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बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

नवरात्र व्रत कथा : देवी कथाएँ 1


यह कहानी मेरी नहीं है ।

यह नवरात्र व्रत कथा व्रत करने वाले लोग आपस में एक दूसरे से कहते हैं । कहते हैं कि यह कथा बृहस्पति जी के पूछने पर ब्रह्मा जी ने उन्हें सुनाई थी

पीठत नाम के गाँव में अनाथ नामक एक ब्राह्मण रहता था । अवह भगवती दुर्गा का भक्त था और रोज़ उनकी पूजा मिया करता था । उस ब्राह्मण की सुमति नामक एक बेटी थी , जो रोज़ पिता की पूजा में शामिल होती थी।

एक दिन अपनी सहेलियों से खेलने लगी और समय का भान न होने से पूजा में नहीं आई । इस बात पर पिता अत्यधिक क्रुद्ध हुए, और उसे कहा, की हे दुष्ट पुत्री, तूने आज भगवती का पूजन नहीं किया, जिसके लिए मैं किसी कुष्ठी दरिद्र से तेरा ब्याह करूंगा ।

सुमति को बहुत दुःख हुआ, और उसने कहा, हे पिताजी, आपकी कन्या होने से मैं सब तरह से आपके अधीन हूँ । आप जिससे चाहें मेरा ब्याह कर सकते हैं, किन्तु होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा होगा । यह सुन कर पिता का क्रोध और बढ़ गया , जैसे आग में सूखे तिनके पड रहे हों  हो । उसने बेटी का ब्याह एक दरिद्र कुष्ठ रोगी से कर दिया ( यह कथा में है ) ।

वह रात उन दोनों ने जंगल में बड़े दुःख तकलीफ से गुजारी । उसकी ऐसी दशा देख भगवती पूर्व कर्म प्रताप से प्रकट हुईं , और उस से कहा, कि हे दीन ब्राह्मणी, मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ, जो माँगना हो मांग ले । सुमति के पूछने पर देवी ने बताया की मैं ही आदि शक्ति माँ हूँ, ब्रह्मा, विद्या और सरस्वती हूँ । तुझ पर मैं पूर्व जन्म के पुण्य से प्रसन्न हूँ ।

पिछले जन्म में तू निषाद की स्त्री थी, और अति पतिव्रता थी । एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की , और सिपाहियों ने तुम दोनों को जेलखाने में बंद कर दिया । वहां उन्होंने तुम दोनों को खाने को भी न दिया । तब नवरात्र  के दिन थे , और तुम दोनों का नौ दिन का व्रत हो गया। उस व्रत के प्रभाव से मैं तुम्हे मनोवांछित वास्तु दे रही हूँ, मांगो । तब सुमति ने अपने पति को स्वस्थ्य करने की कामना की । देवी ने उसे एक दिन के व्रत के प्रभाव को अर्पित करने को कहा, और सुमति ने "ठीक है" कहा । तुरंत ही उसका पति निरोगी हो गया और उन दोनों ने देवी की अत्यधिक स्तुति की । इसके पश्चात "उदालय"नामक पुत्र शीघ्र प्राप्त होने का आशीष देकर और व्रत विधि बता कर देवी अंतर्ध्यान हो गयीं । 

23 टिप्‍पणियां:

  1. यह कथा पहली बार जानी।
    नवरात्रि पर्व की आपको हार्दिक शुभकामनायें।

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    1. ओह - मैं तो सोचती थी कि शायद सब जानते होंगे ...aapko bhi shubhkaamnaayein

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  2. माफ़ कीजियेगा किसी की धार्मिक भावनाओ को ठेस नहीं पहुचना चाहती हूँ किन्तु आज तक जितने भी व्रत कथा पढ़ी है सब के सब बहुत ही बेकार लगे है मुझे , सब में बस एक बात ही बताया जाता है की व्रत करो डरो नहीं तो तुम्हारा नुकशान होगा और व्रत भी ठीक से नहीं रखा तो भी नुकशान होगा , पूजा के बिच से चले गए तो भी नुकशान होगा पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण न करना भी नुकशान दिलाता है । इन कथाओ को पढ़ कर आभास होता है की कुछ धर्म के नाम पर अपनी रोजी रोटी कमाने वालो ने इन कथाओ का निर्माण किया है ताकि लोगो को डरा कर कुछ खास व्रत पूजा और उसके दुनिया जहाँ के आडम्बर किये जाये ताकि उनका धंधा चलता रहे इन में से ज्यादातर में कही भी सच्चे मन से बस श्राद्ध की बात नहीं होती है सब में कर्मकांड की ही बात होती है । कुछ बाते हमारे यहाँ प्रचलित है "जीतनी शक्ति उतनी भक्ति" ( शरीर रहेगा तो भक्ति भी होती रहेगी ) " पहले भोजन फिर भजन" ( पेट भरा रहेगा तो मन भी भजन पूजन में लगेगा ) " मन चंगा तो कठौती में गंगा " ( मन में श्रधा और सच्चाई होनी चाहिए वही सबसे बड़ी बात है )

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    1. जी अंशुमाला जी - आभार । अपनी अपनी रूचि, अपना अपना विश्वास, अपनी अपनी विश्लेषण |

      - मैं निजी तौर पर आपकी टिपण्णी में दी गयी हर एक बात से असहमत हूँ, परन्तु व्यर्थ बहस नहीं करना चाहूंगी|

      wish you a happy festival

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    2. जैसा की आप ने कहा की सभी की अपना अपना विश्वास, है और मै भी ऐसा ही मानती हूँ , एक दो मौको को छोड़ दूँ तो बहस मै भी नहीं करती हूँ , और यहाँ भी आप से किसी बहस या जवाब की उम्मीद में टिप्पणी नहीं की बस अपने विचार भर रखे थे , मै जब इस कथा से असहमत हो सकती हूँ तो आप भी मुझसे असहमत हो सकती है ।

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  3. नवरात्र कथा के लिए आभार !कुछ पुण्य कथा श्रवण में भी होता है -कृष्ण महराज भी कह गए हैं!
    लोक कथाओं को सहजता के साथ जस का तस प्रस्तुत करना चाहिए न कि किसी दावात्याग की मनोभावना लिए ,औचित्य स्पष्ट करते हुए :-)
    अब यह पाठक पर निर्भर करता है कि उसका बौद्धिक स्तर क्या है और वह किस तरीके से कथा को आत्मसात करेगा ......
    रूपसी कन्यायों को ऐसे क्रोधातिरेक के सामना और श्राप की अनेक कथाये हैं -च्यवन और कण्व ऋषि के श्राप की सुधि हो आयी ....
    इनके निहितार्थों और मूल संदेशों पर चर्चा फिर कभी!अभी किया तो तांडव शुरू हो जाएगा :-)

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    1. जी सर ।
      @ दावात्याग ....
      मेरे लिए यह आवश्यक है । क्योंकि ये सिर्फ लोक कथाएँ भर नहीं हैं, ये धर से जुडी हैं । दावात्याग तो इन कथाओं में हर वाचक हर श्रोता से करता है - कि जैसे - रामायण जी में (काक्भुशुण्डी जी अपने श्रोताओं से कहते हैं) कि (शिव जी ने पार्वती जी से कहा) कि (श्री अनुसूया जी ने श्री सीता जी से कहा) कि ..... :) कथाएँ मेरी नहीं हैं, और इतनी ऊंची हैं, कि उन्हें सुनाने का प्रयास भी धृष्टता है ।सो दावात्याग तो आवश्यक है न ?

      वैसे भी मैं लेखिका नहीं हूँ, मुझे कथानक बनाने आते नहीं । existing कथानक को अपने शब्दों में कहना ज़रूर आता है - तो दावात्याग अति आवश्यक है ।

      @ निहितार्थों और मूल सन्देश ...
      समझने के लिए उतना ज्ञान और विश्लेषण क्षमता आवश्यक है । पूर्वग्रह से मुक्त होना आवश्यक है, हर एक को अपना शत्रु और हर कथावाचक / लेखक को किसी केटेगरी में रखने से मानसिक मुक्ति आवश्यक है । तो यह चर्चा यहाँ होना तो बस उसे बहस बना देना होगा । इतना तो हिंदी ब्लॉग जगत के बारे में जान ही चुकी हूँ । एक साल से ऊपर हो गया है यहाँ मुझे :)

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  4. अति सुंदर कथा..आभार इसे पढवाने के लिए..

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  5. क्या संदेह कि व्रत कथाएँ व्रत का औचित्य सिद्ध करने प्रेरित करने के उद्देश्य से होती है। किन्तु सत्य है कि व्रत किसी का अहित किए बिना अपने सामर्थ्य से पुण्योपार्जन और मलीन कर्मों के विखण्डन प्रयोजन से होते है। तप में उत्थापन आयोजन प्रदर्शन गैर जरूरी है जो करते है कौन रोक सकता है। किन्तु गलत रीतियां पड जाने से तप व्रत आदि की उपयोगिता और अप्रत्यक्ष समाज को योगदान कम नहीं हो जाता।

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  6. इस अनुपम कथा को साझा करने का आभार ... नवरात्रि पर्व की अनंत शुभकामनाएं

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    1. सदा जी - यहाँ आपका स्वागत है । आपको भी नवरात्रि पर्व की शुभेच्छाएं

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  7. कथा पढकर अच्छा लगा.
    नई जानकारी भी हुई कथा के बारे में.
    आभार.

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  8. Dr. Arvind Mishra has commented:

    arvind mishra ने आपकी पोस्ट " happy navratri devi story 1 " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    इन लोक कहानियों से लोक कल्याण की की जो सीख मिलती हो उनका भी उल्लेख हो तो पर्व, कहानी का औचित्य स्पष्ट हो सके अन्यथा ये कहनियाँ समकालीन परिप्रेक्ष्य में निरी मूर्खाताभरी ,अंधविश्वासपूर्ण बनी रहेगीं

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  9. ऐसे अहंकारी पिता, जिसे क्षमा छू कर भी नहीं गयी थी और जिसने मात्र अपने अहम् की तुष्टि के लिए अपनी बेटी के जीवन की बलि दे दी उसका क्या हुआ ये भी पता चलता तो अच्छा था। बाकी अरविन्द जी से सहमत हूँ।

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  10. बहुत अच्छी सामयिक प्रस्तुति।
    नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाएं!

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