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रविवार, 27 नवंबर 2011

काम वाली बाई

हमारे घर में झाड़ू पोछा और बर्तन करने एक काम वाली बाई आती है... अमूमन ज्यादातर भारतीय मध्यम वर्गीय परिवारों में ऐसी कोई न कोई मालती, चंपा, कस्तूरी , लक्ष्मी होती ही है... ज्यादातर की कहानी भी एक सी ही होती है ... वही गरीबी, वही मजबूरी, वही सपने... तो मैं आज उसकी कहानी कहती हूँ... नाम नहीं लूंगी ....वैसे नाम से कोई फर्क नहीं पड़ता ... ये कहानी थोड़े से फेर बदल के साथ कई ऐसी लड़कियों पर ठीक ही बैठती है!! पर बिना नाम के कहानी आगे कैसे बढे ? तो - इस कथानक के लिए हम उसे लक्ष्मी कह लें ......


तो लक्ष्मी मेरे यहाँ करीब करीब तीन साल से काम कर रही है... बहुत अच्छी है , दिखने में भी अच्छी ही है, और बातचीत तो बहुत ही हंस हंस कर करती है .... उसे देख कर या उससे मिल कर कोई नहीं कह सकता कि उसे दुःख या दर्द का कोई अनुभव होगा भी .... मेरी ज्यादातर सहेलियों के घर काम करने वाली बाइयों से अलग, वो छुट्टी तो बहुत ही कम करती है.... होली दिवाली भी काम पर एक वक़्त तो आ ही जाती है, शाम को नहीं आती.... उम्र होगी कुछ २४ - २५ साल , पर चेहरे पर मासूमियत है - हंसमुख है न!! हाँ, रंग ज़रूर कुछ दबा हुआ है - तो कभी कुछ कभी कुछ प्रयोग चलते ही रहते हैं.... हमारे मोहल्ले में कुछ ६-७ घरों में काम करती है - सुबह करीब ७:३० बजे जो यहाँ आती है - तो दोपहर के करीब १ बज जाते हैं उसे वापस जाते हुए....साथ ही उसकी माँ भी आती है - वह भी ४-५ घरों काम करती है - फिर दोनों साथ घर जाती हैं ....

लक्ष्मी का एक बेटा भी है - होगा कुछ ६-७ साल का .... पहले किसी ट्यूशन जाता था, पिछले साल से स्कूल जाने लगा है .... उसे मुन्ना कहूँगी मैं यहाँ - कहने कि ज़रुरत नहीं कि ये उसका असली नाम नहीं है..... तो लक्ष्मी चाहती है कि बेटा खूब पढ़े, उसके लिए वह कितनी भी मेहनत करने को तैयार है!!! स्कूल से आने के बाद बेटा फिर ट्यूशन जाता है - क्योंकि बेचारी माँ और नानी तो खुद ही नहीं पढ़ी हैं कुछ - उसे कैसे पढाएं? शाम को ५:३०  बजे के बाद वह उसे ट्यूशन छोडती है - फिर यहाँ आकर कुछ घरों में शाम के काम .... ७ बजे उसे ले जाने के वक़्त यहाँ से हो कर गुज़रती है - जब कभी सड़क से गुज़रती दिखे - हंस देती है.... कभी कभी बच्चा थक कर उनींदा सा हो जाता है - तो माँ की गोद में चढ़ जाता है - है तो बेचारा पतला दुबला सींक सा ही , पर आखिर ट्यूशन से घर का रास्ता कुछ डेढ़ किलोमीटर का तो होगा - इतनी दूर बच्चे को गोद में ले जाना - कोई हंसी खेल तो  नहीं है न !!! हम लोग तो अपने बच्चों को गोद में उठा कर बहुत कम चलते हैं.... पहले तो प्रैम्स, फिर स्कूटर या कार तो ज्यादातर लोगों के पास होती ही है ..... पर इन लक्ष्मी और माल्तियों के पास तो अपने पैरों कि ही गाड़ी है.... पिछले साल मेरे बेटे ने नयी साइकिल खरीदी - तो उसने पुरानी वाली ले ली - वह भी हज़ार रुपये देकर, मुफ्त में लेने में उसका स्वाभिमान सामने आता था!! पर शाम को लौटने तक अँधेरा अपना पर्दा फैला देता है - तो शाम को साइकिल ला नहीं पाती, पैदल ही आती जाती है ....

मैं सोच रही थी एक दिन - हम लोगों से तो अपने एक घर का काम अपने हाथ से नहीं होता, बाई रख लेते हैं - ये कैसे इतने घरों का काम कर लेती हैं!! सुबह ७ बजे घर छोडती होगी, उससे पहले घर में पानी भरना आदि काम तो होते ही होंगे न? फिर १:३० - २ बजे घर लौट कर खाना वगैरह पकाना, फिर बच्चे के साथ दुबारा लौटना आदि.... और कमाई कितनी होती होगी - ६-७  हज़ार रूपया महीना - माँ बेटी कि मिली जुली कमाई.... और जिन घरों में ये बेचारियाँ काम करती हैं - क्या वे कभी ख़ुशी से इनकी पगार बढ़ाएंगे? एक दिन मैंने पूछा - मुन्ना के पापा क्या करते हैं - तब वह नयी नयी आई थी - मैं कुछ जानती नहीं थी उसके बारे में - तो बोली - "ಎಲ್ಲಿ ಅಕ್ಕ - ಅವರು ನಮ್ಮ ಜೋಡಿ ಇಲ್ಲ - ಹಳ್ಳಿ ಊರ ಅಲ್ಲಿ ಇದಾರೆ - ನಮ್ಮಿಗೆ ಬಿಟ್ಟ ಬಿಟ್ಟರೆ - ನಾನ್ ಇಲ್ಲಿ ನಮ್ಮ ಅಮ್ಮ ಮನೆ ಗೆ ಇರ್ತೀನಿ " (कहाँ दीदी , वह मेरे साथ नहीं हैं - गाँव में रहते हैं - मुझे छोड़ दिया है - मैं यहाँ अपनी अम्मा के घर में रहती हूँ ) तब पता चला कि जिस हँसते चेहरे को मैं रोज़ देखती हूँ - वह अपने अन्दर क्या छुपाये है.....

अब तो उसके पति ने दूसरी शादी भी कर ली है - फिर भी बेचारी की आशा गयी नहीं है - अभी भी वह समय समय पर यहाँ आता है - तो लक्ष्मी के चेहरे पर बहार खिल उठती है - हर बार बेचारी नए प्रयोग करती है - कभी हल्दी रगडती है चेहरे पर - तो कभी मुझसे फेएर एंड लवली की ट्यूब मंगवाती है - वह आकर दो चार मीठी मीठी बातें करता है - फिर छोड़ जाता है -और इसका चेहरा फिर हो जाता है पहले की तरह - उस ही समय ये २-१  दिन की छुट्टी भी करती है - वैसे तो कहो भी कि अभी तुझे बुखार है - दो दिन घर में आराम कर ले - तो कहती है - घर काटने आता है - यहाँ काम करते वक़्त गुज़र जाता है - घर में तो टाइम जाता ही नहीं .... वह न कभी इसके लिए, न ही अपने बच्चे के लिए कुछ लाता है - बस मेहमान कि तरह खातिर करा कर चला जाता है .... कभी निशानी भी छोड़ जाता है - तो फिर लक्ष्मी डोक्टर के चक्कर लगाती रहती है पीछा छुड़ाने के लिए

... कहती है - एक ही बच्चा मैं किसी तरह पाल रही हूँ - एक और आ गया तो कैसे काम होगा - हम सब समझाते हैं कि उससे न मिला कर - या कुछ समझ से काम ले .... पर वह हर बार आने से पहले इसे बातों से मना लेता है - और ये फिर से साथ घर बसाने के सपने देखने लगती है .... "ಅಕ್ಕಾ , ಇವರು ಅಕ್ಕಿ ಜೊತಿಗೆ ಖುಷಿ ಇಲ್ಲ - ಅಕ್ಕಿ ಗೆ ಬಿಟ್ಟ ಈಗ ಇಲ್ಲಿ ಇರ್ತಾರೆ - ಇಲ್ಲೇ ಮನೆ ಮಾಡ್ತಾರೆ - ಕೆಲಸ ನು ಹುದುಕಾರೆ - ಈಗ ನಾವು ಜೊತಿಗೆ ಇರ್ತಿವಿ" (दीदी , ये उसके साथ खुश नहीं हैं - अब उसे छोड़ कर ये मेरे साथ यही रहेंगे , यहाँ काम भी ढूंढ लिया है - यही घर बना कर हम सब साथ रहेंगे )  और दो दिन बाद ही उसका सपना फिर टूट जाता है - वह शहर जिस काम से आया हो - वो पूरा होते ही गाँव लौट जाता है  ......... तो पतिदेव को यहाँ लोज का खर्चा बच जाता है - पत्नी सुख भी मिल जाता है - और घर का पका हुआ खाना भी - फिर लौट जाता है अपनी दूसरी पत्नी के पास (वहां भी वह बेचारी इसी धोखे में खुश रहती होगी कि पति मेरे साथ है - उसे क्या पता कि शहर में पति ये गुल खिला रहा है!!! )  ... और लक्ष्मी फिर काम पर आने लगती है..... दो तीन दिन बहुत उदास रहती है - फिर हंसने बोलने लगती है ... और सब पहले की ही तरह चलता रहता है....

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