एक बार एक महात्मा को कोई बड़ी गालियाँ और अपशब्द बोल गया | पर वे परेशान न हुए - अपने काम में लगे रहे |
उस व्यक्ति के जाने के बाद महात्मा के क्रोधित शिष्य कहने लगे - वह आप पर इतना कह गया - और आपने न खुद कुछ किया न हमें कुछ कहने दिया | तब वे बोले - कोई तुम्हे कुछ उपहार दे, तुम उसे न लो - तो वह तुम्हारा नहीं होता, उसी के पास रह जाता है - चाहे वह रख ले , या फेंक दे - या किसी और को दे दे |
शाम को उसे उसके दोस्तोंने समझाया - और वह पछताने लगा | अगले दिन बड़ा लज्जित हो कर उनके पास पहुंचा - और माफ़ी मांगी | महात्मा बोले - माफ़ी किस बात की ? यह जो नदी बह रही है - यह कल यह नहीं थी जो आज है - पूरा पानी जा चुका है, नया पानी है - जो लगातार जाता जा रहा है | वैसे ही - तुम जो आज माफ़ी मांगने आये हो - वह व्यक्ति नहीं ही हो जो कल अपशब्द कह रहे थे - वह व्यक्ति अब नहीं है यहाँ | तुम अब एक दूसरे व्यक्ति हो | अब जो कर रहे हो - वही तुम हो |
यही है जीवन - बह जाने दो जो कल हुआ | आज में जियो |
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