं और दूसरा इसके विपरीत - आवेशित (NEGATIVELY CHARGED) हलके इलेक्ट्रॉन्स (ELECTRONS ) जो भीतरी  न्यूक्लियस के चक्कर काटते रहते हैं।  ये ईलेकट्रोंस ही इलेकट्रोनिकि विधा का मूल हैं। परमाणु के भीतर और भी बहुत कुछ है लेकिन इलेकट्रोनिक्स पढ़ते समय उस की गहराई में जाने की आवश्यकता नहीं। यह दोनों चित्र देखिये :
  













परमाणु को सौर्य  मंडल की तरह सोचिये। जैसे हमारी पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य  घूम रहे हैं इसी तरह समझिए कि ईलेकट्रोंस न्यूक्लियस के आस पास घूम रहे हैं।  भीतरी इलेक्ट्रान न्यूक्लियस से बहुत मजबूती से जुड़े हैं जबकि बाहरी वालों पर आकर्षण कम है। जैसे सौर्य मंडल में "प्लूटो" गृह इतना दूर (बाहरी कक्षा में) होने के कारण सूर्य की आकर्षण शक्ति पुंज के बाहर भी माना जा सकता है (जबकि यह पूरी तरह सूर्य से स्वतंत्र नहीं) कुछ ऐसे ही सोचिये कि बाहरी इलेक्ट्रान भी स्वतंत्र हो कर बाहर भाग जाना चाहते हैं।  बस कोई और उन्हें बाहर खींचने के लिए शक्ति लगाए और वे भाग जाएंगे। किसी भी पदार्थ का एक परमाणु क्रमांक (ATOMIC NUMBER) होता है - और उसके हर परमाणु में उतने (बराबर बराबर) प्रोटोन और इलेक्ट्रान होते हैं।  दोनों बराबर और विपरीत आवेशित हैं इसलिए पूरा परमाणु विदुतिकीय रूप से तटस्थ है।

जब ये ईलेकट्रोंन  बाहर निकल जाएंगे तो वे बाहरी विद्युत बलों से प्रभावित होने लगेंगे और जिस तरफ + आवेश उन्हें खींचे वे उसी दिशा में बहे चले जाएंगे।  बिजली (current ) का प्रवाह हमेशा इलेक्ट्रॉन्स के  विपरीत दिशा में माना जाता है।  यदि बाहरी इलेक्ट्रान निकल गया तो पीछे जो भाग बचेगा वह भारी + आवेशित आयन होगा।  इसमें इलेक्ट्रान पहले से ज्यादा कस कर नाभिक से जुड़े होंगे।  बाहरी कक्षा में आठ (या शून्य) इलेक्ट्रान होने से परमाणु आसानी से इलेक्ट्रान लेता या देता नहीं है।  यदि बाहरी कक्षा में १ या २ या ३ इलेक्ट्रान हैं तो वे बाहर जाने की प्रवृत्ति दिखाते हैं।  यदि ५ , ६ या ७ हैं तो दुसरे से लेकर ८ बन जाने के प्रयास करते हैं। इन्हीं कारणों से परमाणु एक दुसरे के साथ बॉन्डिंग बोडिङ्ग करते हैं।

बिजली के परिपेक्ष्य में हम सोचें तो मुखयतः तीन तरह के पदार्थ हैं - कंडक्टर (संवाहक conductor )जो बिजली को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं (जैसे धातुएं - अल्युमिनियम कॉपर आदि) क्योंकि इनके बाहरी कक्षा के इलेक्ट्रान १ या २ हैं जो आसानी से बाहर खींचे जा सकते हैं। दुसरे पदार्थ हैं इंसुलेटर (विसंवाहक insulator )जो बिजली को प्रवाहित नहीं होने देते (जब तक ब्रेकडाउन हो जाए अधिक विद्युतिकिय बल द्वारा) . तीसरे हैं सेमि कंडक्टर (अर्ध संवाहक semiconductor ) जो साधारण परिस्थिति में तो इंसुलेटर हैं लेकिन विशेष स्थतियों में बिलकुल कंडक्टर की तरह बर्ताव करते हैं।

ये सेमीकंडक्टर आवर्त सारणी के चौथे ग्रुप में हैं - कार्बन सिलिकॉन जर्मेनियम इनमे मुख्य हैं।   इन्हे न तो बाहर खींचना आसान है न ही दुसरे परमाणु से ४ ले लेना ही। सो ये परमाणु अपने आस पास के परमाणुओं के साथ इलेक्ट्रान शेयर करते हैं जिससे सभी को ८ मिलें।  यह चित्र देखिये।

इस चित्र में हर सी परमाणु के अपने बाहरी ४ इलेक्ट्रान पडोसी ४ अणुओं के इलेक्ट्रॉन्स शेयर कर रहा है  के आस पास ८ परिक्रमा करें।  सारे इलेक्ट्रान चार नाभिकों के आस पास घूम रहे हैं और मजबूती से बंधे हैं - इसे कोवेलेंट बॉन्ड  (COVALENT BOND ) कहते हैं।  इसलिए इन्हे कक्षा से बाहर खींचना बहुत कठिन है।  साधारण परिस्थितियों में (० केल्विन तापमान पर ) इनमे से कोई भी बाहर नहीं निकल पाता और पदार्थ परफेक्ट इंसुलेटर की तरह बर्ताव करता है।  

जैसे जैसे तापमान बढ़ कर वातावरण के साधारण तापमान (३०० केल्विन) तक आता है कुछ बंधन टूटते हैं और कुछ इलेक्ट्रान कक्षा से बाहर कूद जाते हैं।  अब ये ( - आवेशित ) इलेक्ट्रान नाभिक से मुक्त हैं और विद्युत प्रवाह में शामिल हो सकते हैं। इसके विपरीत इन्होने कक्षा में जो स्थान रिक्त किया है , वहां अब भीतर + ८ आवेश है जबकि बचे हुए -आवेशित इलेक्ट्रान की संख्या सिर्फ ७ हैं। इस असंतुलन के कारण बांड में जो कमी आई है उसे  (HOLE ) होल कहते हैं और यह होल भी विद्युत प्रवाह में शामिल होता है , + आवेश के साथ।  यह दुसरे बांड के इलेक्ट्रॉन्स को अपनी तरफ खींचता है और जैसे ही एक छिद्र भरता है वैसे ही ठीक वैसा दूसरा छिद्र पडोसी बांड में बन जाता है।  जहां इलेक्ट्रान - होने से विद्युत क्षेत्र के + की तरफ खिंचाव महसूस करते हैं उसी तरह होल  + होने से उनकी विपरीत दिशा में चलते हैं। 

ऊपर का जो चित्र है यह एक विशुद्ध इंट्रिंजिक सेमीकंडक्टर (INTRINSIC SEMICONDUCTOR) है - इसमें सिर्फ और सिर्फ सिलिकॉन के परमाणु हैं।  इसी तरह जर्मेनियम का भी विशुद्ध सेमीकंडक्टर होगा। 

अब सोचिये इस सिलिकॉन में ५वे ग्रुप के कुछ परमाणुओं की मिलावट की जाए तो ? उनमे हर एक के पास ४+१ = ५ इलेक्ट्रान हैं - कवलेंट बांड की क्षमता से एक इलेक्ट्रान अधिक ।  ठीक इसी तरह ग्रुप  ३ में हर एक परमाणु के पास ४-१ = ३ इलेक्ट्रान है।  यह है एक्सट्रिन्सिक सेमीकंडक्टर।  इस पर अगली पोस्ट में बात करूंगी।