यह कहानी है एक कछुए की |
सुना है की बेचारे ने प्रभु चरणों की महिमा सुनी और उन चरणों मे जाना चाहा | तो पूछने लगा सबसे - कहाँ जाऊं कहाँ जाऊं ? ( मुझसे कहानी को रेश्नलाइज़ नहीं किया जाएगा - यह कहानी है भक्ति और विश्वास की - हर बार इसे सोच कर आँखें और दिल दोनों भर आते हैं - सोचा - इस बार आपको भी रुलाऊँ ? )
तो पूछने लगा सबसे - परन्तु किसी को कुछ पता ही न था की जाना कहाँ है प्रभु चरण ढूँढने ?
वह खोजता रहा, खोजता रहा -आखिर एक दिन उसे कोई भक्त मिला - जिसने उस नन्हे को अनन्त क्षीर सागर में जाने को कहा - और वहाँ की राह भी सुझाई | एक तो बेचारा ठहरा कछुआ - कछुए की चाल से ही चल पड़ा | चलते चलते - चलते चलते .... सागर तट तक भी पहुँच ही गया - फिर तैरने लगा | बढ़ता गया - बढ़ता गया ....
और
आखिर
पहुँच गया वहां
जहां प्रभु शेष शैया पर थे - शेष जी उन को अपने तन पर सुलाए आनन्द रत थे और लक्ष्मी मैया भक्ति स्वरूप हो प्रभु के चरण दबा रही थीं |
कछुए ने प्रभु चरण छूने चाहे - पर शेष जी और लक्ष्मी जी ने उसे ऐसा करने न दिया - बेचारा तुच्छ अशुद्ध प्राणी जो ठहरा (कहानी है - असलियत में प्रभु इतने करुणावान हैं - तो उनके चिर संगी ऐसा कैसे कर सकते हैं? )
बेचारा - उसकी सारी तपस्या - अधूरी ही रह गयी |
प्रभु सिर्फ मुस्कुराते रहे - और यह सब देखते नारद सोचते रहे किप्रभु ने अपने भक्त के साथ ऐसा क्यों होने दिया?
फिर समय गुज़रता रहा, एक जन्म में वह कछुआ केवट बना - प्रभु श्री राम रूप में प्रकटे, मैया सीता रूप में और शेष जी लखन रूप में प्रकट हुए | ................. प्रभु आये और नदी पार करने को कहा - पर केवट बोला ........... पैर धुलवाओगे हमसे , तो ही पार ले जायेंगे हम , कही हमारी नाव ही नारी बन गयी अहिल्या की तरह , तो हम गरीबों के परिवार की रोटी ही छिन जायेगी | ............ और फिर शेष जी और लक्ष्मी जी के सामने ही केवट ने प्रभु के चरण कमलों को धोने, पखारने का सुख प्राप्त किया ... |
और समय गुज़रा ...
कछुआ अब सुदामा हुआ - प्रभु कान्हा बने , मैया बनी रुक्मिणी और शेष जी बल दाऊ रूप धर आये |
दिन गुज़रते रहे - और एक दिन सुदामा बना वह नन्हा कछुआ - प्रभु से मिलने आया |
धूल धूसरित पैर, कांटे लगे, बहता खून , कीचड सने ..............और क्या हुआ ?
प्रभु ने अपने हाथों अपने सुदामा के पैर धोये , रुक्मिणी जल ले आयीं, और बलदाऊ भी वहीँ बालसखाओं के प्रेम को देख आँखों से प्रेम अश्रु बरसाते खड़े रहे .... |
हरि अनन्त , हरि कथा अनन्ता ........
हरि बोल ....
हरि बोल!
जवाब देंहटाएंJay Shreeram . Very nice katha. Thank you. You can see my blog if you want to do so . It is www.vyakhya.org
जवाब देंहटाएंGreat...i just visited your blog !
हटाएंGreat...another must visitable blog: innocentarticles.wordpress.com
जवाब देंहटाएं