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मंगलवार, 1 जुलाई 2025

तत्वयोद्धा – भाग 003

 

🌿 तत्वयोद्धा – भाग 3 

✍️ मायालेखा की लेखनी से बुनी गई एक कथा
(शिल्पा मेहता की रचना — सभी अधिकार सुरक्षित, कॉपीराइटेड)

🌿 प्राचीन पीपल की छांव में 

गुरुकुल के उत्तर-पश्चिम कोने में वह पुराना विशाल पीपल का वृक्ष था, जिसके नीचे कई बार कई  शिष्य अभ्यास से थककर बैठ जाते थे। आज वायुध, अग्निक और वरिषि वहीं बैठे थे। वायुध कुछ ताजे पत्तों को मोड़, उसके द्वारा एक चींटी को कीचड़ मेँ जाने से रोक कर दूसरी तरफ मोड़ने की कोशिश कर रहा था। वरिषि नीम की टहनी से अपने बालों में कंघी कर रही थी, और अग्निक चुपचाप पत्थरों को घुमाते हुए किसी गहरी सोच में था।

"क्या बात है अग्निक?" वरिषि ने अचानक पूछा, "तुम्हारा चेहरा दिखा रहा है कि तुम कुछ परेशान हो।"

अग्निक ने धीरे से कहा, "तुम लोग जानते हो ना, सम्मोहक दादा के पिता और मेरे पिता के बीच हमेशा हमारे कुल घराने की सत्ता को लेकर खिंचाव रहा है। अब लग रहा है कि यह सिर्फ पारिवारिक मतभेद नहीं है... वो दोनों हमारे परिवार को हटाकर पूरे घराने का नेतृत्व अपने हाथ में लेना चाहते हैं।"

वायुध चौक पड़ा — "क्या? नहीं, तुम मज़ाक कर रहे हो?"

"नहीं वायुध। मैं कुछ समय से देख रहा हूँ। कई बार मुझे अकेले में घेरने की कोशिश की है, पिता जी के पुराने सहयोगियों को कमजोर किया गया है, और… और सम्मोहक भैया  ने मुझे भी मोहना दीदी के विरुद्ध भड़का कर अपने पक्ष में लाने की कोशिश की थी।"

"तुम्हारे पिता तो घराने के मुखिया हैं न? तुम्हारे परिवार की शक्तियों से सब परिचित हैं, कई पीढ़ियों से इस घराने ने वीरता के इतिहास मेँ अपना योगदान दिया है। सम्मोहक भैया के ऐसा कहने पर तुमने क्या किया?"  वरिषि की आँखों में चिन्ता थी।

"प्रकट बात है वरिषी – मैंने उन्हें इंकार कर दिया," अग्निक की आँखें जल रही थीं, "लेकिन मेरा डर है कि अब वे वायुध जैसे साथियों को अपने पाले में खींचने की कोशिश करेंगे। वायुध भी पिछले सरपंच जी का पुत्र है और प्रभावी परिवार से है....... 

मोहना दीदी ही हमारे घराने के भविष्य की नेता होंगी यह हम सब को ज्ञात है, लेकिन सम्मोहक भैया के पिता बार-बार उनके विरुद्ध अपने पुत्र सम्मोहक को स्थान देना चाहते हैं, यह कह कर कि वह "लड़का" हैं। जैसे कि लड़का होना अपने आप मेँ कोई आवश्यकता हो!! जबकि हमारे घराने मेँ ऐसी कोई परंपरा नहीं है। "

📚 शिक्षा का नया चरण

तब तक गुरुकुल की मुख्य घण्टी बज उठी थी। आचार्य स्नेहित ने सभी छात्रों को एकत्र किया। उनके चेहरे पर गर्व मिश्रित गांभीर्य था

"बच्चों," उन्होंने कहा, "अब समय आ गया है अगले सोपान का। तुम सभी ने प्रारंभिक शिक्षा सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। तुमने संस्कृत भाषा, व्याकरण, तत्त्वों की बुनियादी समझ, एकाग्रता और कोशीय प्रकटन जैसे मूल कौशल में दक्षता प्राप्त की है। अब तुम सभी कम से कम 4 घड़े अपनी एकाग्रता से उत्तोलित कर के नदी से यहाँ तक ला पाते हो। सिर्फ कुकुरेश और वायुध को अतिरिक्त अभ्यास की आवश्यकता है, उन्हे मैं विशेष अभ्यास करवाता रहूँगा कुछ दिन।" कहते हुए स्नेहित वायुध और कुकुरेश की तरफ देख कर मुस्कराये थे।  

"लेकिन तुम सभी अब आगे कदम बढ़ा सकते हो। अब नया सोपान आरंभ होगा। आगे के सोपान मेँ विभिन्न विषयों के लिए विशेषज्ञ शिक्षक होंगे, तुम्हें तत्त्वों की विशिष्ट जानकारी, ऐतिहासिक जानकारी, गहन साधना, और सबसे महत्वपूर्ण — नैतिक शिक्षा (नैतिक शास्त्र) का प्रशिक्षण स्वयं प्रमुख गुरुदेव से प्राप्त होगा। मैं अब भी अभ्यास की कक्षाएं लेता रहूंगा। "लेकिन हम शिक्षकों के अतिरिक्त भी, असल युद्ध के प्रतिभागी, असल योद्धा नायक भी तत्त्व योद्धा टोलियों के विशिष्ट शिक्षक बनेंगेहाँ...... कहते हुए स्नेहित आचार्य ने सब बच्चों को प्रेम से देखा। उन्होंने शिष्यों के चकित चेहरे देख कर मुस्कराते हुए आगे कहा 

"अब से तुम्हारा संपर्क केवल गुरुकुल के आचार्यों से नहीं होगा। प्रत्येक टोली को विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा — असली युद्ध में भाग लेने वाले हमारे तत्तवयोद्धा गाँवों के नायक, जो अपने चक्रों को जागृत कर चुके हैं, जो असली युद्ध के अग्रिम मोर्चों पर जाते हैं, वे अपनी समय सुविधा के अनुसार तुम्हें प्रशिक्षित करेंगे। ये सभी आचार्य केवल शिक्षण नहीं, रण के अनुभव वाले योद्धा भी हैं। उनके साथ तुम्हें शारीरिक, मानसिक और नैतिक हर स्तर पर तैयारी करनी होगी। सभी रण मेँ भाग लेने वाली टोलियों को मुख्य गुरुदेव द्वारा आज्ञा मिलनी होगी। बिना स्वीकृति, कोई शिष्य किसी युद्ध अभ्यास में सम्मिलित नहीं होगा। टोलियों की सूची सामने पटल पर लगी है।

 टीम नाम

योद्धा गुरु

शिष्य 1

शिष्य 2

शिष्य 3

टीम विद्युत्

विद्युत्

अग्निक

वरिषि

वायुध

टीम शक्ति

शक्ति

संकल्प

सुदर्शन

धनुषी

टीम मायिरा

मायिरा

दृष्टि

कुकुरेश

कीटेश

टीम ...... 

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टीम ...... 

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🕸️ सम्मोहक की चाल

शाम के समय बाग के कोने में, सम्मोहक पीपल के पीछे छिपकर खड़ा था। उसकी आँखों में साज़िश की चमक थी। "वायुध अभी असमंजस में है, कुकुरेश भी बस कुछ शब्दों की आवश्यकता है।उसी दिन उसने वायुध और कुकुरेश को उसने अकेले में बुलाया हुआ था 

उनके आने पर वह कुछ देर इधर उधर की बातें करता रहा फिर कहने लगा "तुम दोनों ने देखा ना," वह बोला, "गुरुकुल में कैसे अग्निक को महिमामंडित किया जाता है? सब कुछ उसी के इर्द-गिर्द क्यों घूमता है? क्या बाकी सब का कोई महत्व नहीं है, सबका प्रयास व्यर्थ है?" "अगर तुम मेरी बात मानो… हम खुद अपना रास्ता बना सकते हैं। क्या तुम अपने तत्त्वों की शक्ति को केवल गुरुदेव के आदेश पर सीमित करना चाहते हो?"

हमारे घराने के मंदिर में एक मंत्र पांडुलिपि है, जिसके अभ्यास से तुम दोनों अपनी चक्रशक्ति घनीभूत कर सकते हो और तुरंत ही बड़े योद्धा बन सकते हो. लेकिन वह मंदिर अग्निक और मोहना के पिता के नियंत्रण में है, और उन लोगों ने हमें वहां गर्भगृह तक आने की अनुमति नहीं दी हुई है।  इसलिए मैं तुम्हारे लिए वह मंत्र पांडुलिपि नहीं ला पाऊंगा। लेकिन वायुध - तुम तो अग्निक के मित्र हो - तुम अग्निक के बहाने वहां जाकर उसे चुपके से ले आ सकते हो। जब हम पिछले अग्नि पूजन को वहां गए थे तब मैंने मंत्र पांडुलिपि के पास एक गुप्त गंध वाली वस्तु रखी है जिसे कुकुरेश का श्वान शुनक आसानी से ढूँढ लेगा - तुम दोनों आसानी से वह उठा लेना और उसका प्रकटन वहां रख देना।   

वायुध कुछ समझ नहीं पाया था, लेकिन उसके मन में सुबह अग्निक की बातों से सम्मोहक भैया के लिए संशय का बीज अंकुरित हो चुका था। लेकिन कुकुरेश सम्मोहक की बातों के असर मेँ दिख रहा था। वायुध ने मन ही मन निश्चय किया कि वह कुकुरेश की टोली की आचार्य मायिरा से अपने मन का संशय अवश्य कहेगा। 

नहीं नहीं - यह तो शिकायत हो जाएगी।  नहीं मैं आचार्य मायिरा को नहीं, दॄष्टि से कहूँगा की वह कुकुरेश को सावधानी रखने के लिए समझाए।  

……

**जारी …**


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