(1) गिलहरी की पीठ पर धारियां देखीं आपने?
इनके बारे में एक बड़ी ही प्यारी कहानी सुनी है मैंने - आप में से कुछ लोगों ने शायद सुनी होगी - पर यहाँ शेयर करने को जी चाहा मेरा ... तो कहानी पेश है -
जब श्री राम अपनी पत्नी व अनुज के साथ वन वास पर थे - तो रास्ते चलते हर तरह के धरातल पर पैर पड़ते रहे - कहीं नर्म घास भी होती, कहीं कठोर धरती भी, कही कांटे भी | ऐसे ही चलते हुए श्री राम का पैर एक नन्ही सी गिलहरी पर पडा - और वे ना जान पाए कि ऐसा हुआ है (यह सिर्फ एक कहानी है - हकीकत में तो प्रभु को कोई बात पता ना चले - यह संभव ही नहीं है | ) श्री राम के चरणों को कठोर धरती की अपेक्षा मखमली सी अनुभूति हुई - तो उन्होने एक पल को अपना चरण टेके रखा - फिर नीचे की ओर देखा तो चौंक पड़े |
उन्हें दुःख हुआ कि इस छोटी सी गिलहरी को मेरे वजन से कितना दर्द महसूस हुआ होगा | उन्होंने उस नन्ही गिलहरी को उठा कर प्यार किया और बोले - अरे - मेरा पाँव तुझ पर पड़ा - तुझे कितना दर्द हुआ होगा ना?
गिलहरी ने कहा - प्रभु - आपके चरण कमलों के दर्शन कितने दुर्लभ हैं - संत महात्मा इन चरणों की पूजा करते नहीं थकते - मेरा सौभाग्य है कि मुझे इन चरणों की सेवा का एक पल मिला - इन्हें इस कठोर राह से एक पल का आराम मैं दे सकी | [**********इस से याद आया -- अगली कहानी प्रभु चरणकमल , कछुए, केवट और सुदामा की होगी ****************]
प्रभु ने कहा - फिर भी - दर्द तो हुआ होगा ना ? तू चिल्लाई क्यों नहीं ?
गिलहरी बोली - प्रभु , कोई और मुझ पर पाँव रखता, तो मैं चीखती "हे राम!! राम राम !!! " , किन्तु , जब आप का ही पैर मुझ पर पडा - तो मैं किसे पुकारती?
श्री राम ने गिलहरी की पीठ पर बड़े प्यार से उंगलिया फेरीं - जिससे उसे दर्द में आराम मिले | अब वह इतनी नन्ही है कि तीन ही उंगलियाँ फिर सकीं | तब से गिलहरियों के शरीर पर श्री राम की उँगलियों के निशान होते हैं | {{ अब यह मुझसे न पूछियेगा अद्वैतवाद वाली पोस्ट की तरह , कि क्या इससे पहले गिलहरियों की पीठ पर धारियां न थीं :) , क्योंकि यह एक कहानी है, और राम जी ने यह रेखाएं सृष्टि के आरम्भ में खींची या अब, इससे कोई फर्क पड़ता भी नहीं | उसी तरह वहां भी फर्क नहीं पड़ता कि केले के पत्ते के बीच की धारी सृष्टि के आरम्भ में बनाई गयी, या उस वक़्त :) वैसे सुना है कि भारत के अलावा दूसरे देशों की गिलहरियों में यह धारियां नहीं मिलतीं ?}}
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श्री राम सेतु और डूबते पत्थर .........
जब श्री राम की वानर सेना लंका जाने के लिए सेतु बना रही थी, तब का एक वाकया है ...
श्री राम का नाम लिख कर वानर भारी भारी पत्थरों को समुद्र में डालते - और वे पत्थर डूबते नहीं - तैरने लगते | श्री राम ने सोचा कि मैं भी मदद करूँ - ये लोग मेरे लिए इतना परिश्रम कर रहे हैं | तो प्रभु ने भी एक पत्थर को पानी में छोड़ा | लेकिन वह तैरा नहीं , डूब गया | फिर से उन्होंने एक और पत्थर छोड़ा - यह भी डूब गया | यही हाल अगले कई पत्थरों का भी हुआ | प्रभु ने हैरान हो कर किसी से पूछा (मुझे याद नहीं किससे - यदि आपमें से किसी को पता हो तो बताएं ) - तो सेवक ने जवाब दिया :
" हे प्रभु | आप इस जगत रुपी भवसागर के तारणहार हैं | आपके "नाम" के सहारे कोई कितना भी बड़ा और (पाप के बोझ से) भारी पत्थर हो, वह भी इस भवसागर पर तैर कर तर जाएगा | किन्तु प्रभु - जिसे आप ही छोड़ दें - वह तो डूब ही जाएगा ना?"
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श्री राम ने सोचा की जब मेरे नाम से पत्थर तैर सकते है तो फिर अगर में पत्थर डालूँगा तो भी पत्थर तैरेंगे. तब वो थोड़ी दूर अकेले गए लकिन हनुमान जी सूक्ष्म रूप धर उनके पीछे चले गए. श्री राम जी ने पत्थर पानी में फैंका लकिन वो डूब गया. उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ. तभी हनुमान जी बोले " हे परभू वो पत्थर तो आपके नाम का सहारा लेकर तैर रहे है लकिन जिसको अपने ही फैंक दिया फिर भला वो कैसे तैर सकता है "
जवाब देंहटाएंश्री राम जी इस उत्तर से संतुष्ट हुए.
अच्छा लगे तो मझे लिखना c2saini100@hotmail.com
thanks for sharing the info that the reply was from hanuman ji ....
हटाएंYes, you are absolutely right, I'm in US and Squirrels here don't have any lines on their back
जवाब देंहटाएंtrue - i have heard that too....
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