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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

Measuring Astronomical distances in Space

क्या आप जानते हैं कि दूरी कैसे मापी जाती है? बिल्कुल!!! हम सब जानते हैं, है ना?

मान लीजिए कि मैं एक नोटबुक को मापना चाहती हूं, मैं एक पैमाना/रूलर लूंगी, एक किनारे पर शून्य का निशान रखूंगी, और विपरीत किनारे पर रीडिंग की जांच करूंगी। यदि नापी जाने वाली वस्तु बड़ी है (मान लीजिए एक मेज), तो हम मापक के स्थान पर मापन फीते का उपयोग करते हैं। इससे भी लंबी दूरी का आकार हो तो? जैसे एक कमरे की लंबाई? कुछ भी मुश्किल नहीं है, हम उस जगह को चिह्नित करेंगे जहां टेप समाप्त होता है, इसे स्थानांतरित करेंगे, और कमरे के विपरीत कोने तक पहुंचने तक फिर फिर से शुरू करते जाएंगे। अब बस अलग-अलग नापों का जोड़ हमें कमरे की कुल लम्बाई बता देगा। 

अब शहरों के बीच की दूरी का क्या? यह एक कठिन चुनौती हो सकती है, कि नापने के टेप को मुंबई से दिल्ली तक पूरी दूरी पर ले बार बार जमीन से उठा उठा कर रखा जाए और इस तरह वहां तक ले जाया जाए, है ना? ---- फिर?  फिर कुछ मुश्किल नहीं. सिविल इंजिनियर एक सर्वे तकनीक जानते हैं, वे अपनी सर्वे मशीन्स को धरती पर टिका कर कुछ रीडिंग्स लेते हैं और बस हो गया :)

लेकिंग आसमान में सर्वे मशीन कैसे रखी जायेगी? क्या हम बुध ग्रह पर मशीन रख कर वहां से रीडिंग ले पाएंगे की मंगल ग्रह कितना दूर है उससे? नहीं न? फिर क्या करें?

बहुत आसान है. आप जहाँ भी बैठे हैं अभी, वहां से करीब १०-२० मीटर दूरी की कोई एक वस्तु का कोई एक कोना चुन लीजिये. कोई भी वस्तु चुन सकते हैं - पंखा, टीवी, खिड़की का ऊपरी कोना, बाहर दीखता कोई पेड़ आदि।  अब अपनी एक आँख बंद करें और एक हाथ से उस बिंदु पर point करें - आपकी ऊँगली ठीक उस पॉइंट पर हो। हो गया? अब वह आँख खोल कर दूसरी आँख बंद करें. आपकी ऊँगली उस बिंदु से हट गयी होगी। इसे parallax कहते हैं। आप सब बचपन में रेखागणित (ज्योमेट्री ) में त्रिभुजों (triangles) के बारे में पढ़ चुके होंगे। हमारे हाथ की ऊँगली हमारी आँख से कितनी दूर थी और वह वस्तु कितनी दूर है इन दोनों का सम्बन्ध इस बात से है की वह वस्तु कितनी दूर हिली हुई प्रतीत होगी। ठीक यही आप बिना किसी दूरी की चीज़ को देखे भी कर सकते हैं, आपकी दोनों आँखों के बीच नाक है।  बस अपने मोबाइल या लैपटॉप की तरफ देखते हुए (जो भी अक्षर पढ़ रहे है उसे ही देख लीजिए ) पहले एक फिर दूसरी आँख बंद करें और खोलें. आपको अपना वह अक्षर हर बार हिलता हुआ दिखेगा, और इसकी दूरी आपकी नाक के कारण आपकी दोनों आँखों से जो parallax बन रहा है उसके बारे में बताएगा।  या फिर अपनी नाक के किनारे को ही एक एक आँख बंद करते खोलते हुए देखें, वह भी हिलता नज़र आएगा. यह सब एक ही रेखागणित पर आधारित है। 

इसी तरह अपने से कुछ दूर एक ऊँची इमारत की छत  के एक कोने पर देखें, एक आँख बंद कर हाथ दूर रखते हुए एक ऊँगली एक कोने पर पॉइंट करें, और फिर उस आँख को बंद कर दूसरी आंख खोल कर देखें।  इस तरह उस ईमारत की दूरी/ ऊंचाई (नीचे से ऊपर देखते हुए) आप जान सकते हैं।  मैं फार्मूला वगैरह नहीं लिख रही, सब कुछ गूगल पर उपलब्ध है। मैं सिर्फ तरीके की बात कर रही हूँ यहां। 

अब इसी तरह अपने घर के आगे या किसी और ऊँची इमारत (जिसकी ऊंचाई आप जानते हैं) के कोने से चन्द्रमा को एक आँख से align  करने के बाद दूसरी आँख से देखे, आप उस की दूरी जान सकते हैं। ( छत के कोने को अपनी ऊँगली समझें और दूर आसमान में चाँद को एक एक कर दोनों आँखों से देखें)

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अब आगे की पोस्ट अभी ही पढ़ेंगे या कल? आपकी मर्जी है , मैं यहीं लिख रही हूँ, आप अपने कम्फर्ट से तय कीजिये की एक बार में पढ़ना है या टुकड़ों में।  

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अब आप ऊपर के चित्र को समझ चुके होंगे।  आप यह भी जानते हैं की चाँद की दूरी धरती से कितनी है।  अब आप याद कीजिये, क्या आप कभी किसी पुराने भारतीय जंतर मंतर पर गए हैं? दिल्ली में एक है ,उज्जैन, जयपुर, चेन्नई, में भी।  गूगल पर मिल जायेगा, एक लिंक यह रहा https://en.wikipedia.org/wiki/Jantar_Mantar 



इनसे हमारे पूर्वज खगोलीय पिंडों के बारे में अध्ययन करते थे। आप समझ ही सकते हैं कैसे होता होगा। 

अब चन्द्रमा से आगे बढ़ते हैं।  चन्द्रमा की दूरी जानते हैं न? तो उसे अपनी ऊँगली समझिये और इसके साथ किसी पास के तारे की दूरी जान पाएंगे आप।  लेकिंग बहुत दूरस्थित आकाश गंगाओं पर यह काम नहीं करेगा।  धरती के orbit  (कक्षा) के बारे में हम जानते हैं ही।  ६ महीने के अंतराल से धरती अपनी कक्षा के सबसे अधिक दूरी के छोर पर जब हो तब दो रीडिंग्स ली जाये, चन्द्रमा को ऊँगली मान कर (चंद्रमास का एक ही दिन और समय होना चाहिए) तब दूर स्थित आकाश गंगाओं की दूरी नापी जा सकती है। बहुत से तरिकके हैं, आप और आपका मित्र यदि दो शहरों में हैं तो शाम के एक ही समय दोनों चन्द्रमा की तरफ देखने का angle  देख कर भी यह पता कर पाएंगे। 










कुछ आकाश गंगाएं इतनी अधिक दूर हैं की धरती की कक्षा का व्यास भी काम पड़ जाए।  इनके लिए दूसरे तरीके हैं, फिर कभी उन पर चर्चा करेंगे। 

फिर मिलेंगे, स्वस्थ्य रहिये, प्रसन्न रहिये .... 

शनिवार, 9 जनवरी 2021

Upanishad5 उपनिषद सन्देश 5

एक बार बहुत पहले द्वैत और अद्वैत पर कुछ लिखा था।  उसी श्रंखला में आगे .... 

हिन्दू चिंतकों के बहुत से पथ रहे हैं, ईश्वरवादी, अनीश्वरवादी, मूर्तिपूजक ,और भी अनेक राहें उपलब्ध हैं।  

दो विचारप्रवाह हैं, दो धाराएं बहती हैं।  द्वैत को मानने वाले कहते हैं - मैं जीव तुम ईश्वर।  सदा ही पृथक, मैं पूजक तुम पूज्य, मैं पथिक तुम ध्येय, आदि।  लेकिन अद्वैत वादी कहते हैं, कोई पृथक हैं ही नहीं।  मैं ही तुम हूँ और तुम ही मैं, जब एक हो जाएं तब मोक्ष।  या तो मैं न रहूँ - तुम ही तुम हो, और वह न हो तो "अहं  ब्रह्मास्मि" का नाद। इस ही संदर्भ में वेदान्त से पांच कथाएं कहूँगी 

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१ राजा जनक की कथा 
राजा जनक अत्यधिक सम्माननीय महापुरुष हुए।  एक बार शत्रु का आक्रमण हुआ, युद्ध हुआ और राजा जनक की पराजय हुई।  शत्रु भी सिद्धांतों को मानने वाला हुआ , सो राजा को प्राण दंड न देकर देश निकाला दिया गया।  राजा जनक चल पड़े। वे घायल थे, भूखे प्यासे थके हुए चलते रहे, भिक्षा मांगते तो प्रजा जन डरते कि नए राजा क्रोधित होंगे, तो उन्हें किसी ने कुछ न दिया। 

राजा चलते रहे और पड़ोसी राज्य जा पहुंचे। वहां एक अन्नक्षेत्र था जहां खिचड़ी रुपी भोजन भिक्षुकों को दिया जा रहा था।  राजा कतार में खड़े रहे, लेकिन जब तक उनकी बारी आई, भोजन ख़त्म हो चुका थे।   भोजन परोसने वाले ने कहा - भोजन नहीं है लेकिन उनकी स्थिति देख  कर उसने किसी तरह बर्तन के तले से एक दोने में  खिचड़ी उन्हें दी. जब वे उसे खाते, एक पक्षी ने उनके हाथ से दोना गिरा दिया और खिचड़ी मिटटी में मिल गयी।  जनक जी का मन हाहाकार करने लगा और वे चीत्कार करते भूमि पर गिर पड़े।   उसी समय संतरी भागता हुआ उनके कक्ष में आया और उन्हें जगाया।  उनकी निद्रा और स्वप्न टूट गया।  संत्री पूछने लगा क्या हुआ तो वे बोले "वह सच या ये सच?" सिर्फ यही कहते रहे ....  

संत्री भागा गया और रानी माँ को बुला लाया - उन्हें भी राजा यही कहते रहे "वो सच या ये सच?" ... 

वैद्य , रानी सब पूछते रहे क्या हुआ, क्या हुआ।  लेकिन राजा यही कहते रहे "वह सच या ये सच?" सबको लगने लगा राजा जी को कुछ हो गया है , उनके बारे में कथाएं चल पड़ीं। 

एक दिन अष्टावक्र जी ने यह सुना और वहां आए - उन्होंने राजा से वार्ता की।  राजा फिर बोले "वह सच या ये सच?"
अष्टावक्र जी तो सर्वज्ञ रहे, तो वे जान गए राजा के भीतर क्या चल रहा है।  उन्होंने पूछा "राजन - क्या वह सब यहां दीखता है - शत्रु,पराजय , भिक्षा, खिचड़ी, अन्नक्षेत्र, भूख, थकान ?" राजा ने कहा - नहीं 

अष्टावक्र जी ने अब पूछा "वहां भी तुम ही थे न?" राजा ने कहा - हाँ मैं ही था।  

"तब क्या वहां यह सब था?  दरबार,मंत्रीगण, संत्री, रानी .. यह सब वहां था??" .... राजा ने कहा - नहीं 

अब अष्टावक्र बोले - इसलिए राजन - न वो सच , न ये सच।  सिर्फ तुम ही सच।  

बस वही एक है अद्वैत - कुछ सच नहीं - सिर्फ "मैं" ...... जो "मैं" मैं अनुभव करती हूँ , वही "मैं"  हर जीव अनुभव करता है।  बस वही एक है।  एक ही अद्वैत।  सिर्फ "मैं"

अहं ब्रह्मास्मि ही है अद्वैत का उद्बोधन  ......