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बुधवार, 2 जुलाई 2014

श्रीमद भागवतम ५ : कर्दम, देवहूति, ऋषि दंपत्ति

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पहला भाग 

मनु और शतरूपा जी ने ब्रह्मा जी के आदेश से संतति बढाने के लिए पांच संतानों को जन्म दिया। ये थे - प्रियव्रत और उत्तानपाद नामक पुत्र और आकूति , देवहुति , एवं प्रसूति नामक कन्याएं।
मनु और शतरूपा की एक पुत्री थीं देवहूति। अब मैं देवहूति और ऋषि कर्दम और उनकी संतति की कथा कहूँगी।

कर्दम ब्रह्मा के पुत्र थे।  वे परम ज्ञानी थे और माया से परे थे , किन्तु पिता ब्रह्मा की आज्ञानुसार संतति बढ़ाने को प्रतिबद्ध थे।  उन्होंने बहुत तप किया और नारायण प्रकट हुए।  तब उन्होंने वर मांगने को कहा।

कर्दम जी बोले - आपके दर्शन होने के बाद तो मांगने को कुछ  बचा ही नहीं है।  फिर भी पिता ब्रह्मा की आज्ञा से मुझे संतति का प्रजनन करना आवश्यक है।  सो हे प्रभु, मैं आपको ही अपने पुत्र के रूप में चाहता हूँ , और संतति प्राप्त करने के लिए एक शीलवती धर्मपत्नी की भी आवश्यकता है।  कर्दम की प्रेमभक्ति से प्रसन्न नारायण की आँखों से अश्रु गिरे और  दिव्या जलाशय - हुए बिन्दुसार। नारायण ने कहा - आपकी पत्नी होंगी मनु और शतरूपा जी की सुपुत्री - देवहुति।  मैं आप दोनों के पुत्र रूप में आऊंगा।

उधर मनु जी को प्रेरणा हुई कि देवहूती जी को कर्दम जी की संगिनी होना है।  वे अपनी धर्मपत्नी शतरूपा और देवहूती के संग कर्दम जी के आश्रम आये और कहा प्रणाम और स्वागत आदि के उपरांत कहा , कि मेरी पुत्री आपकी स्त्री होना चाहती है।  कर्दम जी ने कहा कि मैं विवाह करने को तो तैयार हूँ, किन्तु गृहस्थाश्रम के बाद मैं संन्यासाश्रम में भी जाऊँगा , जब आपकी पुत्री संतानों की माता बन जाएंगी।  देवहूति और मनु और शतरूपा की सहमति से कर्दम जी और देवहूति जी का शुभविवाह हुआ और माता पिता अपनी पुत्री को पति के संग छोड़ कर वापस चले गए। लौट कर जहां वराह जी के शरीर से कुछ बाल गिरे थे वहां उन दोनों ने यज्ञ कराया।

इधर नवविवाहित कर्दम जी फिर से अपने ध्यान आदि में लग गए और देवहूति उनकी सेवा करती रहीं। कई प्रहर बीते , दिन, महीने , वर्षों बीत गए और देवहूति सेवा में लगी रहीं।  उनका नवयौवन समय के साथ समाप्त हो गया, किन्तु वे तनिक भी दुखी हुए बिना पति की सेवा करती रहीं।

कई वर्षों बाद कर्दम जी की समाधि खुली तो उन्होंने देखा कि उनकी सुन्दर नवयौवना पत्नी वृद्धा सी हो चली थीं।  वे  स्वयं   भी अब युवा न थे।  तब उन्होंने अपनी प्रिय  पत्नी से कहा - आप ने पूर्ण रूप निस्वार्थ हो कर स्त्री - धर्म निभाया है।  मेरी तपस्या के साथ आपने भी अनेक व्रत-उपवास किये - जिनसे आप असमय ही कुम्हला गयीं।  अब मैं पति धर्म  निभाऊंगा। कहिये आप मुझसे क्या चाहती हैं।

 देवहूति बहुत संकोच में थीं।  मन से तो वे वही युवती थीं जो  पति  अपने माता पिता के संग यहां आयीं थीं , किन्तु उनका शरीर वृद्धा का हो चुका था। उनके रेशमी वस्त्र अब न थे, और वे पुराने वस्त्र पहनी थीं।  गहनों को भी वे कबसे त्याग चुकी थीं। उनका शरीर अनेक व्रतों से कमज़ोर हो गया था और उनके सुन्दर नेत्र अपनी चमक खो चुके थे।  वे लजाते हुए अपने  कि मैं आपकी पत्नी हूँ, क्यों आप मुझसे कहलवाना चाहते हैं कि मैं क्या चाहती हूँ ?

उनकी कामना को  समझते हुए ,  तब कर्दम जी  योगशक्ति से एक ऐसा विमान बनाया जो पूरा नगर सा था - जिसमे सभी सांसारिक सुविधायें थीं। तत्पश्चात उन्होंने सप्रेम देवहूति जी से बिन्दुसार में स्नान कर आने। झिझकती हुई देवहूति जलाशय में उतरीं तो अत्यधिक चकित हो गयीं।  बिन्दुसार नारायण जी के अश्रुओं से बने थे , उनके चमत्कारी जल के प्रभाव से देवहूति वृद्धा से पुनः युवा हो उठीं। वहां अनेक सुन्दर स्त्रियां उनके सामने ही प्रकट हो कर उन्हें सजाने - संवारने लगीं।  उनके सुंदर केश संवार कर उनका श्रृंगार किया।  रेशमी वस्त्र और गहने पहनाए।

स्नान और श्रृंगार के पश्चात पुनर्यौवना हुई देवहूति सकुचाते हुए पति के निकट पहुंची तो चकित रह गयीं , क्योंकि उन्ही की तरह कर्दम मुनि भी वृध्द से फिर वही युवक बन गए थे जिनसे वर्षों पहले उनका विवाह हुआ था। अब कर्दम जी ने अपनी शर्माती लजाती हुई धर्मपत्नी का हाथ थामा और विमान में प्रवेश किया।  विमान कई वर्षों तक अंतरिक्ष में विचरण करता रहा और संसार से बेखबर दंपत्ति गृहस्थाश्रम आनंद लेते रहे।  इस बीच देवहूति नौ कन्याओं की माता भी हो गयीं।

नौ कन्याओं के पिता होने के बाद कर्दम जी ने कहा - हे प्रिय संगिनी - मैंने विवाह के समय ही कहा था कि संतानोत्पत्ति के पश्चात संन्यास ले लूँगा - अब वह समय आ गया लगता है। तुम नौ कन्याओं की माता हो चुकी हो।  तब देवहूति जी बोलीं - ये कन्याएं तो ब्याह कर के अपने अपने पति के घर चली जाएंगी।  आप तो ब्रह्मज्ञानी हैं किन्तु मैं तो साधारण स्त्री हूँ।  मैं किसके सहारे जियुंगी ? यदि एक पुत्र होता तो मेरे सहारे को कोई रहता।  तब कर्दम जी ने कहा कि हे देवी - अपने आप को साधारण न कहो। नारायण स्वयं ही तुम्हारे पुत्र होंगे - इसके लिए हम दोनों को व्रतादि करने होंगे।  तब दोनों ने कई वर्षों व्रतोपवास आदि किये और नारायण देवहूति के गर्भ में आये।

गर्भस्थित नारायण की स्तुति करने ब्रह्मा जी नौ परम ब्राह्मण ऋषियों को लेकर आये। उन्होंने बताया कि आपके पुत्र रूप में नारायण आएंगे और संसार को सांख्य योग की शिक्षा देंगे, और कपिल मुनि नाम से प्रसिद्ध होंगे। इसके पश्चात उन्होंने कर्दम और देवहूति जी से उनकी कन्याओं के विवाह इन नौ परम ब्राह्मणों से करने का प्रस्ताव किया जिसे दोनों ने सहर्ष स्वीकारा।  तब उन नौ कन्याओं के इन नौ ब्राह्मणों से विवाह संपन्न हुए।

मारीचि जी का विवाह कला जी से हुआ ,
अनुसूया माता का अत्रि जी से,
श्रद्धा जी का अंगिरा जी से,
पुलत्स्य जी का हविर्भू जी से ,
गति जी का पुलह जी से विवाह हुआ

क्रिया जी का कृतु जी से ,
ख्याति जी और भृगु जी का विवाह हुआ ,
अरुंधति जी का विवाह वशिष्ठ जी से हुआ,
शान्ति जी का अथर्व जी से विवाह हुआ।

नौ कन्याएं अपने पतियों के संग उनके आश्रम को चली गयीं और वृद्ध माता पिता अपने आश्रम में रहते हुए अपने नारायण - अवतार सुपुत्र के जन्म की प्रतीक्षा में रहने लगे।

जारी 

5 टिप्‍पणियां:

  1. नारायण को पुत्र रूप में पाने की कामना रखने वाले ऋषि कितने अद्भुत रहे होंगे...बहुत सुंदर कथा !

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  2. सुन्दर कथा से अवगत कराने के लिए आपका आभार.

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  3. Yah katha abhi prasangik nhi.

    So in ki example abhi cartman mien barth hai, impossible, Asambhav .
    Katha achha laga hai padhne me, bas katha or nothing
    Hum log vartaman mien hi rahe or jiye

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