ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन - भाग तीन (03)
भाग 3
प्रियंका
मैंने जाने के पहले दोनों बच्चों को फ़ोन किया, और दोनों ने फ़ोन नहीं उठाया। मुझे उम्मीद भी नहीं थी कि वे फ़ोन उठाएंगे। मैंने एक वॉइस मेल छोड़ा, जबकि उन दोनों ही ने मुझे ऐसा न करने के लिए कहा था क्योंकि "आजकल कोई भी वॉइस मेल नहीं छोड़ता, माँ।" लेकिन मुझे जो कहना था उसे टेक्स्ट मेसेज पर कहना गलत लगा।
"शाश्वत, बेटा, मैं जानती हूँ कि तुम व्यस्त हो, और तुम्हें परेशान करने के लिए मुझे दुख है। मैं तुम्हें सिर्फ़ यह बताना चाहती थी कि मैं जा रही हूँ ... तुम्हारे पापा को छोड़ कर। मैं ... शायद यह मेरी ही गलती है। यह तुम्हारे लिए जितनी आश्चर्य की बात है, उतनी ही उनके लिए भी। मुझे थोड़ा समय चाहिए। एक बार मैं व्यवस्थित हो जाऊँ, फिर संपर्क करूँगी। मुझे पता है कि तुम इस बात पर नाराज़ होगे, लेकिन अब मैं यहाँ और नहीं रह सकती। .... इसके लिए मुझे माफ़ कर देना बेटा। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ।"
फिर मैंने नीलिमा के लिए भी ऐसा ही एक संदेश छोड़ा।
अंशुमन को फ़ोन करने का कोई मतलब नहीं था। जब वह दफ़्तर में होता था, तो उसका सेल फ़ोन सीधे काव्या के पास चला जाता था, और वह हमेशा विनम्रता से मुझसे कहती थी कि अंशुमन व्यस्त है और पूछती थी कि क्या मैं कुछ मैसेज छोड़ना चाहती हूँ। मैं नहीं छोड़ती थी, क्योंकि जब पहले-पहले मैंने संदेश छोड़ा था, तो अंशुमन ने मुझसे कहा था कि वह काम पर परेशान नहीं होना चाहता जब तक कि कोई आपातकालीन स्थिति न हो।
मैंने सालगिरह के दिन अंशुमन को फ़ोन किया था, और काव्या के पास संदेश भी छोड़ा था। टेक्स्ट भी भेजा था। आखिरी उम्मीद थी कि वह याद रखेगा और कुछ कहेगा, कुछ करेगा, मुझे वह फ़ैसला लेने से रोकेगा जिसे लेने में मैं हिचकिचा रही थी, हालाँकि मुझे पता था कि मुझे यह करना ही था। लेकिन काव्या ने हमेशा की तरह मेरी कॉल को उस तक पहुँचने ही नहीं दिया। अंशुमन ने टेक्स्ट संदेश भी मिस कर दिया, जैसे उसने इन वर्षों के दौरान मेरे कितने ही संदेशों को मिस कर दिया था। मेरा सालगिरह का उपहार टेबल पर ही पड़ा हुआ था मुझे मुंह चिढ़ाता हुआ था, अंशुमन ने खोल कर भी नहीं देखा था।
नीलिमा को कॉल करके वॉयस मेसेज भेजने के बाद, मैंने अपना फ़ोन डाइनिंग टेबल पर लिफ़ाफ़े के बगल में रख दिया, जिसमें अब मेरी पिछली ज़िंदगी की कहानी थी। मैंने उस घर को देखा जिसे मैंने पिछले पंद्रह सालों से अपना घर बनाया था, वह घर जो अब एक एकाकी जेल बन गया था, जहाँ अकेलापन मुझे खा रहा था। ऐसा नहीं था कि हमारा सारा जीवन ऐसा रहा हो, बहुत सी सुखद यादें भी थीं। लेकिन जब से बच्चे बाहर चले गए थे तब से अंशुमन काम मेँ और व्यस्त हो गया था, और मैं और भी अकेली हो गई थी।
मुझे कोई पछतावा नहीं था - इस बात का भी नहीं कि मैं क्या या कैसे कर रही थी। यह मैं ‘अपने’ लिए कर रही थी, उस तरीके से जो मुझे सही लगता था। अपने परिवार की सेवा करने के बीस साल बाद, मैंने अपने मन की शांति के लिए अकेले गायब होने का अधिकार अर्जित कर लिया था। मेरे मनोचिकित्सक के अनुसार भी मुझे या तो अपनी भावनाएं व्यक्त करनी चाहिए, या इस माहौल से निकलना चाहिए। इस तरह अवसाद मेँ जीना अच्छा नहीं था।
जब मैं अपनी कार में पेट्रोल भरने के लिए पेट्रोल पंप पर रुकी, तो मैंने अपने नए स्मार्टफोन से श्रेया को संदेश भेजा, जिसे मैंने पिछले हफ्ते ही अमेजन से खरीदा था और जो पुराने मॉडल का होने के कारण सस्ता मिला था।
अंशुमन और मेरे प्री-नेपुटल के अनुसार, अगर मैंने तलाक मांगा, तो मैं साथ कुछ नहीं ले जा सकती। अंशुमन की माँ ने मुझे बार-बार यही कहा था, और अंशुमन भी कई बार मुझे यही कह कर चिढ़ाता था। मुझे दुख होता था कि वह सोचता है कि मैं उस बेवकूफी भरे समझौते की वजह से उसके साथ थी, जबकि सच्चाई तो यह थी कि मैं उसके साथ सिर्फ अपने प्यार के कारण थी। उन्होंने जो भी मेरे सामने रखा, मैंने उस पर हस्ताक्षर कर दिए क्योंकि मुझे पैसों की परवाह नहीं थी। मैं अपने जीवन के प्यार से शादी कर रही थी, मुझे परवाह नहीं थी कि वह राव-सिन्हा था या कोई अदना कर्मचारी। वह बस मेरा प्यार था।
मैंने सोचा कि मुझे यह बात भी नोट में जोड़ देनी चाहिए थी। लेकिन मुझे याद ही नहीं था, ऐसी कितनी ही बातें थीं! शायद मुझे यह भी कहना चाहिए था कि मैं उसे कार के पैसे वापस कर दूंगी, या वह कार वापस ले ले। मैं मर्सिडीज़ नहीं खरीद सकती थी, भले ही वह पुरानी हो। मैं इतनी महंगी गाड़ी के बीमा का भुगतान भी नहीं कर सकती थी।
शाश्वत ने कई बार कहा था, "आपको एक नई कार लेनी चाहिए, माँ। यह तो खटारा है।"
"मेरे लिए यही ठीक है," मैंने उससे कहा। मैंने शाश्वत को मेरी पीठ पीछे अपनी बहन के साथ हंसते हुए सुना था। "बूढ़ी और पिटी हुई कार। शायद यह माँ के लिए ठीक ही है।" मैं अपने बच्चों के साथ इतनी गलत कैसे हो गई? मैंने उन्हें बेहतर तरीके से क्यों नहीं पाला-ताकि वे अपनी माँ का उसी तरह सम्मान करें जैसे वे अपने पिता का करते हैं? मेरे मनोचिकित्सक ने बताया था, "बच्चे अक्सर पिता के व्यवहार के आधार पर माँ का मूल्यांकन करना सीखते हैं, यह उस उम्र के दौर की बात है।"
अरे हाँ, मैंने एक साल पहले मनोचिकित्सक डॉ. मिश्रा से मिलना शुरू किया था। जब मैंने अपने घरेलू चिकित्सक को नींद आने में परेशानी का बताया था, तब उन्होंने नींद की गोलियां दी थीं। एक सुबह जागने के बाद तीव्र इच्छा थी कि काश मैं फिर कभी न उठूँ, उस दिन मैंने उन नींद की गोलियों को लालच से देखना शुरू कर दिया था। जब मैं गाड़ी चलाती, तो मेरा मन करता कि मैं उन दुर्घटनाओं में क्यों नहीं फँस सकती, जिनमें किसी की मृत्यु हो जाती है। श्रेया की बीमारी अपने ऊपर क्यों नहीं ले सकती जिससे वह जीवित रह सके, क्योंकि मैं वास्तव में अब जीना नहीं चाहती थी। तब मैंने डॉ. मिश्रा से मिलना शुरू किया था। उन्होंने बताया कि मैं अवसाद ग्रस्त हूँ, मुझे अवसाद रोधी दवाएँ दीं। मैं चुपके से दवाइयाँ लिया करती थी, जो मेरे लिए बिल्कुल मुश्किल नहीं था क्योंकि मैं हमेशा अकेली ही रहती थी। दवा ने मुझे स्थिर होने में मदद की, और डॉ. मिश्रा के साथ बातचीत ने मुझे इस जीवन बदलने वाले निर्णय तक पहुँचने के लिए स्पष्टता दी; अपने पिछले जीवन को पीछे छोड़ कर एक नए जीवन की शुरुआत करना, जो मेरे लिए हो, जहाँ मैं हमेशा दूसरों ही के लिए कुछ न करती रहूँ। जिस जीवन मेँ मैं वह सब करने में सक्षम होऊंगी, और करूंगी जो मुझे खुशी दे। मैं स्वतंत्र हो जाऊंगी और अपना सर्वश्रेष्ठ जीवन जीऊँगी। फिर आँसू क्यों बह रहे थे?
मैं लक्षद्वीप में अपनी दोस्त श्रेया के सनशाइन होम्स रिज़ॉर्ट को चलाने वाली थी। यह एक छोटा सा समुदाय था - ऑफ-सीज़न में केवल पाँच-छह सौ लोग होते होंगे। यह एक बहुत शांति और सुकून प्रदान करने वाला स्वप्न था। हालांकि, पीक सीज़न के दौरान, काफी संख्या मेँ पर्यटक सनशाइन होम्स में आते थे। समुद्री रास्ते से वहाँ गाड़ी ले जाना संभव था, और मैं कार का इंतजाम कर के चली थी।
एक बार, जब वह कैंसर से जूझ रही थी, तब मैं कीमो के समय उस से मिलने गई थी। तब मैंने अंशुमन को भी साथ ले जाने की कोशिश की थी। "एक बार चलो तो सही, अंशुमन। वहाँ सब कुछ बहुत सुंदर है।" मैं स्टडी के बाहर खड़ी थी, क्योंकि काम करते समय उसे कोई व्यवधान नहीं पसंद था। अंशुमन ने अपने कंप्यूटर से नज़र नहीं उठाई। "मैंने कहा था, बेबी, मैं नहीं निकल सकता। तुम घूम आओ और अपनी दोस्त के साथ खूब मज़े करो।" घूमना? अच्छा समय? वह जानता था कि मैं अपने दोस्त को कीमोथेरपी लेते हुए देखने और उसका ध्यान रखने, उसकी तीमारदारी करने जा रही थी। मैं उसे बताना चाहती थी कि मुझे उसकी ज़रूरत है क्योंकि पूरी दुनिया में अपने एकमात्र दोस्त को इस तरह कैंसर से खोते हुए देखना मेरे लिए भावनात्मक रूप से बहुत मुश्किल था। लेकिन अंशुमन को श्रेया पसंद नहीं थी। नहीं, यह गलत था। वह उसे जानता ही नहीं था। उसने कभी उसे जानने की भी जहमत नहीं उठाई। मुझे शक था कि उसके पास उसका फ़ोन नंबर भी होगा या यहाँ तक कि उसे उसके रिसॉर्ट का नाम भी पता होगा। मुझे शक था कि उसे यह तक पता हो कि वह किस शहर में रहती है, जहाँ मैं अब रहूँगी, सिवाय इसके कि रिसॉर्ट एक समुद्र तट पर था।
वैसे भी, मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह मुझे ढूँढने की कोशिश करेगा। शायद इसीलिए मैंने उसके पास मुझसे संपर्क करने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा था। इस तरह, जब वह मुझसे संपर्क नहीं करेगा तो मुझे बुरा नहीं लगेगा। इस तरह से मैं अपने आप से झूठ बोल सकती थी, दिखावा कर सकती थी कि वह तो आना चाहता है, लेकिन मैंने यह विकल्प नहीं छोड़ा है।
मैंने अपनी कार के म्यूजिक सिस्टम पर अपनी पसंदीदा प्ले लिस्ट लगाई और गाने सुन-सुन कर आहें भरी। मुझे जल्द ही स्पॉटिफाय के लिए अपनी अलग सदस्यता लेनी होगी। सब कुछ खुद ही करना होगा। मैं नहीं चाहती थी कि अंशुमन को लगे कि मैंने उससे और उसके परिवार से कुछ भी छीना है। उसकी माँ ने इस बारे में कई बार स्पष्ट रूप से कहा था। जबकि उन्होंने मुझे मेरी ‘दुर्भाग्यपूर्ण जड़ों और परिस्थितियों’ के बावजूद सबसे अच्छी पत्नी बनने के लिए प्रशिक्षित किया था। वह हमेशा उस प्री-नेपुटल समझौते की बात करती रहती थीं। आर्थिक और भावनात्मक रूप से मेरी परिस्थितियाँ बहुत अच्छी नहीं थीं। मैं एक शराबी माँ के साथ एक झोंपड़ पट्टी में पली-बढ़ी। मेरे पिता बहुत पहले ही चले गए थे। उस गरीबी मेँ बड़ी होते हुए मैंने खुद से वादा किया था कि मैं पढ़ाई में कड़ी मेहनत करूँगी, पहले सरकारी कॉलेज और फिर विश्वविद्यालय जाऊँगी। मैं अपने परिवार में पहली महिला बनूँगी जिसे डिग्री और नौकरी मिलेगी जैसा कि मैंने टेलीविजन पर सफल महिलाओं को देखा था। मैं बिजनेस सूट पहनूँगी, अपने बालों को एक स्लीक बॉबकट में कटवाऊँगी, स्वतंत्र रहूँगी। लेकिन कुछ भी नहीं कर पाई थी। नहीं सोचा था कि अठारह साल की उम्र में मेरी शादी हो जाएगी और तुरंत मैं गर्भवती हो जाऊँगी। शादी के तुरंत बाद ही गर्भ धारण से अंशुमन खुश नहीं था। "मुझे समझ में नहीं आता कि तुम गर्भनिरोधक गोलियाँ क्यों नहीं लेती हो।"
"मैंने अभी-अभी इन्हें लेना शुरू किया है, अंशुमन, और मेरी डॉक्टर ने कहा है कि इन्हें ठीक से काम करना शुरू करने में एक महीने का समय लगता है," मैंने माफी मांगी थी, जैसे कि यह सिर्फ मेरी गलती थी, जैसे कि वह खुद ही वह व्यक्ति नहीं था जिसने मुझे असुरक्षित छोड़ा था। अंशुमन को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे उसे मौत की सज़ा सुनाई गई हो। जैसे मैं अकेली ही माँ बन रही हूँ। मैं बहुत खुश थी। उसकी माँ बिल्कुल खुश नहीं थीं। उसका भाई मुझे देखते ही नफरत करने लगा था। उसके भाई की गर्लफ्रेंड, जो अब उसकी पत्नी है, ने मुझे लालची कहा था। सब यही सोच रहे थे (और दबी आवाज मेँ कह भी रहे थे) कि अमीर लड़के को फंसा कर उस घर मेँ शादी करने के बाद, मुझे डर था कि पति तलाक न दे, इसलिए मैं जान बूझ कर इतनी जल्दी माँ बन गई थी। मैंने यह सब इसलिए सहा क्योंकि मैं अठारह साल की थी, गर्भवती थी, डरी हुई थी, और पागलों की तरह प्यार में थी।
मैं सर्वश्रेष्ठ ‘श्रीमती अंशुमन राव-सिन्हा’ बनी, पति और बच्चों मेँ ही खो गई, अपनी पढ़ाई वगैरह के बारे मेँ बिल्कुल भूल गई। और अंशुमन – वह ऐसा पिता बना, जिस की कोई भी बच्चा कामना कर सकता हो। वह बच्चों से बहुत प्यार करता था, लेकिन मुझसे? हमारी दसवीं शादी की सालगिरह पर मैंने एक बेबी-सिटर रखा और एक फैंसी रेस्तराँ में रोमांटिक शाम और एक रात की योजना बनाई। उस रात मैंने पूछा - "क्या तुम मुझसे खुश हो?" उसका जवाब था "यही जीवन है, प्रियंका, जितना हो सके उतना खुश रहो।" मुझे लगा कि इसका मतलब यह है कि वह खुश नहीं है। मैंने फिर कभी इस बारे में बात नहीं की। उसने भी कभी अपनी बात को नहीं समझाया। इसके बजाय, मैंने उसे खुश करने के लिए खुद को और भी बेहतर पत्नी बनाने के लिए पूरी तरह लगा दिया।
खैर, गरीबी से आई प्रियंका सिंह, यह तो वैसा नहीं हुआ जैसा तुमने सोचा था, है न? मैं कार चलाते हुए अपने आँसू पोंछ रही थी। मैं उसे, या यहाँ तक कि खुद को भी, खुश रखने में कभी सफल नहीं हुई। हमारे बच्चे, जो बड़े होने तक मेरे थे, अब पूरी तरह अंशुमन के हो गए थे। मैं उन्हें फूटी आँखों नहीं सुहाती थी। जब मैंने शाश्वत को विश्वविद्यालय में फोन किया तो उसने मुझ पर चिल्लाते हुए कहा, "भगवान के लिए, ऐसी चिपकू मां बनना बंद करो।" और नीलिमा की सलाह थी - "मैं ठीक हूं, मां। आपको अपनी जिंदगी जीनी चाहिए और हमारी चिंता करना बंद कर देना चाहिए।" जब मैंने अंशुमन को बताया कि बच्चे मेरे साथ रिश्ता नहीं रखना चाहते, इस बात से मुझे कितना दुख होता है, तो उस ने इसे अनदेखा कर दिया, हमेशा की तरह। “प्रियंका, वे व्यस्त हैं; बस इतनी ही बात है।"
लेकिन वे उसके लिए तो व्यस्त नहीं होते थे, मैं सुन पाती थी कि वे फ़ोन पर बातें कर रहे हैं, या वीडियो कॉन्फ्रेंस पर हंसी मजाक कर रहे हैं। यहां तक कि जब वे आते, तो अंशुमन और बच्चे खाने की मेज पर बातें करते, जबकि मैं चुपचाप बैठी रहती, अपने परिवार को गर्व से देखती हुई, जैसे कि मैं उनके कितने करीब हूँ। अदृश्य रहने की आदत हो गई थी। और कुछ समय बाद यह आरामदायक हो गया, एक लबादे की तरह जिसे मैं अक्सर पहने रहती थी। हम काम के दौरान रात्रिभोज और पारिवारिक कार्यक्रमों में जाते थे, और मैं सही ढंग से कपड़े पहनती थी, जब मुझसे बात की जाती थी तो बोलती थी और बाकी समय दीवार पर लगे वॉलपेपर की तरह गायब हो जाती थी।
ओह, मैंने फुसफुसाहटें सुनीं। बहुत सी दबी आवाज़ें, कुछ सी उड़ाती हुई, कुछ तरस खाती हुई। चालीस साल की उम्र में अंशुमन एक खूबसूरत और अमीर आदमी था। अड़तीस की उम्र में मैं अपनी उम्र की दिखने लगी थी। मैंने डिजाइनर कपड़े खरीदना और पहनना सीख लिया था, सही तरीके से खाना खाने का तरीका सीख लिया था और खाने के साथ वाइन का मज़ा लेना सीख लिया था, लेकिन अंदर से मैं अभी भी गरीब झोंपड़ पट्टी की परवरिश में से आई हुई एक डरी हुई लड़की प्रियंका सिंह थी, वही झोंपड़ पट्टी जिसे कुछ साल पहले शहर ने स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होने के कारण तोड़ दिया था।
"अरे, वह बिस्तर मेँ अच्छी होगी। जानती हो न, वह किस गंदगी से आई है, सोचो कैसी होगी" .... "जरा सोचो तो, राव-सिन्हा का बेटा, झोंपड़ पट्टी के कचरे से शादी कर रहा है?" .... "वह उसके साथ कैसे रह पाता है? मैंने सोचा था कि वह अब तक उस झोंपड़ पट्टी वाली से आगे बढ़ गया होगा।" .... "तुम्हें पता है न कि उसने उसे फँसाया है? उसने अपनी माँ का विरोध कर के उससे शादी कर ली। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता वह गर्भवती हो गई। नहीं हुई होती तो वह तलाक न दे देता?" .... "वह उससे दूर जा रहा है, है न? मैंने सुना है कि किसी ने उसे मैरियट में...(किसी के साथ) देखा था।"
अफवाहों के अनुसार, मेरे पति का हमेशा किसी न किसी के साथ संबंध रहा है। मुझे इस पर कभी यकीन नहीं हुआ। मैंने अंशुमन से भी नहीं पूछा, क्योंकि ऐसा करना हमारी शादी का अपमान जैसा लगता। और पूछने का मतलब हो सकता था एक ऐसा जवाब सुनना जो मेरा दिल तोड़ सकता था। जब मेरी आँखें भारी हो गईं तो मैंने कार की खिड़की नीचे कर दी, ताकि ठंडी हवा मुझे जगा सके। मैंने साउंड सिस्टम की आवाज़ बढ़ा दी और जितना हो सके उतनी ज़ोर से गाना गाया। "सब कुछ खो दिया...." हाँ, मेरे लिए यह गाना बहुत उपयुक्त था, क्योंकि मैंने सब कुछ खो दिया था, ताकि खुद को पा सकूं।
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