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सोमवार, 22 अक्तूबर 2012

देवी कथाएँ 6 महिषासुर, शुम्भ निशुम्भ वध

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महिषासुर वध 

रम्भासुर नामक दैत्य का महिषासुर नामक पुत्र था, जिसने अथक तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया, और उनसे वरदान लिए कि वह सिर्फ एक स्त्री के ही हाथों से मारा जा सकेगा । वरदान प्राप्त करने के बाद वह सभी देवताओं को परास्त कर इन्द्रासन पर चढ़ बैठा । देवता ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित शिव जी के पास आये । सब सुन कर शिव जी क्रोधित हुए  । शिव के क्रोधित मुखमंडल से एक तेज निकला, और तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी सहित सब देवताओं से तेज उत्पन्न हुआ, जिसने स्त्री वेश धारण किया , जो दुर्गा देवी थीं ।  देवताओं ने अति हर्षित हो कर उन महाकाली को आयुध एवं आभूषण आदि प्रदान किये । शिव जी ने उन्हें अपना त्रिशूल दिया, विष्णु जी ने चक्र तो इंद्र ने वज्र ।

आयुध व् आभूषणों से सुसज्जित चंडिका ने परम अट्टहास किया जिसकी गर्जना सुन महिषासुर अपनी सेना ले युद्ध करने पहुंचा । राक्षसों ने वाण चलाने आरम्भ किये तो माँ ने सांस छोड़ी जिससे असंख्य सैनिक प्रकट हो राक्षसों से युद्ध करने लगे । माँ का वाहन सिंह गरज गरज कर सब और असुरों को मारने लगा । देवी ने असंख्य सैनिक संहार दिए और महिषासुर के दैत्य सेनापति भी मारे गए । तब महिषासुर भैंसे और फिर सिंह के रूप में परिवर्तित हुआ । देवी ने उसका गला काट दिया, तो असुर फिर अपने रूप में आकर दौड़ा । फिर वह हाथी में बदला, जिसकी माँ ने सूंड काट दी । आखिर फिर से भैसा बन कर जब महिषासुर हमला करने आया तो माँ उस के ऊपर चढ़ गयीं और इस बार गर्दन काटने पर जब वह भैसे के मुंह से निकलने लगा तो देवी ने उसकी ग्रीवा में त्रिशूल मार कर उसे संहारा ।

बची हुई असुर सेना भाग गयी और देवताओं गन्धर्वों ने देवी की विनयपूर्वक महादुर्गा जी की स्तुति की ।
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चंड , मुंड, धूम्राक्ष , रक्तबीज , शुम्भ - निशुम्भ वध 

एक बार शुम्भ निशुम्भ नामक पराक्रमी दैत्यों से त्रिलोक कम्पायमान था । दुखी देवता जगज्जननी के पास पहुंचे, और उनकी स्तुति की । भवानी महेश्वरी ने उनसे आगमन का कारन पूछा , तब उन्होंने अपनी व्यथा कही । तब गौरी के शरीर से एक कुमारी प्रकट हुई जो शरीर कोष से निकली होने से कौशिकी भी कहलाई , और माता के शरीर से प्रकट होने से मातंगी भी कहलाई । देवताओं को आश्वस्त कर उग्रतारा देवी सिंह पर स्वर हो कर हिमालय के शिखर पर स्थित हुईं ।

शुम्भ निशुम्भ के दो सेवकों - चंड और मुंड ने उस सुन्दर देवी अम्बिका को देखा तो अपने स्वामियों को जाकर कहा की हे महाराज, हिमालय पर अद्वितीय सुन्दर कन्या सिंहारूढ़ है - और वह आप के योग्य है ।

मदांध असुरों ने सुग्रीव नामक दैत्य को उसे लिवा लाने भेजा, तो देवी ने कहा की हे दूत, मैं प्रतिज्ञाबद्ध हूँ की मैं सिर्फ उससे ही विवाह करूंगी जो मुझे युद्ध में परास्त कर सके । जब दूत ने यह बात अपने स्वामियों को बताई तो क्रोधित हो उन्होंने धूम्राक्ष से युवती को बाँध कर घसीट लेन की आज्ञा दी । किन्तु वहां आने पर महोग्रतारा ने सिर्फ "हम्म" स्वर भर से उसे राख कर दिया ।सैनिक भागने लगे । चंड , मुंड फिर आये तो माँ ने भृकुटी टेढ़ी की, जिसमे से महाकालिका प्रकट हुईं । चंड और मुंड का वध करने से महाकालिका चामुंडी कहलाईं । यह हो जाने के उपरांत शुम्भ निशुम्भ स्वयं युद्ध भूमि में आये  ।

तब श्री ब्रह्मा जी के शरीर से ब्राह्मी, विष्णु से वैष्णवी , महेश से महेश्वरी, और अम्बिका से चंडिका प्रकट हुईं। पल भर में सारा आकाश असंख्य देवियों से आच्छादित हो उठा । ब्राह्मणी ने अपने कमंडल से जल छिड़का जिस से राक्षस तेजहीन होने लगे, वैष्णवी अपने चक्र , महेश्वरी अपने त्रिशूल से, इन्द्रानी वज्र से और सभी देवियाँ अपने अपने आयुधों से  आक्रमण कर रही थीं । राक्षस सेना भागने लगी ।

तब रक्तबीज ने राक्षसों को धिक्कारा कि वे स्त्रियों से डर कर भाग रहे हैं ? रक्तबीज हमला करने आया, तो इन्द्राणी ने उस पर शक्ति चलाई जिससे उसका सर कट गया और रक्त भूमि पर गिरा । किन्तु पूर्व वरदान के प्रभाव से उस रक्त से फिर एक रक्तबीज उठ खडा हुआ और अट्टहास करने लगा । जैसे ही शक्तियां उसे मारतीं, उसके रक्त से और असुर उठ खड़े होते । जल्द ही असंख्य रक्तबीज सब और दिखने लगे ।

श्री चंडिका ने श्री काली से कहा कि इसका रक्त भूमि पर इरने से रोकना होगा, जिससे और रक्तबीज न जन्में । देवी काली ने कहा की आप सब इन्हें मारें, मैं एक बूँद रक्त भी भूमि पर न पड़ने दूँगी । और ऐसा ही हुआ भी, जल्द ही सारे नए रक्तबीज युद्ध में मारे गए । तब रक्तबीज समझ गया की काली उसे पुनर्जीवित नहीं होने दे रही हैं, तो वह चंडिका को मारने दौड़ा । तब चंडिका ने उसे मार दिया और काली ने रक्त को भूमि पर न गिरने दिया । देवता चंडिका की जयजयकार करने लगे । जयकार सुन कर शुम्भ ने निशुम्भ को हमले की आज्ञा दी ।

 निशुम्भ देवी से बोला , की हे मालती के पल्लव सी सुकोमल तन्धारिणी, तुम यह विकट युद्ध क्यों कर रही हो ? तब देवी ने उसे वाचालता छोड़ कर युद्ध को ललकारा । निशुम्भ पर उन्होंने वाण वर्षा की , और निशुम्भ ने उन पर । काली देवी ने करोडो दैत्य संहार दिए, तब निशुम्भ उन पर लपका । उसके सभी आयुधों को काट कर देवी ने उसका वध कर दिया ।

भाई को गिरता देख शुम्भ देवी से युद्ध करने बढ़ा , तब चंडिका ने उसे भी त्रिशूल से संहारा । देवताओं ने पुष्पवर्षा करते हुए माँ की बड़ी स्तुति की ।

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जय माता दी  

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपको भी अष्टमी और विजयादशमी की हार्दिक बधाई |

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  2. यह तो पूरा देवी भागवत पुराण ही हो गया -कहीं कहीं महिशाशुर और रक्तबीज को एक ही प्रदर्शित किया गया है -पुराणों में भविष्य की कैसी रोचक संकल्पनाएँ छुपी हैं -रक्तबीज की परिकल्पना को हम आज मानव क्लोन में साकार हुआ पाते हैं !

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    1. जी - वह तो है । किन्तु क्लोनिंग से सिर्फ fertilization तक ही होता है, फिर गर्भधारण की अवधि पूरी उतनी ही लम्बे समय की होती है न ? मैं नहीं जानती - शायद ऐसा होता होगा । किन्तु रक्तबीज का यह जो cloning या जिस भी प्रकार से regeneration हो रहा था - वह तत्काल हो रहा था । इसी तरह से भगवती के शरीर की "कोशिकाओं" से कौशिकी का प्रकटन, इंद्र से इन्द्राणी , महेश से महेश्वरी, ब्रह्मा से ब्रह्माणी , विष्णु से वैष्णवी , तत्काल प्रकट हुईं । तो यह cloning से अधिक किसी और वैज्ञानिक प्रक्रिया की और संकेत हो सकते हैं ।

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    2. `कालिका पुराण` के अनुसार महिषासुर भद्रकाली का अनन्य भक्त था । उसने माया से स्त्री-रूप धर कर कात्यायन ऋषि के पुत्र के शिष्य को एक बार मोहित कर दिया था, जिससे वह तपोभ्रष्ट हो गया । इससे क्रुद्ध हो कर कात्यायन मुनि के पुत्र ने महिषासुर को शाप दिया कि उसका हनन एक सीमन्तिनी (नारी) द्वारा होगा । एक बार देवी अठारह भुजाओं के साथ उस भक्त के सामने प्रकट हुईं एवं उससे वर मांगने के लिए कहा । महिषासुर ने कहा कि मेरे पास सब कुछ है, केवल मैं देवताओं की भांति यज्ञों में अपने यज्ञ-भाग पा कर देवों की तरह यज्ञों में पूज्य होना चाहता हूँ, तथा संसार में जब तक सूर्यदेव विद्यमान हैं, तब तक मैं आपके चरणों की सेवा का परित्याग न करूँ । तब देवी माँ ने कहा कि यज्ञ-भाग तो देवगणों के लिए ही अलग-अलग कल्पित हैं, और कोई भाग इस समय शेष नहीं है, जो मैं तुम्हें दूं । किन्तु हे महिषासुर ! मेरे साथ युद्ध में तेरे मारे जाने पर, तेरे निहित हो जाने पर, तू मेरे चरणों को कभी नहीं त्यागेगा । मैं दुर्गा के स्वरूप में तुम्हारा और तुम्हारे साथियों का हनन करुँगी । `कालिका पुराण` में इस प्रकार इसे कहा गया है । देवी कहती हैं,

      मम प्रवर्तते पूजा यत्र यत्र च तत्र ते ।
      पूज्यश्चिन्तयश्च तत्रैव कायोऽयं तव दानव ।
      अर्थात देवी उससे कहती हैं की जहाँ जहाँ भी मेरी पूजा होगी, वहां वहां हे दानव ! यह तुम्हारा शरीर भी पूजा के और चिंतन के योग्य होगा । अतः देवी महिषासुरमर्दिनी उसका कटा हुआ सिर हाथ में लेकर चित्रित की जाती हैं ।

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  3. आभार शिल्पा जी, इन अद्भुत कथाओं के पीछे न जाने कितने गहन रहस्य छिपे हैं..

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  4. Hum jo bhi science aaj padhte hain ya apne aas pass dekhte hain..un sab se kahi adhik humare purano,grantho,aur vedo, me likha hua hai..hume use smjhna hai. To aane wala bhavisya bahut alag ho skta hai.

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  5. हमारे शास्त्र सदैव हमारा पूर्णतः वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मार्गदर्शन करते है इसलिए तो आधुनिक विज्ञान भी हमारे आध्यत्मिक और धार्मिक पुराणों और वेदों पर ही अनुसंधान करते है किसी और धर्म ज्ञान पर नही

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