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शनिवार, 26 नवंबर 2011

आग और धुंआ


यह कहानी भी मेरी नहीं है - कही पढ़ी है ....

एक जहाज  समुद्र में डूब गया - उसमे से एक आदमी किसी तरह तैर कर एक छोटे से द्वीप पर पहुँच गया | वह इश्वर से प्रार्थने करता रहा की कोई उसे बचाने आये पर कुछ हुआ नहीं ...

बेचारे ने किसी तरह लकड़ियाँ जोड़ कर धूप और बारिश से बचने के लिए एक छोटी सी झोपडी बना ली | लेकिन एक दिन वह जब खाने के लिए कुछ कुछ ढूंढ कर लौटा - तो उसकी झोपडी जल रही थी .... वह रो पड़ा और उसने इश्वर से कहा की तू मेरे साथ ऐसा कैसे कर सका?

जब अगले दिन की सुबह उसकी नींद खुली - तो एक जहाज की आवाज़ से - जो उसे बचाने आया था - 

उसने पूछा - तुम्हे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ?
जवाब मिला - तुम्हारे धुंए के संकेत से .....

इसलिए - विश्वास रखो - कैसी भी परीक्षा की घडी क्यों न हो - उसे भगवान् का कोई संकेत समझो ....

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