कल किसी ने पूछा - २०१२ में दुनिया का अंत होने वाला है - इसे आप मानती हैं? मैंने कहा - पता नहीं | उन्होंने पूछा - आपको पता नहीं ? लेकिन यदि हो - तो कितनी भयावह स्थिति है यह !! डर नहीं लगता आपको ? तो मुझे एक बड़ी प्यारी कहानी याद हो आई | [[ लेकिन कहानी से पहले एक बात - यदि हो भी जाए अंत - तो क्या हुआ ? क्या हो जाएगा अधिक से अधिक? आखिर अभी जितने भी लोग हैं इस दुनिया में - आज से तकरीबन सौ वर्षों के भीतर तो हम सब को जाना है ही - किसी को भी पता नहीं कि मैं कब जाने वाला / वाली हूँ | तो क्या होगा - शायद मेरी मौत २०१२ में हो - क्या फर्क पड़ जाएगा ? थोडा आगे या थोडा पीछे सही !! फर्क सिर्फ इतना होगा कि सब एक साथ जायेंगे - तो इसमें क्या बड़ी डरने की बात है ? अच्छा ही होगा शायद - किसी को अपने प्रियजनों से बिछड़ने का दुःख ना झेलना होगा !! :) ]]
तो कहानी कुछ यूँ है - एक युवक की नयी- नयी शादी हुई थी - और वह और उसकी नव-वधू समुद्र यात्रा पर थे | रात में घना अन्धकार था, और जोरों का तूफ़ान भयानक रूप में था | ऐसा लगता कि जहाज़ अब डूबा - तब डूबा | युवक ज़रा भी घबराया हुआ नहीं था |
पत्नी ने आकुल हो कर पूछा : "तुन्हें डर नहीं लगता ? नहीं देखते कैसा तूफ़ान है - जीवित भी बचेंगे या नहीं क्या मालूम ?"
युवक ने म्यान से तलवार निकाली और पत्नी की गर्दन पर रख दी | पर वह बिल्कुल भी डरी नहीं तनी हुई तलवार से | युवक ने पूछा - "तुम्हे डर नहीं लगता ? मैंने तुम्हारी गर्दन पर तलवार रखी है ? तुम्हारे प्राण संकट में हैं |"
पत्नी हंसने लगी और बोली - "मैं क्यों डरूं? तलवार तुम्हारे हाथ में है - और मैं जानती हूँ तुम मुझसे कितना प्रेम करते हो | तुम ऐसा कुछ कर ही नहीं सकते - जिससे मेरा कुछ भी बुरा हो |"
युवक भी हंस पड़ा और बोला " मुझे जब से परमात्मा की गंध मिली है - मैं भी इतने ही विश्वास से जानता हूँ की मेरी नाव की पतवार ईश्वर के हाथ है | जैसा तुम्हे मेरे प्रेम पर भरोसा है - वैसा ही मुझे उसके प्रेम पर विश्वास है | तो किस बात से डरूं -?? वह मेरा बुरा कभी नहीं होने देगा |" [श्री हरिओमशरण का एक गीत है - "तेरा राम जी करेंगे बेडा पार - उदासी मन - काहे को करे ...... " -यु ट्यूब का लिंक यह है - आप देख और सुन सकते हैं ] ;
[ और जो मित्र विश्वास करते हैं कि ईश्वर है ही नहीं - उन्हें तो खैर डरने की वैसे भी ज़रुरत ही नहीं - जब हम सिर्फ कुछ केमिकल्स से बने हैं , इसके अलावा कुछ है ही नहीं - तो तय है कि एक दिन इन केमिकल्स को विघटित हो ही जाना है , बिखर ही जाना है | तो फिर डर किस बात का ? ]
प्रेम अभय है , अप्रेम भय है | यदि हम समस्त के प्रति प्रेम से भर जाते हैं, तो समस्त के प्रति स्वीकार्य भाव आ जाता है | जीवन के प्रति भी और मृत्यु के प्रति भी | सुख के दिनों के लिए भी वही भाव , और दुःख की रात्रियों के लिए भी | फिर डर और परेशानी का कोई स्थान नहीं रह जाता मन के भीतर | चेतना के इस द्वार से प्रेम और विश्वास भीतर आता है - तो उस द्वार से भय बाहर हो जाता है | जलता दिया जहाँ वास करे - वहां अँधेरे को स्थान छोड़ना ही पड़ता है |
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