ज़िंदगी अधूरी तेरे बिन - भाग दो (२ )
अंशुमन
उफ्फ़। मैंने फिर एक बार वही गलती कर दी।
मैं अपनी शादी की बीसवीं सालगिरह तक भूल गया। धिक्कार है मुझ पर। और काव्या को भी तो मुझे ऐसी बातें याद दिलानी चाहिए थीं। वह मेरी असिस्टेन्ट है, यह उसका काम है। लेकिन वह कार्यकारी सहायक है, निजी सहायक नहीं। फिर भी, मुझे उसे आगे के लिए यह बताना होगा। उसने मेरे बिजनेस के काम में मेरी इतनी मदद की, जो अमूल्य था, कि ऐसी बातों के लिए उसे कहना ठीक नहीं लगता था। यह मेरा निजी जीवन था, काम नहीं। जिस काम के लिए उसे नौकरी पर रखा गया था, वह काम उसने बहुत अच्छी तरह से किया है, और हमेशा करती रही है। मैंने हमारे ग्रुप चैट पर बच्चों को संदेश भेजा, उस ग्रुप पर जहां प्रियंका नहीं थी। क्या तुमने अपनी मां को हमारी शादी की सालगिरह पर बधाई दी?
शाश्वत: क्या आज शादी की सालगिरह थी?
नीलिमा: नहीं। पापा, आप भी भूल गए क्या?
तो क्या प्रियंका के अलावा किसी को भी हमारी सालगिरह याद नहीं रही थी? एक बार, जब मैं एक और सालगिरह से चूक गया था, तो मैंने अपनी शर्मिंदगी को यह कहकर छुपाया था कि ‘खराब विवाह वाले लोगों को ऐसे अवसरों को याद रखने और मनाने की ज़रूरत है, न कि हमें, जो एक बेहतरीन विवाह मेँ जी रहे हैं’ तब मैंने कुछ उपहार लेकर इसकी भरपाई की थी। उसके बाद भूलने का सिलसिला सा शुरू हो गया, मेरी तरफ से। वह कभी नहीं भूली, न कभी नाराज हुई। मुझे लगता है कि मैं इस बार भी ऐसा ही कर सकता हूँ।
मैं: हाँ। तुम्हारी माँ इंतज़ार कर रही थी, और मेरे पास नए प्रोजेक्ट मेँ संकट था।
शाश्वत: हुँह - कुछ नहीं होता पापा। माँ ठीक हो जाएंगी। उन्हें पता है कि आप व्यस्त हो।
नीलिमा: जब आप घर आए, तो क्या माँ परेशान लग रही थीं?
मैं: नहीं।
बच्चों की बातों मेँ माँ के दुख की कोई संवेदना नहीं दिखी, एकदम लापरवाह। क्या यह मेरी ही व्यस्तता और उपेक्षा का असर था कि मेरे बच्चे अपनी माँ के प्रति इतने बेपरवाह हो गए थे? बच्चे आपस मेँ सहमत थे कि फिर तो सब ठीक है। अगर वह परेशान होती, तो वह कुछ कहतीं। लेकिन मुझे तो पता था कि वह ऐसा नहीं करेगी, वह हमेशा की तरह ही शान्त रहेगी। वह कभी भी कुछ नहीं कहती थी। जब से हम पहली बार मिले थे तब से ही वह देने मेँ उदार रही थी, लेकिन अपने लिए कोई मांग नहीं करती थी। शुरुआत मेँ बस माँ और दिव्या के बुरे बर्ताव के बारे मेँ कहा करती थी, लेकिन मेरे पंद्रह-बीस बार अनदेखी कर देने के बाद उसने मुझसे कहना बंद कर दिया था। शायद अब उसे इससे कोई परेशानी भी नहीं थी। हमारी ज़िंदगी अच्छी रही थी। बेशक, पिछले कुछ महीने कंपनी को मिले नए कान्ट्रैक्ट की वजह से व्यस्त गुजरे, जिसकी वजह से मुझे बाहर जाना पड़ा, लेकिन ऐसा हर शादी में होता है। उसने बाहर काम नहीं किया, घर सम्हाल लिया। और मैंने अपना व्यवसाय किया, और इस तरह हमने अपनी ज़िंदगी अच्छी बिताई।
नीलिमा: अरे पापा, इतनी चिंता क्यों कर रहे हो? कुछ नहीं होता, चिंता मत करो। माँ को छोटे मोटे उपहार और गहने कुछ खरीद दो, वह ठीक हो जाएंगी। .... यह पढ़ कर मैं स्तब्ध रह गया। नीलिमा ने जिस तरह से लापरवाही और अनादर से यह कहा! हाँ, उसे गहने पसंद थे, लेकिन वह गहनों के पीछे नहीं भागती थी। उसने कभी अपने लिए कुछ नहीं खरीदा था। उसके पास जितने भी गहने थे, वे सब मेरी माँ या मुझसे मिले थे। लेकिन मैं नीलिमा को दोष नहीं दे सकता था। मैंने भी तो यही उपाय सोचा था।
मैं स्टडी छोड़कर अपने शयन कक्ष (बेडरूम) में गया। हमारा घर मुझे बहुत पसंद था। प्रियंका ने हमारे घर को इतना आरामदायक बनाया था। उस मकबरे जैसे मकान के ठीक उलट, जिसमें मैं बड़ा हुआ था, जहाँ कोई आराम से नहीं जी सकता था। जहां प्यार का कोई नामोनिशान नहीं था। यहाँ? यहाँ सब कुछ प्यार से और मीठी भावनाओं से घर जैसा एहसास देने के लिए बनाया गया था। मैंने शुरू में उसे सजाने देने से मना कर दिया था, क्योंकि मैं इंटीरियर डिजाइनर कंपनियों से कुछ ऐसा बनवाने का आदी था, जो हमारे धनवान समाज की फैशन पत्रिकाओं के पन्नों पर अच्छा लगे - लेकिन प्रियंका ने बहुत अनुरोध किया था। उसने अनुनय किया था कि हमारे घर की सजावट और देखभाल मैं उसे ही करने दूँ।
जब मैंने माँ को बताया था कि हम अपने नए घर के लिए उन के पसंदीदा इंटीरियर डिजाइनर का उपयोग नहीं करेंगे, तब उन्होंने कहा था "उसके लिए एकदम सख्त बजट बनाओ ताकि वह कुछ न कर पाए और परेशान हो जाए। फिर हार मान लेगी और तुम डिजाइनर को कान्ट्रैक्ट दे देना। जब उसे एहसास हो कि वह नहीं कर सकती, तो उससे मुझे फोन करने के लिए कहना।" अब सोच कर शर्मिंदगी हो रही थी – उन्हें फोन करे? जिससे वे उसे नीचा दिखा सकें, अपमानित कर सकें? मेरी माँ मुझसे साफ शब्दों कह रही थी कि ऐसा करो जिससे प्रियंका परेशान हो जाए, और मैं उनकी हाँ मेँ हाँ मिला रहा था। कैसा पति था मैं? जो मेरी मुस्कराहट के लिए जान न्योछावर करती थी, ऐसी पत्नी को परेशान करने के लिए मैं अपनी माँ से मिल कर उसका बजट कम करने की योजना बना रहा था? तब मुझे क्यों नहीं दिखा कि अपनी माँ को रोकना और उसके सुख की परवाह करना मेरा काम है?
मैंने माँ की बात मान कर प्रियंका को घर की सजावट के लिए एक कड़े बजट पर रखा। मुझे लगा था कि यह बहुत ही तंग है, वह ज़्यादा कुछ नहीं कर पाएगी, और हार मान लेगी। लेकिन प्रियंका तो उतने ही से खुश थी। "मुझ पर भरोसा करने के लिए धन्यवाद, अंशुमन। मैं तुम्हें निराश नहीं करूँगी।" उसने सच मेँ ही बिल्कुल निराश नहीं किया था। हमारा संसार कितना सुंदर सजाया था उसने! और मैंने एक बार भी उसकी तारीफ नहीं की थी।
ओह, मेरी माँ ने प्रियंका के घर को सजाने के “घटिया” और “सस्ते” तरीके के बारे में मुझसे शिकायत की थी, लेकिन मुझे तो वह पसंद आया था और मैंने उनसे इस बारे में बात न करने को कहा था। हो सकता है कि उन्होंने प्रियंका को इसके लिए परेशान करना जारी रखा हो, या छोड़ दिया हो, मैंने कभी जानने की कोशिश नहीं की। मुझे पता था कि माँ उसकी आलोचना के लिए कुछ न कुछ ढूँढ़ती ही रहती हैं, लेकिन मैंने कभी उसे अपनी माँ के तानों से बचाने के लिए कुछ नहीं किया था।
मैंने बेडरूम का दरवाज़ा खोला और अपनी देखा कि मेरी प्यारी प्रियंका हमेशा की तरह बिस्तर के मेरे तरफ मुँह करके लेटी हुई हमारे बड़े बिस्तर पर करवट लेकर सो रही है। जब हम जवान थे, तो वह तब तक जागती रहती थी जब तक मैं सोने न आ जाता। "मुझे ऐसे सोना अच्छा लगता है," वह अपना सिर मेरे कंधे पर रखकर और अपनी बाहें मेरे चारों ओर डालकर कहती थी। कितने समय से हम एक ही समय पर सोने नहीं गए थे? कितने समय से मैं उसके साथ नहीं सोया था? मैं बिस्तर पर बैठ गया और पर्दे के बीच से छनकर आ रही चाँदनी में उसका चेहरा देखा। नींद मेँ डूबी हुई वह कितनी सुंदर लग रही थी – और कितनी उदास भी! मैंने एक उंगली से उसके गाल को छुआ। उसकी त्वचा हमेशा की ही तरह मुलायम और नम थी। क्या आंसुओं की नमी थी? वह अभी भी उतनी ही खूबसूरत थी जितनी वह सालों पहले थी जब मैं उसके प्यार में पड़ गया था। वह अपनी नींद में हिली और कंबल नीचे खिसक गया। मैं उसकी नींद की कमीज़ के नीचे उसके जिस्म के आकार को देख सकता था। मैं एक पल में ही उत्तेजित हो गया। बीस साल, और वह मुझे ऐसे ही चाहने पर मजबूर कर सकती थी। अगर मैं उसे जगाता, तो वह मेरे पास आ जाती, मुझे उससे प्यार करने देती। उसने कभी, कभी भी, एक बार भी, मना नहीं किया।
कभी नहीं? हाँ, कभी नहीं। वह हमेशा अपनी थकावट, अपनी जरूरत, अपनी हर चीज को मेरी इच्छा, मेरी जरूरत के पीछे ही जगह देती थी। हमेशा। मैं मानसिक रूप से खुद को उन दोस्तों से नहीं जोड़ पाता था, जिनकी पत्नियाँ सिरदर्द का बहाना करती थीं या अपनी शादी में सेक्स को अपनी मांगें पूरी करने के लिए मोल-तोल का ज़रिया बना लेती थीं। लेकिन प्रियंका के साथ ऐसा नहीं था। वह प्यारी और कामुक थी। जब हम प्यार करते, तो वह फुसफुसाकर कहती, "मैं तुमसे प्यार करती हूं, मेरे प्यारे अंशुमन"। जब वह मुझसे कहती कि वह मेरी है, या मुझसे कहती कि मैं उसका हूं, कि वह मुझसे प्यार करती है, तो यह बात मुझे बहुत उत्तेजित कर देती थी। काश, मैं अभी उसके साथ सो पाता, लेकिन मुझे शहर के योजनाकारों के साथ कल होने वाली एक बैठक की तैयारी करनी थी। जैसा कल का कार्यक्रम था, मैं भाग्यशाली थी कि मुझे कुछ घंटे सोने का मौका मिल गया।
मैंने अपने होंठ उसके माथे पर रगड़े, और वह नींद मेँ बोली, "म्म्म, मैं तुमसे प्यार करती हूँ, मेरे प्रिय अंशुमन।" लानत है मुझ पर! वह यह बात अपनी नींद में भी कह रही थी, जब मैं अपनी बीसवीं शादी की सालगिरह तक भूल गया था। वह अपना दिल खोलकर मुझे अपना प्यार बताने में खुश थी, और मुझे वह सब कुछ देती थी जिसकी मुझे ज़रूरत थी या जो मैं चाहता था। आखिरी बार कब मैंने उसे कहा था कि मैं उससे प्यार करता हूँ? हमेशा। मैं हमेशा कहता था, है न? फ़ोन कॉल के बाद या... बेशक, मैं कहता रहता हूँ। लेकिन पिछली बार हमने फोन पर कब बात की थी? हम एक गले मिलने वाला परिवार थे जो एक दूसरे से ‘आई लव यू’ कहते थे। बस अभी याद नहीं आ रहा था।
मैं एक रूढ़िवादी परिवार में पला-बढ़ा हूँ, जहां कोई गर्मजोशी नहीं दिखाता, सब अनुशासन से रहते हैं। लेकिन प्रियंका ने हम सभी को गले लगना, चूमना और एक-दूसरे से प्यार करना, और एक दूसरे से यह कहना सिखाया था। शुरू में, मैंने विरोध किया, "अगर हम हर समय यह कहते रहेंगे, तो इसका कोई महत्व नहीं रह जाएगा।"
"नहीं, मेरे प्यारे अंशुमन, प्यार और भी गहरा होता जाएगा। मैं वादा करती हूँ।" वह सही थी।
उफ्फ़! मैं एक और सालगिरह भूल गया था। मुझे इसकी भरपाई करनी थी। नीलिमा प्रियंका और गहनों के बारे में चाहे जो भी सोचती हो, मुझे बेहतर पता था। मैं अपने बिजनेस के कुछ सौदे निपटाने के तुरंत बाद उसके साथ एक यात्रा की योजना बनाऊँगा। छुट्टियों की योजना के बारे में सोचते हुए मैं मुस्कराया। कुछ ही समय में बच्चे दीपावली के लिए घर आएंगे, और प्रियंका वही करेगी जो वह हमेशा करती थी, हमारे घर को त्यौहार की खुशबू और स्वाद से भरा एक आरामदायक स्वर्ग बना देगी। उसे साल का यह समय बहुत पसंद था और उसने इसे हम सभी के लिए हमेशा खास बनाए रखा।
मैंने अपने अध्ययन कक्ष (स्टडी) की ओर जाते हुए सोचा कि दीपावली के बाद हम स्विट्जरलैंड जा सकते हैं। हम उस होटल में ठहर सकते हैं जिसे मैंने डिज़ाइन किया था। मुझे क्लाइंट से मिलने और प्रियंका के साथ छुट्टियाँ बिताने, दोनों का मौका मिलेगा। इसी बीच वहाँ मैं कुछ मीटिंग्स में शामिल हो जाऊँ और वह स्पा जाए तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी। हाँ, यही करूँगा, मैंने निर्णय लेकर काव्या को एक ईमेल भेजा, जिसमें उसने मुझे मेरे शेड्यूल मेँ दीपावली के बाद कुछ ऐसी तारीखें देने को कहा, जो छुट्टियों के लिए उपयुक्त हों।