कई बार लोग पूछते हैं - यह गीता में बार बार "निष्काम कर्म" की बात क्यों होती है ? अर्जुन भी कई बार पूछता रहा कृष्ण से - यदि फल की इच्छा न हो, तो कोई कर्म करेगा ही क्यों? तो इस सन्दर्भ में यह कहानी बहुत सुन्दर है ....
एक नाई किसी के बाल बना रहा था | तभी फकीर जुन्नैद वहां आ गए और कहा " खुदा की खातिर मेरी भी हजामत कर दे " | तो नाई ने अपने गृहस्थ ग्राहक से कहा - "माफ़ कीजिये - मैं कुछ देर बाद आपकी सेवा फिर करता हूँ, खुदा की खातिर मुझे इस फकीर की सेवा पहले करनी चाहिए ..." फिर उस ने पहले जुन्नैद को बड़ी इज्ज़त के साथ बैठकर उनका काम किया, और उन्हें प्रेम से विदा किया, तब अपने ग्राहक की सेवा की|
कुछ दिन बाद जुन्नैद को कही से कुछ पैसे मिले - तो वे नाई को पैसे देने गए | उसने कहा - "आपको शर्म नहीं आती ? आपने खुदा की खातिर कहा था - पैसों की खातिर नहीं "
जुन्नैद हमेशा अपने शागिर्दों से कहते रहे - निष्काम ईश्वर भक्ति मैंने उस नाई से सीखी है ...
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